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सूचना और ज्ञान में क्या अंतर हैं?


सूचना क्या है? इस सवाल के जवाब में कहा जा सकता है कि किसी विषय, वस्तु या व्यक्ति से संबंधित जो तथ्य होते हैं उसे सूचना कहते हैं। सूचना उद्देश्यपूर्ण होती है और संचार या संवाद को अर्थपूर्ण बनाने में सहायक होती है। सूचना खुद में संपूर्ण न होकर एक अंश या खण्ड के रूप में होती है। सूचना किसी समय विशेष से संबंधित होती है।

उदाहरण के तौर पर भारते के पहले प्रधानमंत्री कौन थे? वर्तमान प्रधानमंत्री कौन हैं? भारत में सबसे अधिक वर्षा कहाँ होती है? इस तरह के सवालों का जवाब एक तरह की सूचना है। इस तरह के सवालों को सूचना या तथ्यात्मक सवाल कहते हैं। एक अन्य उदाहरण पानी का फॉर्मूला क्या है? इसका जवाब होगा H2O। शिक्षा के क्षेत्र में अक्सर रंटत प्रणाली से छुटकारे की बात होती है, वह इसी संदर्भ में होती है कि केवल जानकारी, सूचना या तथ्यों को ज्यों का त्यों रटने की बजाय विद्यार्थियों को अपनी समझ, तार्किक क्षमता व विश्लेषण का इस्तेमाल करके सवालों का जवाब देने के लिए प्रेरित करना उचित होगा।

ज्ञान और सूचना का अंतर

सूचना के पर्यायवाची के रूप में ज्ञान शब्द का भी इस्तेमाल मिलता है। लेकिन दोनों मूल रूप में फर्क हैं। ज्ञान में सूचना शामिल हो सकती है, लेकिन सभी तरह की सूचनाओं को ज्ञान नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि ज्ञान का अर्थ कि कोई व्यक्ति अपने अनुभवों, सूझ व समझ का इस्तेमाल करके कैसे चीज़ों की व्याख्या व विश्लेषण करता है और कैसे अपनी समझ का निर्माण करता है। ज्ञान का अस्तित्व लंबे समय के लिए होता है। ज्ञान की एक संरचना होती है। यह सुसंगत और सार्वभौमिक होती है। गुरुत्वाकर्षण बल की अगर बात करें तो वह भारत के लिए भी उतना ही सच होगा, जितना किसी अन्य देश के लिए। पर इसके अनुप्रयोगों के अभाव में केवल परिभाषा की जानकारी तक सीमित होना, इसे सूचना मात्र में तब्दील कर देगा। जबकि इसके व्यावहारिक अनुप्रयोग की संभावना इसे ज्ञान में तब्दील कर देती है।

एक अन्य उदाहरण के तौर पर भारतीय कृषि को मानसून का जूआ कहा जाता है। लेकिन इसका व्यापक और गहरा अर्थ क्या है, इन सवालों की दिशा में बढ़ने की क्षमता हमारी समझ को दर्शाती है। जैसे मॉनसूनी बारिश का समय पूर्व-निर्धारित होता है। यानि पूरे वर्ष बारिश की स्थिति हो नहीं सकती, ऐसे में फसलों की सिचाईं के लिए देश के हर हिस्से में पूरे साल साधन नहीं मिल सकता है। सिंचित क्षेत्र का प्रतिशत कम होने वाली स्थिति ही भारतीय खेती की निर्भरता मॉनसून के ऊपर बढ़ाती है, इस तरह की समझ के लिए एक बुनियादी जानकारी अत्यंत आवश्यक है।

शिक्षा के क्षेत्र में बच्चों के परिवेशीय ज्ञान व समझ को भी स्थान देने की बात होती है ताकि बच्चे अपने अनुभवों के आधार पर ज्ञान का निर्माण कर सकें। जैसे गाँव के बच्चों को विभिन्न फसलों की कई तरह की किश्में, बुवाई का मौसम और खेती की व्यावहारिक समस्याओं की जानकारी होती है जैसे गाँव में यूरिया का न मिलना, डीजल का महंगा होना, टैक्टर से जुताई का महंगा होना या नकदी के अभाव में ऋण या लोन के मिलने में मुश्किल का होना या फिर बिजली की सप्लाई के घंटों में कमी के कारण नलकूप जैसी सुविधाओं का पर्याप्त तरीके से इस्तेमाल न कर पाने की स्थितियां इत्यादि। भारत में क्लासरूम के बारे में कहा जाता है कि भारत के क्लासरूम बच्चों व विद्यार्थियों के वास्तविक अनुभवों के प्रति तटस्थ रहते हैं, वे कोई पक्ष नहीं लेते। सही या गलत का कोई फैसला नहीं करने वाली स्थिति के पक्ष में खड़े होते हैं। इसके कारण सैद्धांतिक समझ और जीवन व्यवहार की सच्चाई के बीच तालमेल का अभाव पाया जाता है। इस तरह की समझ का विकास बाद के जीवनकाल में होता है।

उम्मीद है कि उपरोक्त उदाहरण से सूचना और ज्ञान के अंतर को कुछ हद तक स्पष्ट करने में मदद मिली होगी। अब लौटते हैं पारिभाषिक शब्दावली की तरफ।

सूचना और ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया

सूचना शब्द के लिए राजकमल द्वारा प्रकाशित सहज समानांतर कोश में ख़बर, जानकारी, नोटिस, विज्ञप्ति, संकेत, संदेशा इत्यादि शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। इसमें अफ़वाह, प्रचार व दुष्प्रचार जैसे शब्दों को भी रखा गया है। ज्ञान शब्द को भी इसमें शामिल किया गया है।

लेकिन ऊपर के विश्लेषण से स्पष्ट है कि ज्ञान की अवधारण सूचना या तथ्य या आँकड़ों की तुलना में ज्यादा व्यापक और गहरी है। इसमें जीवन के वास्तविक अनुभवों का समावेश होता है। किसी परिस्थिति में इंसानी सूझ-बूझ, तर्क और विश्लेषण व यथातथ्य व्याख्या करने की क्षमता को शामिल किया जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में वर्तमान में प्रचलित अवधारण संरचनावाद के तहत ज्ञान का निर्माण या रचना करने की धारणा पर काफी जोर दिया जा रहा है। विद्या भवन में आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार में तिस्ता बागची ने ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया के बारे में कहा, “ज्ञान एक शक्तिशाली औजार है जो हम इंसानों के पास है, न सिर्फ इसलिए कि हम जानते हैं बल्कि इसलिए भी कि जो हम जानते हैं, उसे व्यक्त कर सकते हैं और उस पर मनन भी कर सकते हैं।” 

 

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