जाहिर सी बात है कि ऐसे प्रयासों के लिए अतिरिक्त मेहनत, तैयारी और उत्साह की जरूरत होती है, जिसे रोज़मर्रा की रूटीन वाली जिंदगी में पूरी तरह खपकर हासिल करना संभव नहीं है। ऐसे में हमें एक राह चुननी होती है जो शोर से दूर होती हैं। जिसमें एकांत होता है। अकेलापन भी होता है। साथ भी होता है। मगर यह साथ विचारों और उनको ज़मीनी स्तर पर क्रियान्वित करने की योजनाओं को अमलीजामा पहनाने की प्रक्रिया का होता है। यह साथ उन दोस्तों और परिचित लोगों का होता है जो हमें आगे बढ़ने के लिए कुछ नया करने के लिए प्रेरित करते हैं। सहयोग करते हैं। राह भी सुझाते हैं। मुश्किलों का संकेत भी करते हैं और उनसे पार पाने की राह भी बताते हैं।
बीज से वृक्ष बनने की प्रक्रिया
इस मुकाम से शुरू होता है सफर जीवन को एक वैचारिक यात्रा पर ले जाने का। यह प्रक्रिया मिट्टी में किसी बीज को अंकुरण की मंशा से रखने जैसी होती है। जहाँ बीज अंधेरे के साथ संवाद करता है। मिट्टी के साथ रहता है। पानी की कहानी से परिचित होता है और बीज के खोल को ढीला होता हुआ देखता है, खुद को विकृत होता हुआ और एक नई निमृति की तरफ बढ़ता हुआ देखता है। मगर मिट्टी को बीज में डालने वाला इंसान इस पल-पल बदलते घटनाक्रम से अंजान होता है। उसे तो बस एक मामूली सी पहचान होती है कि जब बीज अंकुरित होगा तो मिट्टी के अंधेरे को चीरता हुआ, सूरज की रौशनी से मिलने को बेताब होकर मिट्टी के दबाव को अनसुना कर ऊपर आ पहुंचेगा।
इस प्रक्रिया में एक किसान के रूप में बुद्धिमत्ता यही होती है कि हम अपने हिस्से की कोशिश करें और प्रक्रिया की निगरानी करते रहें। चीज़ों को पूरी तरह भाग्य के भरोसे न छोड़ दें। अपने हिस्से की जिम्मेदारी और निगरानी का दायित्व स्वीकार करें ताकि किसी बीज को वृक्ष बनने की प्रक्रिया सुगम हो सके। प्रकृति के लिए ऐसी प्रक्रिया हर बीज के लिए अलग-अलग होते हुए भी एक साझी विरासत का निर्माण करती है, जिसे प्रकृति का नियम या सिद्धांत कहते हैं जो एक जैसी चीज़ों पर हमेशा लागू होती है।
कैसी होती है रचनात्मक विचारों की यात्रा?
एजुकेशन मिरर डॉट ओआरजी का अस्तित्व में आना भी एक ऐसी ही घटना है। इसकी यात्रा और उसके विभिन्न पड़ावों के बारे में सोचते हुए एक बात साफ-साफ समझ में आयी जो इस प्रकार है, “नदी से भाप बनकर उड़े हुए पानी जैसे हैं हमारे रचनात्मक विचार। जिनमें एक बीज से वृक्ष बन जाने जैसी संभावनाएं छिपी हुई हैं। जहाँ कहीं भी इन विचारों को जीवंत बनाने और जमीनी स्तर पर क्रियान्वित करने वाले साथी मिलें, वहीं ये विचार बादल बन बरस जाएं, हमको यही दुआ करनी चाहिए। हमारी भूमिका इन विचारों को अपनी भाषा में सटीक अनुवाद और जीवंतता प्रदान करने की है। ताकि सबकी साझी रचनात्मकता (स्वयं और सहयोगियों) को आगे बढ़ने का रास्ता मिलता रहे। ऐसी ही एक प्रक्रिया और घटना का नाम है एजुकेशन मिरर।”
संक्षेप में कह सकते हैं, ‘जो अपनी रचनात्मकता की खुशी समझते हैं, वे ‘साझी रचनात्मकता’ को आगे बढ़ाने में योगदान करते हैं।”