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हिन्दी भाषा में कैसे करें भाषा शिक्षण की शुरुआत?



पहली कक्षा में किताब से रूबरू होती एक लड़की। ऐसा दृश्य आपको पहली कक्षा में अक्सर दिखाई देता है।

बच्चों को पढ़ना-लिखना कैसे सिखाएं? इस सवाल से हर शिक्षक और अभिभावक का सामना होता है। विभिन्न सरकारें और संस्थाएं अर्ली लिट्रेसी या प्रारंभिक शिक्षा के इस सवाल का जवाब खोज रही हैं। या खोजे हुए जवाब को विभिन्न माध्यमों से स्कूलों में लागू करके बच्चों को पढ़ना-लिखना सिखाने की प्रक्रिया में सहयोग दे रही हैं।

भाषा शिक्षण की विशेष सीरीज़ की पहली पोस्ट में हम भाषा शिक्षण की शुरूआत करने संबंधी तैयारियों की बात करेंगे ताकि एक शिक्षक इस काम को सहजता के साथ कर। इसके साथ-साथ बच्चे औपचारिक रूप से भाषा शिक्षण की प्रक्रिया में शामिल हो सकें और सीखने के प्रति एक सहज लगाव विकसित कर सकें।

भाषा कालांश में बच्चों को सहज होने का मौका दें

बच्चों को कहानी सुनने और उस पर चर्चा के अवसर दें

एक दिन में एक अक्षर सिखाएं, नियमित पुनरावृत्ति करें

अक्षरों की पुख्ता पहचान के लिए जरूरी है कि एक दिन में एक ही अक्षर को पढ़ना-लिखना बताएं।

दूसरे महीने की शुरूआत से भाषा शिक्षण की औपचारिक शुरूआत कर सकते हैं। ऐसा करते समय बच्चों को एक दिन में केवल एक अक्षर पढ़ना सिखाएं। उसे लिखने का तरीका भी बताएं। लिखने-पढ़ने की शुरूआत सबसे पहले बड़ी मात्राओं वाले अक्षरों या बार-बार आने वाले अक्षरों से करें जैसे क, र, आ, ए, म, न इत्यादि।

वर्णमाला को क्रम से रटाने का कोई लाभ नहीं है। इससे बच्चे बोर होते हैं और उनको लगता है कि कहाँ फँसे गए। गाँव, शहर या घर के परिवेश में बच्चे जिस रोमांच और ख़ुशी के साथ भाषा सीख रहे होते हैं, उसको बनाए रखने की कोशिश करना बेहद जरूरी है।

आखिर में बच्चे जब पढ़ना-लिखना सीख रहे हों तो हर बच्चे के पास पहुंचे। उनको मदद करें। बच्चों से दूसरे बच्चों को मदद करने के लिए कहें। अगले दिन की शुरूआत पुनरावृत्ति के साथ करें। फिर बच्चों को कहानी सुनाएं और उस पर बात करें। बच्चों को अपने अनुभव साझा करने का मौका दें। भाषा शिक्षण की शुरूआत के लिए अगर इन बातों का हम ध्यान रखें तो एक मजबूत बुनियाद डाली जा सकती है।

भाषा शिक्षण से जुड़ी अपना समस्याएं, सवाल, सुझाव और अनुभव साझा कर सकते हैं ताकि उनके ऊपर सामूहिक रूप से संवाद किया जा सके। यह पोस्ट उन शिक्षकों को ध्यान में रखकर लिखी जा रही है जिनके लिए भाषा शिक्षण के प्रशिक्षणों में भाग लेने का बहुत ज्यादा मौका नहीं है। मगर वे भी चाहते हैं कि उनके बच्चे पढ़ना-लिखना सीखने की दिशा में प्रगति करें और उनके पठन कौशल का विकास सही दिशा में हो।

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