बच्चों को पढ़ना-लिखना कैसे सिखाएं? इस सवाल से हर शिक्षक और अभिभावक का सामना होता है। विभिन्न सरकारें और संस्थाएं अर्ली लिट्रेसी या प्रारंभिक शिक्षा के इस सवाल का जवाब खोज रही हैं। या खोजे हुए जवाब को विभिन्न माध्यमों से स्कूलों में लागू करके बच्चों को पढ़ना-लिखना सिखाने की प्रक्रिया में सहयोग दे रही हैं।
भाषा शिक्षण की विशेष सीरीज़ की पहली पोस्ट में हम भाषा शिक्षण की शुरूआत करने संबंधी तैयारियों की बात करेंगे ताकि एक शिक्षक इस काम को सहजता के साथ कर। इसके साथ-साथ बच्चे औपचारिक रूप से भाषा शिक्षण की प्रक्रिया में शामिल हो सकें और सीखने के प्रति एक सहज लगाव विकसित कर सकें।
भाषा कालांश में बच्चों को सहज होने का मौका दें
- सबसे पहली बात है कि बच्चों को विद्यालय में सहज होने का मौका दें। इससे बच्चे की झिझक टूटेगी और बच्चे को स्कूल के माहौल के साथ ढलने का मौका मिलेगा। एक-दो सप्ताह तक बच्चों के साथ यह गतिविधि जारी रखें। इसमें बच्चों के साथ बालगीत करें और कहानी सुनाएं। विभिन्न खेल वाली गतिविधियां करें। संवाद के दौरान स्थानीय भाषा का भी इस्तेमाल करें। बच्चों को घर की भाषा में बात करने का अवसर दें और विभिन्न गतिविधियों में भाग लेने के लिए उनको प्रोत्साहित करें।
उपरोक्त कामों को करते हुए क्लासरूम की दिनचर्या से बच्चों को परिचित कराएं। स्कूल के शुरूआती दिनों में ही उनको अ से ज्ञ तक लिखवाने की कवायद न शुरू करें, धैर्य से काम लें। कहानी के माध्यम से बच्चों के सुनकर समझने की क्षमता पर काम करें, यह भविष्य में बच्चे जब शब्द या किताब पढ़ना शुरू करेंगे तब उनको समझकर पढ़ने की तरफ लेकर जाएगी। कहानी सुनाने के लिए चित्रों वाली किताब का उपयोग करें और बच्चों की जिज्ञासा का जवाब देने की कोशिश करें।
बच्चों को कहानी सुनने और उस पर चर्चा के अवसर दें
- बच्चे जब पहली बार स्कूल आते हैं तो मौखिक भाषायी क्षमता के साथ आते हैं। इसलिए उनको कोरी स्लेट न समझें। बच्चे बोलना, सुनना और सुनकर समझना और जवाब देना तो ख़ुद से सीख जाते हैं, मगर पढ़ना-लिखना सिखाना पड़ता है। सीखने की कोई भी प्रक्रिया संदर्भ से अलग नहीं होती है, यही बात भाषा के संदर्भ में भी लागू होती है। इसलिए बच्चों को अपने परिवेश से जुड़ी चीज़ों के चित्रों को देखने और उनपर आपस में बात करने का पर्याप्त अवसर दें। बच्चों को उनके स्थानीय भाषा से जुड़े गीत और कहानियां सुनाने का मौका भी क्लास में दे सकते हैं।
- चौथे-पाँचवे सप्ताह से बच्चों को पेंसिल पकड़ना, किताब और कॉपी खोलना और देखना सीखने का अवर दे सकते हैं। ताकि वे इन चीज़ों के साथ सहज हो सकें। हर बच्चे की रफ़्तार अलग-अलग होती है, इसलिए सारे बच्चों से एक जैसी अपेक्षा न रखें। बच्चों के साथ दो सप्ताह तक आड़ी-तिरक्षी रेखाओं व गोला बनाने जैसी गतिविधियों के बाद अक्षर पढ़ने और लिखने की शुरुआत कर सकते हैं।
एक दिन में एक अक्षर सिखाएं, नियमित पुनरावृत्ति करें
दूसरे महीने की शुरूआत से भाषा शिक्षण की औपचारिक शुरूआत कर सकते हैं। ऐसा करते समय बच्चों को एक दिन में केवल एक अक्षर पढ़ना सिखाएं। उसे लिखने का तरीका भी बताएं। लिखने-पढ़ने की शुरूआत सबसे पहले बड़ी मात्राओं वाले अक्षरों या बार-बार आने वाले अक्षरों से करें जैसे क, र, आ, ए, म, न इत्यादि।
वर्णमाला को क्रम से रटाने का कोई लाभ नहीं है। इससे बच्चे बोर होते हैं और उनको लगता है कि कहाँ फँसे गए। गाँव, शहर या घर के परिवेश में बच्चे जिस रोमांच और ख़ुशी के साथ भाषा सीख रहे होते हैं, उसको बनाए रखने की कोशिश करना बेहद जरूरी है।
आखिर में बच्चे जब पढ़ना-लिखना सीख रहे हों तो हर बच्चे के पास पहुंचे। उनको मदद करें। बच्चों से दूसरे बच्चों को मदद करने के लिए कहें। अगले दिन की शुरूआत पुनरावृत्ति के साथ करें। फिर बच्चों को कहानी सुनाएं और उस पर बात करें। बच्चों को अपने अनुभव साझा करने का मौका दें। भाषा शिक्षण की शुरूआत के लिए अगर इन बातों का हम ध्यान रखें तो एक मजबूत बुनियाद डाली जा सकती है।
भाषा शिक्षण से जुड़ी अपना समस्याएं, सवाल, सुझाव और अनुभव साझा कर सकते हैं ताकि उनके ऊपर सामूहिक रूप से संवाद किया जा सके। यह पोस्ट उन शिक्षकों को ध्यान में रखकर लिखी जा रही है जिनके लिए भाषा शिक्षण के प्रशिक्षणों में भाग लेने का बहुत ज्यादा मौका नहीं है। मगर वे भी चाहते हैं कि उनके बच्चे पढ़ना-लिखना सीखने की दिशा में प्रगति करें और उनके पठन कौशल का विकास सही दिशा में हो।