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“इसे पढ़ना सीखने से कोई रोक नहीं पाएगा”

बच्चे, पढ़ना सीखना, बच्चे का शब्द भण्डार कैसे बनता हैमैं आज फिर से बच्चों के बीच में था। बिना बताए हुए। अचानक से उनके बीच लौटना अच्छा था। उनसे मिलने के बाद मेरा पहला सवाल था, “सबको किताब मिल रही हैं।” जवाब में हाँ और नहीं के मिश्रित स्वर सुनायी दिए।

इसके बाद मैंने स्कूल में प्रशिक्षण पर काम करने वाले एसटीसी छात्र को स्कूल की लायब्रेरी के बारे में बताया और पाँचवीं कक्षा के बच्चों को किताब देने के लिए बुलाया कि वे सबसे पहले खुद को किताब इश्यु करें ताकि बाकी दिनों में बाकी बच्चों को भी किताबें मिल सकें।

परंपरागत शिक्षक का ‘अभिनय’

प्रशिक्षण वाले भावी शिक्षक को देखकर लगा कि वे एक परंपरागत शिक्षक का अच्छा अभिनय कर पा रहे हैं। बच्चों को नियंत्रित करने की चेष्ठा। क्लासरूम में चुप रहने की हिदायत। बच्चों की क्षमता पर बेहद कम भरोसा। बच्चों और शिक्षक के बीच की दीवार को बराबर बनाए रखने की सफल कोशिश। शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले तमाम बदलाओं और संप्रत्ययों से अंजान। किताबी दुनिया और वास्तविक दुनिया के बीच तालमेल बैठाने वाली जद्दोजहद से जूझते हुए। पुराने शिक्षक साथी ने कहा कि इनको 15 दिन के बाद जाना है? क्या करेंगे, इनको लायब्रेरी के बारे में बताकर? मैंने कहा कि कॉलेज में कुछ नया अनुभव लेकर जाएंगे और बाकी दोस्तों को सुनाएंगे। यह एक अच्छी बात होगी।

फिर भावी शिक्षक साथी ने किताबों की इंट्री रजिस्टर में करना सीखा और किताब जमा करने और इश्यु करने की प्रक्रिया में जुट गए। मैंने भी थोड़ा सपोर्ट करने के बाद फिर बच्चों के साथ बातचीत के सिलसिले को आगे बढ़ाने और कहानी सुनाने के लिए लौट आया। पहली क्लास की एक छात्रा को किताब पढ़ने के लिए बुलाया। वह अक्षरों को पहचान रही है, मात्राओं को पहचानती है, अक्षरों के साथ मात्राओं को यों मिलाती है जैसे कोई पानी में चीनी मिलाकर शर्बत बनाता है।

शब्द पढ़ रहे हैं पहली के बच्चे

वह अक्षरों को जोड़-जोड़ कर शब्द पढ़ रही है। कभी-कभी पूरा शब्द भी पढ़ती है, बग़ैर किसी की मदद के। उसके साथ बात हुई कि शब्दों को कैसे एक साथ पढ़ें। इससे पढ़ने में काफी आसानी होगी। पास ही एक दूसरे स्कूल के शिक्षक बैठे थे जो डेपुटेशन पर एक दिन के लिए आए थे। उन्होंने कहा, “इस बच्ची को पढ़ना सीखने से कोई नहीं रोक पाएगा।” एक शिक्षक का ऐसा आत्मविश्वास अच्छा लगता है। उन्होंने कहा कि बच्चों को अगर लायब्रेरी की किताबें मिलें तो बहुत सारी चीज़ें तो वे खुद से सीख जाएंगे। किसी शिक्षक की तरफ से ऐसे विचारों का आना सदैव अच्छा लगता है। ऐसे ही प्रोत्साहित करने वाले प्रयासों की तो जरूरत है

किताब पढ़ने की दिशा में आगे बढ़ रहे बच्चों का आत्मविश्वास भी अच्छा लगता है। ऐसे प्रयासों के लिए रूम टू रीड का शुक्रिया कहा जा सकता है जो पहली-दूसरी के बच्चों को पढ़ना सिखाने के लिए काफी कमिटेड टीम के साथ सराहनीय काम कर रहे हैं।

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