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शिक्षा विमर्शः ‘हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता हैं बच्चे’



एक शिक्षक का लक्ष्य भारत के बच्चों को शिक्षित करने के सपने को सच बनाना है।

मैं शिक्षक की नौकरी क्यों कर रहा/रही हूँ? इस सवाल से शिक्षकों का सामना रोज़ होना ही चाहिए। ऐसे सवाल हमें बतौर शिक्षक/शिक्षिका सही दिशा में और सही लक्ष्य के साथ आगे बढ़ने में मदद करेंगे। बतौर शिक्षक आप भारत के बच्चों को शिक्षित करने के सपने को पूरा करने में योगदान दे रहे हैं।

आपका राज्य कोई भी हो सकता है। आपका जिला कोई भी हो सकता है। आपका गाँव कोई भी हो सकता है। मगर आपका सपना या मंज़िल तो एक ही है कि भारत के बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले और उनका सर्वांगीण विकास हो।

इस सपने के साथ काम करने वाले शिक्षक की प्राथमिकताएं, उसका बच्चों के साथ व्यवहार, साथी शिक्षकों के साथ विमर्श की बातें और प्रधानाध्यापक के साथ तालमेल एक अलग स्तर का होगा।

हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता हैं बच्चे

बतौर शिक्षक अपने काम से संतुष्ट होना और क्लासरूम में बच्चों को सीखता हुआ देखकर ख़ुश होने का अनुभव प्राप्त करना हमारा सर्वोपरि लक्ष्य होना चाहिए। ऐसे शिक्षक विद्यालय के भवन निर्माण के काम से कमीशन की उम्मीद नहीं करेंगे, बच्चों के मिड डे मील से पैसे बचाने की प्रेरणा से संचालित नहीं होंगे। वे स्कूल को अपने संसाधनों और समुदाय के सहयोग से बच्चों के लिए बुनियादी सुविधाओं से लैस करने की कोशिश करेंगे।

उनकी माँग में बच्चे पहले होंगे। अगर वे किसी समुदाय के सदस्य से विद्यालय के लिए पंखे की माँग कर रहे होंगे तो कहेंगे कि अपने गाँव के और हमारे घर-गाँव के बच्चे विद्यालय में पढ़ने के लिए आते हैं, अगर उनके लिए पंखे की व्यवस्था हो जाये तो बच्चे गर्मी से परेशान नहीं होंगे। पढ़ाई पर ध्यान दे पाएंगे। विद्यालय में पीने के साफ पानी की व्यवस्था जरूरी है ताकि बच्चों को पीने का ठंडा और साफ पानी मिल सके। स्कूल में फ्रिज की व्यवस्था भले न हो सके, मगर घड़े की व्यवस्था के लिए सहयोग के लिए कोई भी समुदाय शिक्षकों की मदद के लिए हाजिर होगा। अगर वे अपनी बात अच्छे से रख पाते हैं।

सकारात्मक प्रयासों से टूटेगी नकारात्मक छवि

शिक्षकों के बारे में जिस तरह की निगेटीविटी या नकारात्मकता आम समुदाय, नेताओं, जिलाधिकारियों, शैक्षिक अधिकारियों और शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले शिक्षकों के मन में है, वह दीर्घकाल में इस प्रोफ़ेशन के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। यह खतरा निजीकरण से ज्यादा है।

इससे शिक्षकों को मिलने वाला सम्मान, काम करने की आज़ादी और समाज का भरोसा बहुत कुछ दाँव पर लगा हुआ है। ऐसी स्थिति उन शिक्षकों के कारण है जिन्होंने इस काम को साइड बिजनेस समझ लिया है, या फिर कोरम पूरा करने का जरिया बना लिया है, या फिर इस पेशे की आड़ में सफेद कुर्ते-पैजामे-जूते चमकाकर शिक्षा के नाम पर बच्चों की जगह अपने हितों को प्राथमिकता दे रहे हैं। जुगाड़ और चापलूसी के जरिये एक ऐसी व्यवस्था बना रहे हैं जहाँ मेहनत करने वाले लोगों को लगता है कि उनकी कोई पूछ ही नहीं है। क्योंकि वे तो अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर दे रहे हैं, बाकी सेटिंग वाले लोग पुरस्कार पा रहे हैं।इस स्थिति को तोड़ने के लिए सकारात्मक प्रयासों की जरूरत है। उसके बारे में लोगों से साझा करने की जरूरत है।

यूरोप-अमरीका में शिक्षकों का सम्मान है, तो भारत में भी संभव है

सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे अपना लिखा हुआ दिखाते हुए।

बच्चों को प्राथमिकता सूची में सर्वोपरि रखकर विद्यालय के विकास के बारे में सोचना होगा। तभी स्थिति में बदलाव संभव है।

मुझे एक भी ऐसा आंदोलन याद नहीं आता है जो शिक्षक संघों की तरफ से बच्चों के लिए हुआ हो। शिक्षकों की तरफ से बच्चों के हितों को सामने रखते हुए बड़े स्तर का आंदोलन हुआ हो, यह भी दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता है।

यूरोप और अमरीका में शिक्षकों के पेशे का सम्मान है। वहाँ शिक्षक अपनी जिम्मेदारी को समझते हैं। वे बच्चों के हितों के साथ कोई समझौता नहीं होने देते। शिक्षक संघ भी बच्चों के हितों के लिए सरकार से विमर्श करता है, बहस करता है इसलिए उनको जनता का सहयोग भी हासिल है। ऐसी अच्छी चीज़ें भारत में भी संभव हैं। ऐसा मुमकिन करने के लिए नन्हे-नन्हे ही सही प्रयास करिये।

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