हमारे समाज में लोगों को हतोत्साहित करने की एक लंबी परंपरा रही है। यह परंपरा एक संस्कृति का रूप ले चुकी है। इसे बदलने के लिए हमें स्थानीय स्तर पर इस सोच को चुनौती देने की जरूरत है।
नकारात्मक सोच की जड़ें इतनी गहरी है कि अगर ‘ह्वेल मछली’ भी सामने हो, तो उसे ‘रोहू मछली’ साबित कर देंगे लोग-बाग। वे कहेंगे, “अरे! ह्वेल मछली में कोई ताक़त नहीं होती। उसके लिए तो तालाब में छिपने की जगह नहीं मिलेगी। वह तो छोटे तालाब में चार दिन भी जिंदा नहीं रहेगी। समंदर का पानी सूख ही रहा है, कुछ दिनों बाद ये भी डायनासोर की भांति विलुप्त हो जाएंगी।”
नकारात्मक और सकारात्मक सोच का अंतर
पढ़िएः नकारात्मक सोच का सामना कैसे करें
ऐसे में बेहतर होगा कि मत करो परवाह कोई क्या कहेगा, वाली बात को मूलमंत्र की तरह अपनाकर आगे बढ़ चलें। इससे आप अपने काम पर अच्छे से ध्यान दे पाएंगे और खुद को इस तरह के ‘माइंडसेट गेम’ बचा पाएंगे, जो आपकी सकारात्मक ऊर्जा को सोख जाने पर आमादा है। जो आपके सपनों के पंख कुतर देना चाहती है ताकि आप अपनी संभावनाओं को साकार न कर पाएं, जिनके लिए आप लंबे समय से प्रयासरत हैं।
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