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सोच ऐसी कि ‘ह्वेल मछली’ को भी ‘रोहू मछली’ समझने लगें लोग!



ह्वेल और रोहू मछली का उदाहरण ग़लत तुलना करने वाली निगेटिव सोच को रेखांकित करने के लिए लिया गया है।

हमारे समाज में लोगों को हतोत्साहित करने की एक लंबी परंपरा रही है। यह परंपरा एक संस्कृति का रूप ले चुकी है। इसे बदलने के लिए हमें स्थानीय स्तर पर इस सोच को चुनौती देने की जरूरत है।

नकारात्मक सोच की जड़ें इतनी गहरी है कि अगर ‘ह्वेल मछली’ भी सामने हो, तो उसे ‘रोहू मछली’ साबित कर देंगे लोग-बाग। वे कहेंगे, “अरे! ह्वेल मछली में कोई ताक़त नहीं होती। उसके लिए तो तालाब में छिपने की जगह नहीं मिलेगी। वह तो छोटे तालाब में चार दिन भी जिंदा नहीं रहेगी। समंदर का पानी सूख ही रहा है, कुछ दिनों बाद ये भी डायनासोर की भांति  विलुप्त हो जाएंगी।”

नकारात्मक और सकारात्मक सोच का अंतर

इस तरह की सोच को मनोविज्ञान की भाषा में ‘फिक्स माइंडसेट’ कहते हैं। तो अगली बार अगर आपको कोई हतोत्साहित करे तो समझ लीजिए कि सामने वाला ‘फिक्स माइंडसेट’ वाला गेम खेल रहा  है, जिसे न तो अपनी क्षमता में भरोसा है। न ही वह आपकी कुछ कर गुजरने की क्षमता में भरोसा करने को तैयार हैं।

पढ़िएः नकारात्मक सोच का सामना कैसे करें

ऐसे में बेहतर होगा कि मत करो परवाह कोई क्या कहेगा, वाली बात को मूलमंत्र की तरह अपनाकर आगे बढ़ चलें। इससे आप अपने काम पर अच्छे से ध्यान दे पाएंगे और खुद को इस तरह के ‘माइंडसेट गेम’ बचा पाएंगे, जो आपकी सकारात्मक ऊर्जा को सोख जाने पर आमादा है। जो आपके सपनों के पंख कुतर देना चाहती है ताकि आप अपनी संभावनाओं को साकार न कर पाएं, जिनके लिए आप लंबे समय से प्रयासरत हैं।

आपको यह पोस्ट कैसी लगी, कमेंट लिखकर जरूर बताएं। अापने ऐसी सोच वाले लोगों का अपनी ज़िंदगी में सामना कैसे किया, अपनी स्टोरी भी शेयर करें ताकि बाकी लोगों को भी मदद मिल सके।

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