शिक्षकों की ‘अंधी आलोचना’ की वजह क्या है?

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यह तस्वीर सोशल मीडिया पर उपयोग की जा रही है और इसे आरक्षण से जोड़ा जा रहा है। (तस्वीर-1)

शिक्षकों की समाज के लिए जागरूक और सजग नागरिक तैयार करने में अहम भूमिका होती है। बहुत से शिक्षक अपने अच्छे व्यवहार से बच्चों की ज़िंदगी में बदलाव के ऐसे अंकुर रोपते हैं, जिसकी छांव भावी पीढ़ियों को अपना रास्ता चुनने और सही-गलत का विवेक हासिल करने में सक्षम बनाती है।

दुनिया के जो भी देश शिक्षा के मामले में टॉप 10 में शामिल हैं, उनके यहां की एक ख़ास बात है कि वहां शिक्षक के पेशे के प्रति लोगों के मन में सम्मान का भाव है। वे शिक्षकों की भूमिका को बेहद महत्वपूर्ण मानते हैं और उनकी तारीफ़ में कंजूसी नहीं बरतते। मगर भारत में इस कहानी के कई वर्ज़न है। कुछ इतने अच्छे हैं कि उदाहरण बन जाएं और कुछ तो ऐसे हैं कि अंधी आलोचना की मिशाल बन जाएं।

शिक्षकों के बारे में ऐसी सोच क्यों है?

आज हम दूसरे पहलू की चर्चा करेंगे और समझने की कोशिश करेंगे कि हमारे समाज में शिक्षकों के सम्मान में गिरावट क्यों आ रही है? उनकी गरिमा जो कभी स्वस्थ रूप में मौजूद थी। आज अपने अस्तित्व की तलाश को तरसती सी क्यों प्रतीत होती है। आज का शिक्षक अधिकारियों के सामने सहमा सा है, समुदाय के लोगों का विद्यालयों में बढ़ता दख़ल भी ग़ैर-शैक्षिक गतिविधियों के नाम पर शिक्षकों पर दबाव बना रहा है। भरोसे के साथ स्कूल और शिक्षकों को सपोर्ट करने की हमारी संस्कृति कहां खो गई है।

शिक्षकों के बारे में ऑनलाइन निगेटिव स्टोरीज़ की बाढ़ सी आ गई है। शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले साथी कहते हैं कि मीडिया वाले दोस्त कहते हैं कि कोई निगेटिव स्टोरी हो तो बताओ। मानो सकारात्मक स्टोरीज़ की जरूरत समाचार पत्रों को है ही नहीं। ऐसी स्टोरीज़ के लिए एक दिन सा तय हो गया है कि शिक्षक दिवस के दिन ऐसी ख़बरें छापकर सालभर निगेटिव ख़बरें छापेंगे। ऐसे प्रयासों से किस शिक्षक का मोटीवेशन बढ़ेगा? शिक्षा व्यवस्था में किस जनता का भरोसा होगा, जब साल भर वे नकारात्मक खबरें ही पढ़ रहे हैं।

शिक्षा के क्षेत्र में बहुत कुछ अच्छा भी हो रहा है जिसे रेखांकित करने की जरूरत है।यानि ऐसा दौर जब सबसे ज्यादा सकारात्मक कहानियों की जरूरत है। हम नकारात्मक खबरों की बाढ़ में फंसे हुए हैं। हमारी नज़रों में शिक्षक को विलेन बनाया जा रहा है। उसके नकारात्मक पहलू को ज्यादा कवरेज दिया जा रहा है, इस बात को समझने की जरूरत है। 

‘कोई एक फोटो तो गड़बड़ है’

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विद्यालय में अम्बेडकर जयंती मनाते शिक्षक (तस्वीर -2)

आज का दौर शिक्षकों और सरकारी स्कूलों की अंधी आलोचना का दौर है। एक समाज के रूप में हमें शिक्षकों की आलोचना में जो रस मिलता है उसका स्रोत कहाँ है? इसके जवाब अलग-अलग हो सकते हैं।

मगर अंधी आलोचना का सबब क्या है? यह बात जरूर ध्यान खींचती है। कल डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जयंती पर शिक्षकों की ऐसी तस्वीर पोस्ट की जा रही है जिसमें वे सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर के साथ फोटो खिंचा रहे हैं।

संयोग से एक दूसरी तस्वीर भी मौजूद है, जो बिल्कुल दुरूस्त है। ऐसी दोनों ही तस्वीरें फ़ेसबुक पर मौजूद हैं, इससे लगता है कि तस्वीरों के साथ खेल करके शिक्षकों को बदनाम करने वाले काम को अंजाम दिया जा रहा है। यह कितना सही है और कितना ग़लत है, समय इस सवाल पर विचार करने का है।

इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी लिखते हैं, मुझे एक ट्वीट में यह फोटो (तस्वीर-2) मिला तो रोचक लगा। फिर यह फोटो मिला तो मेरा संदेह बढ़ गया। तकनीक का दुरुपयोग गलत जानकारी देने में किस हद तक होने लगा है, आप खुद देखिए। कोई एक फोटो तो गड़बड़ है।”

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