‘क्लासरूम निगेटिविटी’ का सामना कैसे करें शिक्षक?
भारत के विभिन्न विद्यालयों में क्लसारूम की चुनौतियों का सामना करना एक शिक्षक के लिए काफी मुश्किल होता है। बहुत से शिक्षक इस समस्या की गंभीरता को समझते हुए छोटे-छोटे प्रयासों से बेहतरी के लिए रास्ता खोज लेते हैं, मगर हर किसी के लिए पूरी स्थिति को संभलना एकदम से आसान नहीं होता है।
उदाहरण के लिए अगर 5वीं या 8वीं के बच्चे को किताब पढ़ना ही न आ रहा हो तो एक शिक्षक के सामने क्या विकल्प होते हैं? या तो वे बच्चों के स्तर से शुरूआत करें। या बाकी बच्चों के ऊपर फोकस करते हुए इन बच्चों को उपेक्षित करें। ऐसी स्थिति में कोई भी मेहनती और प्रतिबद्ध शिक्षक एक ऐसे तनाव से गुजरता है,जहाँ नकारात्मक विचारों की धुंध उनकी पूरी सकारात्मक ऊर्जा को खा जाने पर आमादा होती है।
अगर ऐसी किसी विपरीत परिस्थिति में आपका पहला विचार ही नकारात्मक हो या संदेह से भरा हुआ हो तो बतौर शिक्षक क्या करें? ऐसे विचारों पर तुरंत कोई प्रतिक्रिया न दें। क्योंकि इस प्रतिक्रिया पर होने वाली त्वरित प्रतिक्रिया आपके विचारों के प्रवाह को रोकती है क्योंकि पहले विचार के अतिरिक्त भी आप किसी घटना या परिस्थिति के बारे में विचार कर रहे होते हैं। इसलिए ऐसी स्थिति में थोड़ा समय लेकर, थोड़ा सोचकर, थोड़ा तैयारी के साथ जवाब देने का प्रयास करना चाहिए।
कई बार विद्यालयों में शिक्षा क्षेत्र से जुड़े अधिकारियों के दौरे के समय अफरा-तफरी का माहौल बन जाता है। कुछ अधिकारी ज़मीनी समस्याओं को सुनने के लिए तैयार नहीं होते और शिक्षकों को ही दोषी ठहराने लगते हैं। हर समस्या के लिए किसी एक व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराने वाली स्थिति ठीक नहीं है। मगर फिर भी ऐसी चीज़ें होती ही हैं। बेहतर है कि ऐसी परिस्थिति का आप धैर्य का साथ सामना करें और परिस्थितियों को अपने पक्ष में मोड़ने के लिए सतत प्रयास जारी रखें।
शिक्षा के क्षेत्र में रिफलेक्शन है जरूरी

चिंतन या रिफलेक्शनम से हम तुरंत प्रतिक्रिया देने वाली स्थिति से बचते हैं और किसी समस्या की प्रक्रिया में उसका समाधान खोज पाते हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में चिंतन (रिफलेक्शन) का विचार काफी उपयोगी है। कई सारे नवाचारों का श्रेय रिफलेक्शन और साथी शिक्षकों के साथ समस्याओं पर होने वाली गहन चर्चा ही होती है।
जैसे क्लासरूम में 20 बच्चों में से अगर 5 या 6 बच्चे ही सीख रहे हैं तो हमारी नकारात्मक प्रतिकिया हो सकती है कि बाकी 14-15 बच्चे तो सीख ही नहीं सकते। अगर हम फिक्स माइंडेसट वाली सोच के साथ आगे बढ़ते हैं तो हम प्रयास करना छोड़ देंगे और निराश होकर हार मान लेंगे।
जबकि एक सकारात्मक सोच के साथ और संभावनाओं को तलाशने वाला शिक्षक परिस्थिति को ग्रोथ माइंडसेट के साथ समझता है। अपना रास्ता खोजने का प्रयास करता है।
कौन-कौन सी चीज़ें सकारात्मक हो रही हैं, उनके ऊपर फोकस करता है। वह सोचेगा कि मेरी क्लास के कुछ बच्चे तो अच्छे से सीख पा रहे हैं। वे क्यों सीख पा रहे हैं? उनके सीखने के लिए कौन सी चीज़ें मदद कर रही हैं? उके सीखने में शिक्षण प्रक्रिया व बच्चों की भागीदारी की क्या भूमिका है? इसके आसपास अपनी समाधान की रणनीति तैयार करता है।
चुनौती है तो समाधान भी जरूर होगा
कक्षा कक्ष में आने वाली कौन सी चुनौतियां हैं जो इन बच्चों के सीखने में बाधक बन रही हैं, उनकी पहचान करके। उसमें बदलाव करके, आप शेष बच्चों के बारे में कोई लेबलिंग करने से बच जाएंगे और समस्या का समाधान खोजने की दिशा में आगे बढ़ जाएंगे। ऐसी चीज़ों का बार-बार होना आपको पहले विचार के नकारात्मक होने, संदेह होने या अनिश्चितता वाली स्थिति से उबारने में काफी मदद करेगा।
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