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चर्चाः विश्वविद्यालयों में लोकतांत्रिक स्पेश व सुरक्षित माहौल का बना रहना क्यों जरूरी है?



यह तस्वीर गार्गी कॉलेज में कॉलेज फेस्ट के दौरान छात्राओं के खिलाफ उत्पीड़न व हिंसा के बाद एकत्रित छात्राओं की है। वे इस मामले में जांच करने व दोषियों को सज़ा दिलाने की माँग कर रही हैं। वे कॉलेज प्रिंसिपल की निष्क्रियता को लेकर भी सवाल पूछ रही हैं।

भारत में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक ऐसी स्थिति बन रही है जहाँ पर छात्र/छात्राओं और पुलिस प्रशासन के आमने-सामने हैं। छात्र-छात्राओं के लिए जामिया विश्वविद्यालय में होने वाली हिंसा के वीडियो जिस तरीके से वायरल हो रहे हैं, शिक्षण संस्थाओं की स्वायत्तता पर सवाल खड़े कर रहे हैं। शिक्षण संस्थाओं की भूमिका एक लोकतांत्रिका स्पेश मुहैया कराने की है जहाँ पर विभिन्न मुद्दों पर बहस, संवाद व विमर्श हो सके। इसके साथ ही साथ वहाँ पढ़ने वाले सभी छात्र/छात्राओं को सुरक्षा का माहौल भी मिले।

लेकिन पिछले कुछ दिनों से दिल्ली चुनावी राजनीति का केंद्र होने के साथ-साथ शैक्षिक संस्थाओं में छात्राओं (गार्गी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय) व छात्र/छात्राओं व विश्वविद्यालय से जुड़े अन्य लोगों के खिलाफ संगठित व प्रायोजित हिंसा के दृश्य देखने को मिले। इन सभी मामलों में दिल्ली पुलिस की भूमिका भी संदेह व भरोसा कमज़ोर करने वाले संकेत दे रही है। इसका जिक्र बहुत से नेताओं व लोकतांत्रिक स्पेश की वकालत करने वाले छात्र संगठनों व आम लोगों ने की है। भाषायी हिंसा के बाद भड़कने वाली हिंसा को लोग वैचारिक राजनीति जिसके केंद्र में ख़ास तरह की विचारधारा है उससे भी जोड़कर देख रहे हैं। इस पूरे मामले को मुद्दों को दबाने की एक जानबूझकर की गई कोशिश के बतौर भी देखा जा रहा है ताकि युवाओं के सामने मौजूद रोज़गार के संकट, स्थायी रोज़गार के अवसरों के अभाव व इसके कारण मौजूद गंभीर स्थिति पर सार्थक संवाद व सरकार से सवाल न पूछे जाएं।

अगर देश की राजधानी के विश्वविद्यालयों व शिक्षण संस्थाओं से इस तरह के दृश्यों का सिलसिला जारी रहता है तो इसका नकारात्मक असर बाकी राज्यों से वहाँ पर शिक्षा के अच्छे अवसरों की उम्मीद में जाने वाले छात्रों व उनको भेजने की हिम्मत जुटाने वाले अभिभावकों के मनोबल पर पड़ेगा। अगर छात्राओं को उनके अपने कैंपस में सुरक्षा नहीं मिलेगी तो फिर बाकी जगहों पर उनके सुरक्षित होने की जिम्मेदारी कौन लेगा? अगर उनके अपने कॉलेज में उनकी शिकायतों को गंभीरता ने नहीं लिया जायेगा तो फिर वे किस जगह जाकर अपनी समस्याओं को साझा करेंगी। जाहिर सी बात है कि परिस्थिति इस तरह की बनाई जा रही है कि आपको मुखर विरोध के आगे आना होगा या फिर मौन होकर जुल्म सहने की आदत डालनी होगी।

यह ग़ौर करने वाली बात है उपरोक्त सभी परिस्थितियों में छात्र-छात्राओं ने सामने से आकर अपना मुखर विरोध दर्ज़ किया है और एक सीधा संदेश दिया है कि ख़ामोशी से जुल्म सहना उनकी फितरत में नहीं है। जो ग़लत है, वे उसकी विरोध करेंगी और अपनी बात को सार्वजनिक मंचों व अन्य संवैधानिक तरीकों से रखेंगी ताकि उनकी तकलीफ को देश-समाज के लोग समझ सकें। इस प्रयास में एक उम्मीद की रौशनी है कि स्थितियां जैसी हैं, उसमें विरोध के स्वर और मुखर होंगे। लोकतांत्रिक स्पेश और सुरक्षित माहौल के लिए छात्र-छात्राओं का संघर्ष सतत जारी रहेगा।

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