प्रतिबिंब हैं किताबें तेरे-मेरे जीवन की
कभी कहानी के जरिये झलकती
तो कभी कविता में हैं छलकती
घुमातीं ये सारा संसार
बताती दुनिया का ये सार
बुनती रोज़ नये किरदार
पढ़ उन्हें हम भी बनते जिम्मेदार।
अलग-अलग रूप हैं
अलग-अलग रंग हैं
हर एक किताब के अपने-अपने ढंग हैं
एक सच्चे दोस्त की तरह रहती ये संग हैं
किताबों के बहुत हैं ठौर-ठिकाने
मिलती हैं बाज़ार में इनकी दुकानें
घर और दफ़्तर में सजते इनसे कोने।
और यदि बस जाएं दिल में
तो मिलती हैं माँ के प्यार में
मिलती हैं पिता के दुलार में
मिलती हैं हमारी आदतों में
किसी के श्रृंगार में तो किसी के आंसुओं में
और नन्ही सी मुस्कान में।
किताबों में न जाने कौन सा जादू है
जो करती मुझे इतना आकर्षित हैं
सजाती हूँ मैं अपने सपने इनसे
देखती हूँ अपनी परछाई इनमें
क्योंकि ये प्रेरणा हैं मेरे कल की
किताबें झलक हैं मेरे जीवन की।
कविताः ‘किताबें करती हैं बातें’ -शफ़दर हाशमी
पढ़ेंः गुलज़ार की कविता ‘किताबें’
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