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‘आज भी जिंदा हैं महात्मा गांधी’


महात्मा गांधी, तुम्हारी हत्या करने वाले ने अपने काम को सही साबित करने के लिए भले ही तर्कों का अंबार लगा दिया हो। किताबें छाप दी हों। बच्चों को बचपन से पढ़ा दिया हो कि गांधी तो इतना बुरा था। ऐसा था। वैसा था। और इस देश की सारी समस्याओं के लिए तुम्हे जिम्मेदार ठहरा दिया हो। लेकिन तुम्हारी मौजूदगी आज भी है, कल भी थी और भविष्य में भी रहेगी।

जब भी लोगों के बीच संवाद का अभाव, समन्वय की कमी, भेदभाव, विषमता और क्रूरता नज़र आती है तो लगता है कि तुम्हारी मौजूदगी जरूरी है। किसी क्रूर हत्यारे की गोलियों से तुम मरे नहीं हो, तुम आज भी ज़िंदा हो। ग़लत का प्रतिरोध करते हुए और सहज संवाद का मार्ग प्रशस्त करते हुए।

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‘गोडसे की तीन गोलियों ने गांधी को अमर कर दिया’

इस दिन के बारे में पत्रकार पूजा सिंह लिखती हैं, “आज 30 जनवरी है. यह प्रतिबद्धता जताने का दिन है कि गांधी ने जिन मूल्यों के लिए अपने प्राण दिए, उनकी रक्षा कैसे करनी है? आज उन मूल्यों को पहले से अधिक खतरा है. गोडसे ने गांधी को क्यों मारा? वह तो भारत के प्रधानमंत्री भी नहीं थे, कोई ताकत नहीं थी उनके पास… लेकिन रुकिये उनके पास भारत की जनता के विश्वास की अनमोल निधि थी. जिस समय देश स्वतंत्रता के उत्सव में डूबा था, वह नंगा फकीर नोआखली में दंगों के बीच घूम रहा था बिना किसी सुरक्षा के. गांधी को हाशिए पर धकेलने की शुरुआत हो चुकी थी लेकिन गोडसे की तीन गोलियों ने उन्हें अमर कर दिया.

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बीबीसी हिंदी पर प्रकाशित एक रिपोर्ट में वरिष्ठ पत्रकार रेहान फजल लिखते हैं। “अगले दिन 31 जनवरी को महात्मा गांधी को अंतिम विदाई देने के लिए लाखों लोगों का सैलाब राजघाट पर उमड़ पड़ा था. जैसे ही गांधी की चिता को आग दी जा रही थी मनु ने अपने चेहरे को सरदार पटेल की गोद में रख कर फूट-फूट कर रोना शुरू कर दिया. कुछ क्षणों बाद जब उन्होंने अपनी निगाहे ऊपर उठाई तो उन्हें महसूस हुआ जैसे पटेल अचानक दस साल और बूढ़े दिखने लगे हों.”

बर्नाड शॉ ने गांधी की मौत पर कहा, ”यह दिखाता है कि अच्छा होना कितना ख़तरनाक होता है.”

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