Trending

आज भी प्रासंगिक है गांधी का शिक्षा दर्शन

महात्मा गांधी, गांधी का शिक्षा दर्शन, नई तालीम, बुनियादी शिक्षामहात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाई। शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने एक वैकल्पिक मॉडल का सूत्रपात किया, जिसे बुनियादी शिक्षा के नाम से जाना जाता है।

इसका जिक्र उनकी किताब वर्धा की शिक्षा योजना या नई तालीम में मिलता है। शिक्षा के क्षेत्र में आज भी इन विचारों का महत्व ज्यों का त्यों बना हुआ है। उनको स्वीकार करने के लिए अलग शब्दों का चुनाव भले ही कर लिया गया हो, मगर उनकी मूल आत्मा वही है।

महात्मा गांधी का इस बात में गहरा विश्वास था कि इंसान के जीवन का अंतिम लक्ष्य ईश्वर की प्राप्ति करना है। उन्होंने अंतिम सच्चाई को ईश्वर के समतुल्य माना और सभी इंसानों के लिए अंहिसा और प्रेम को सत्य की तरफ़ ले जाने वाला मार्ग बताया।

आदर्श समाज के बारे में बारे में उनका दावा था कि जहाँ ‘समता’ होगी, शक्तिशाली का कमज़ोर के ऊपर प्रभुत्व या ग़रीब का शोषण नहीं होगा। वह नैतिक सिद्धांतो और परोपकार की भावना पर आधारित समाज की कल्पना का आदर्श स्थापित करना चाहते थे। उनके यह विचार शिक्षा संबंधी उनके विश्वासों में भी अभिव्यक्ति पाते हैं।

शिक्षा का अर्थ है सर्वांगीण विकास

गांधीवादी शिक्षा की अवधारणा है कि ‘बच्चों और इंसानों के शरीर, मन और आत्मा के सर्वोत्तम की अभिव्यक्ति.’ यहां सर्वोत्तम की अभिव्यक्ति से गांधी जी का तात्यपर्य था कि सच्चाई की आंतरिक आवाज़ मुखर हो। इसके अलावा गांधी मानते थे कि सच्ची शिक्षा वह है जो बच्चों के आध्यात्मिक, बौद्धिक और शारीरिक पहलुओं को उभारती है और प्रेरित करती है। इस तरीके से हम सार के रूप में कह सकते हैं कि उनके मुताबिक़ शिक्षा का अर्थ सर्वांगीण विकास था।

thght1782_educationगांधी जी ने शिक्षा के दो उद्देश्यों की बात कही तात्कालिक और दूरगामी। तात्कालिक उद्देश्यों में उन्होंने रोज़ी-रोटी के लक्ष्यों, सांस्कृतिक उद्देश्यों, सभी शक्तियों के संभावित विकास, चरित्र निर्माण और स्वतंत्रता की बात कही। जबकि दूरगामी लक्ष्य जीवन के आख़िरी लक्ष्य से संबंधित है जो आत्मबोध, ‘सच्चाई’ और ‘ईश्वर’ का ज्ञान हासिल करना है।

गांधी जी मानते थे कि शिक्षा हमें आत्मनिर्भर बनाने वाली होनी चाहिए। जिससे यह बेरोज़गारी का सामना करने में सक्षम बनाए। शिक्षा को इस तरीके का प्रशिक्षण प्रदान करने का माध्यम होना चाहिए ताकि भावी जीवन में यह बच्चों को अपनी आजीविका कमाने में सक्षम बनाती हो। उनके मुताबिक़, “14 साल की उम्र में बच्चे को कमाने वाली इकाई में के रूप में सात सालों का कोर्स पूरा होने के बाद मुक्त कर देना चाहिए।”

शिक्षा में विकल्प की तलाश

उनका विचार था कि शिक्षा का बुनियादी उद्देश्य बच्चे का सर्वांगीण विकास करना है। उनके अनुसार, “मनुष्य न तो बुद्धि है, न तो पूरी तरह शरीर से पशु, न तो हृदय और न केवल आत्मा। वह मानते थे कि शरीर, बुद्धि और हृद्य तीनों का उचित और संतुलित योगदान संपूर्ण और वास्तविक शिक्षा के अर्थशास्त्र का निर्माण करता है। इससे आगे बढ़कर गांधी महसूस करते थे कि शिक्षा में में नैतिक आग्रहों का समावेश अवश्य होना चाहिए, इसके तहत उसे सभी बच्चों के चरित्र निर्माण का साधन बनना चाहिए। इससे अतिरिक्त उन्होंने ख़ासतौर पर बच्चों में शांति और नेतृत्व के लिए शिक्षा देने की बात कही। उन्होंने यह भी महसूस किया कि शिक्षा हमें स्वतंत्रता का अहसास कराने वाली होनी चाहिए।

गांधी जी का तात्कालिक शिक्षा व्यवस्था से मोहभंग हो चुका था जिसके बारे में उनका विचार था कि वह प्रकृति में बहुत ज़्यादा साहित्यिक और किताबी थी। इसके विकल्प के बतौर उन्होंने शिल्प-केंद्रित शिक्षा का प्रस्ताव किया। इसे औपचारिक तौर पर बर्धा की बुनियादी शिक्षा के रूप में पेश किया गया था।

बुनियादी शिक्षा वाले विचार का महत्व

कई आधुनिक शिक्षाविदों ने गांधी की तरफ़ से प्रस्तावित बुनियादी शिक्षा की योजना को आप्रासंगिक बताया और राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता के सवाल पर यह आलोचना के केंद्र में आ गई। हालांकि गांधी जी के शैक्षणिक विचारों का शिक्षा के आधुनिक संदर्भों में भी काफ़ी महत्व है। उनके सिद्धांतों के मूल में बच्चों की प्रतिभा का विकास और वृद्धि थी। उन्होंने उद्देश्यपूर्ण और उत्पादक शारीरिक गतिबिधि के बच्चों पर होने वाले असर को देखा था, उनकी सृजनात्मक और आत्म-अभिव्यक्ति की आवश्यकताओं को वह समझते थे। गांधी जी अनुभवों की समग्रता और सीखने-सिखाने की सामाजिक और भावनात्मक महत्व से अवगत थे। आज के शिक्षाविदों के लिए भी यह सारे विचार महत्व के हैं।

gandhi-quoteगांधी जी ने शिक्षा के व्यावसायिक पक्ष पर काफ़ी ज़ोर दिया, जिसे लागू करने का प्रयास आज के पाठ्यक्रम निर्माता भी कर रहे हैं। ‘बचपन’ के बारे में उनके सरोकार का केंद्र बच्चों का मूल स्वभाव था कि वह कैसे सीखता है और उसकी बुनियादी आवश्यकताएं क्या हैं, यह सभी मिलकर आज की समसामयिक बाल-केंद्रित शिक्षा का निर्माण करते हैं।

सृजनात्मक अभिव्यक्ति के रूप में शिल्प को दिया गया महत्व और श्रम को महत्व देने वाले नज़रिए के निर्माण को प्रशिक्षकों द्वारा आज भी महत्व दिया जाता है। वास्तव में सामाजिक रूप से उपयोगी और उत्पादक कार्य जो स्कूल पाठ्यक्रम का एक हिस्सा है उसमें इन उद्देश्यों को संक्षेप में शामिल किया गया है।

शिक्षा की वैश्विकता में ख़ासतौर पर बच्चों का सम्मान करने के संदर्भ में उनका विश्वास था। आज भी शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य छात्रों का चहुँमुखी विकास करना है। गांधी जी बच्चे की नैसर्गिक अच्छाई में यक़ीन रखते थे, चीज़ों को करके सीखने पर ज़ोर देते थे, साथ ही बनावटीपन और आडंबर के विरोधी थे। उन्होंने शिक्षा को चारदीवारी से मुक्त कराने का प्रयास किया और चाहते थे कि बच्चे के प्राकृतिक परिवेश में शिक्षा दी जानी चाहिए। वह मानते थे कि बच्चों को शिक्षा स्वतंत्रता के माहौल में दी जानी चाहिए। संक्षेप में कहा जा सकता है कि आज की आधुनिक, बाल-केंद्रित और मानवतावादी शिक्षण के सरोकार भी यही हैं।

(दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षा संकाय में प्रोफ़ेसर नमिता रंगनाथ की किताब ‘द प्राइमरी स्कूल चाइल्ड’ का अनुदित अंश।)

इस लेख के बारे में अपनी टिप्पणी लिखें

Discover more from एजुकेशन मिरर

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading