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मोबाइल की आदत: बच्चों का ‘स्क्रीन टाइम’ कम करने के 10 जरूरी टिप्स

 मोबाइल पर पढ़ता स्क्रीन टाइम आज के दौर की एक सच्चाई है।

मैं एक दिन स्कूल की छुट्टी के समय बाज़ार से वापस लौट रहा था। मैंने देखा कि एक बच्चा अपने पापा की मोटरसाइकल पर आगे बैठकर मोबाइल देख रहा है, यह दृश्य मेरी आँखों में हमेशा के लिए क़ैद हो गया। उस लम्हे की तस्वीर लेना चाहता था. लेकिन शायद उसका कुछ हिस्सा ही कैमरे की नज़र में आ सका। आज के दौर में मोबाइल की स्क्रीन और खाने की ऐसी जुगलबंदी हो गई है कि क्या बच्चे और क्या बड़े, अक्सर दोनों हाथ में मोबाइल लेकर खाना खाते नज़र आते हैं।

मोबाइल फोन की आदत एक वास्तविकता है, इसे स्वीकार करें

“मोबाइल ने इंसानों के वक़्त में घुन लगा दिया है। ‘इंसानों का वक़्त’ अगर ‘किताबें’ हैं तो मोबाइल एक दीमक की भांति उसे कुतरने में तल्लीनता से लगी हुई है। हमें ख़बर ही नहीं है कि किताबों में दीमक लग रही हैं, या बरसात की नमी उनको धीरे-धीरे नष्ट कर रही है। हमारी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए जो बौद्धिक संसाधन किताबों से, बाहर घूमने से, बच्चों के साथ बातचीत में या अपने परिवार में होने वाली चर्चा से हासिल हो सकता है उस समय को खोखला बना रहा है यह मोबाइल। वर्तमान में रियल लाइफ से ज्यादा खुद को रील लाइफ या डिजिटल लाइफ में अपडेट रखने का दबाव अपने चरम पर हो तो ऐसी स्थितियां स्वाभाविक हैं, इनको बदलने के लिए मजबूत इच्छाशक्ति के साथ-साथ एक अच्छी योजना और उस पर प्रतिदिन अमल से ही कोई समाधान मिलेगा।”

अब लौटते हैं लेख के मूल प्रश्न की तरफ। बच्चों का ‘स्क्रीन टाइम’ कैसे कम करें? यह एक ऐसा यक्ष प्रश्न है जो आज के दौर में तीन साल की उम्र ते बच्चों से लेकर किशोर-किशोरियों और बड़ों के लिए समान रूप से लागू होता है। अगर हम चाहते हैं कि बच्चों का ‘स्क्रीन टाइम’ कम हो तो इसकी पहल हमें खुद से करनी होगी।

हमें ऐसी गतिविधियों में खुद को शामिल करना होगा जो ‘स्क्रीन टाइम’ की दुश्मन हों जैसे घर के किसी काम में मदद करना, किताबें पढ़ना, बच्चों के साथ कोई खेल खेलना और किताबें पढ़ना, चित्रकारी करना, पार्क में घूमने के लिए जाना। ऐसे प्रयासों से निश्चित तौर पर ‘स्क्रीन टाइम’ जरूर कम होगा। लेकिन सबसे ज्यादा मदद हमें एक-दूसरे के साथ बातचीत करने से मिलेगी। उदाहरण के तौर पर हम एक-दूसरे को बताएं कि हम अपने घर में बच्चों को मोबाइल देने के आसान विकल्प की बजाय क्या दूसरा क्या तरीका अपनाते हैं। मोबाइल से बचाव के लिए जरूरी है कि हम बच्चे को उससे ज्यादा रुचिकर या समान रूप से आकर्षक लगने वाली किसी दूसरी गतिविधि में उसे शामिल करें। इससे बच्चे को भी एक सार्थक भागीदारी मिलेगी और उसे आनंद भी आएगा।

बच्चों से समानुभूति के साथ बातचीत करें

एक बच्चे को जब उसके मम्मी-पापा ने समझाया कि मोबाइल में कोई भी गेम्स डाउनलोड नहीं करते बेटा। इससे मोबाइल के डॉक्यूमेंट ख़तरे में पड़ सकते हैं, पैसे भी चोरी होने का ख़तरा है तो बच्चे ने इस बात गंभीरता से सुनने के बाद अपना मोबाइल दिया कि इससे जो भी गेम काम के नहीं हैं उसे डिलीट कर दो। बातचीत होने के पहले बच्चा जोर-जोर से रो रहा था जैसे उसके दोस्तों को उससे अलग किया जा रहा है। वर्चुअल दुनिया में दोस्ती की जगह इन गेम्स, रील्स और वीडियोज़ ने ले ली है। इसलिए वास्तविक दुनिया में भागीदारी वाले अवसरों का सृजन करना जरूरी है। फिर बच्चे की तरफ से फरमाइश आई कि मुझे कॉफी पीनी है। बच्चे ने कहा कि लेकिन कॉफी सिर्फ मेरे लिए बनेगी, मम्मा के लिए काफी नहीं बनेगी। क्योंकि मम्मा उस समय वीडियो गेम्स को डिलीट कर रही थीं। यहाँ पर बच्चे के गुस्से को एक स्वाभाविक सी अभिव्यक्ति मिल रही है। यानि बातचीत से भी बच्चों का गुस्सा कम नहीं होता। उनके साथ पूरी समानुभूति और प्यार के साथ समझाना होता है कि हम ऐसा क्यों कह रहे हैं।

जिस बच्चे की तरफ से मोबाइल में डाउनलोड हुए गेम्स को बचाने की गुजारिश हो रही थी,वही बच्चा अभी ब्लाक्स के अलग-अलग टुकड़ों को आपस में मिलाकर डायनासोर की प्रतिकृति और विभिन्न आकृतियों को बनाने में जुटा हुआ है। बीच-बीच में किताबों के पन्ने पलटने का सिलसिला भी जारी है। यानि बच्चों को प्रत्यक्ष रूप से जिस भी खेल में मन लगे खेलने का मौका देना, उनके साथ खेलना और जीवन के ‘राइट नाऊ’ वाले पल को जीना बहुत महत्वपूर्ण है।

बच्चों का स्क्रीन टाइम कम करने के 10 टिप्स

1. वास्तविक लक्ष्य तय करें – बच्चों के वर्तमान स्क्रीन टाइम में धीरे-धीरे कटौती करें।

2. बच्चों के साथ अपनी सक्रिय भागीदारी बढ़ाएं और बच्चों के लिए उपलब्ध रहें।

3. परिवार के सभी सदस्य आपस में मिलकर मोबाइल के ‘स्क्रीन टाइम’ को कम करने रणनीति पर काम करें। जब बच्चों को मना करें तो स्वयं भी मोबाइल या टीवी स्क्रीन से दूर रखें।

4. मोबाइल डिवाइस को बच्चों की पहुंच से दूर रखें। मोबाइल में स्क्रीन लॉक लगाकर रखना भी एक विकल्प है क्योंकि बच्चे बुजुर्गों के मोबाइल को आसान टार्गेट के रूप में देखते हैं।

5. घर से बाहर घूमने के लिए पार्क या अन्य जगहों पर जाएं। इस दौरान विभिन्न खेल-गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं।

6. प्रकृति का अवलोकन करने में समय बिताएं। जैसे फूल-तितलियों व विभिन्न पेड़ पौधों की विशेषताओं के बारे में बच्चों से बात करें और उनके सवालों का वाब दें।

7. एक कठिन मगर जरूरी सुझाव है कि स्वयं घर में किताबें लेकर बैठें और पढ़ें। इससे बच्चों को भी आपकी आदत को फॉलो करने का मौका मिलेगा। इससे उनको लगेगा कि इस काम में भी मजा आता है। बच्चों को उनकी किताबों से कहानी पढ़कर सुनाना, बिग बुक पर चर्चा करना भी एक अच्छा विकल्प है बस ध्यान रखें कि किताबें बदलते रहें ताकि बच्चों की रुचि बनी रहे।

8. बच्चों के फेवरेट खिलौनों का एक बॉक्स बनाएं ताकि वे उनसे खेलने में अपना समय बिता सकें। इस काम में आप भी शामिल हो सकते हैं।

9. घर में किताब व खिलौनों की सेल लगाना भी एक अच्छा खेल है। इसमें बच्चे किताबों और खिलौनों को सजाते हैं। किताबें ले लो, खिलौने ले लो जैसी आवाज़ लगाते हैं और हमें उनसे बात करनी होती है कि हम कौन सा खिलौना चाहते हैं। वह खिलौना कितने का है, इससे बच्चों को अपने आस-पड़ोस में दिखने वाले ठेले वाले या हॉकर्स का अभिनय करने का अवसर भी मिलेगा।

10. छोटे बच्चों का अटेंशन स्पैन या ध्यान केंद्रित करके रखने की क्षमता उम्र के अनुसार अलग-अलग होती है। छह महीने के बच्चों के लिए लगभग पाँच मिनट, एक साल के बच्चों के लिए लगभग 15 मिनट, दो साल के लिए बच्चों के लिए 30 से 60 मिनट। वहीं तीन साल से ज्यादा उम्र के बच्चे एक खेल में लगभग 45 मिनट या इससे ज्यादा समय दे सकते हैं। खेल के दौरान बच्चों की सुरक्षा का और उनके आसपास मौजूद होना जरूरी है ताकि किसी सहयोगी वाली स्थिति में हम उनको सपोर्ट कर सकें।

इस अनुभव को लिखने का उद्देश्य है कि इस मुद्दे पर चर्चा करें। इसका समाधान खोजने की दिशा में पहल करें और सफल प्रयासों और रणनीतियों को आपस में साझा करें।

(इस लेख पर आपके सुझाव व टिप्पणी का स्वागत है। आप एजुकेशन मिरर को फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो कर सकते हैं। अपने आलेख और सुझाव भेजने के लिए ई-मेल करें educationmirrors@gmail.com पर और ह्वाट्सऐप पर जुड़ें 9076578600 )

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