गणित शिक्षण: अरे यह सवाल तो दिमाग में ही हल हो गया!!
रविकांत जी शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न संस्थाओं में बतौर सलाहकार अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। शिक्षा के जुड़े विभिन्न मुद्दों पर सतत लेखन, अध्ययन और शोध उनकी रुचि के क्षेत्र हैं।अपनी डायरा के पन्नों से उन्होंने यह अनुभव एजुकेशन मिरर के पाठकों के लिए साझा किया है। जरूर पढ़ें और अपने अनुभव भी टिप्पणी के रूप में लिखें।
नील (बदला हुआ नाम) कक्षा 7 में आ गया था। उसे सरल समीकरण वाले पाठ के सवालों को हल करने में कुछ मुश्किल आ रही थी। उसकी मम्मी ने कहा कि मैं उसके साथ बात करूं तो शायद उसकी मुश्किल हल हो जाए। मैंने भी हां कर दी। बच्चों के साथ बात करना और वो भी गणित पर, मेरे पंसदीदा कामों में से एक था। मैंने शुरू में नील से पूछा कि उसे कहां परेशानी आ रही है। वह बोलो कि दो प्रश्नावलियां तो उसने हल कर ली हैं लेकिन तीसरी प्रश्नावली में जब भिन्न संख्या के समीकरण बनते है, वो उसे समझ में नहीं आ रहे हैं।
‘मुश्किलें पहले मजबूत हो चुकी होती हैं’
मेरा पुराना अनुभव था कि गणित में जिस वक्त मुश्किल दिखाई देनी शुरू होती है, उसकी जड़ें उससे काफी पहले ही मजबूत हो चुकी होती हैं। एक बार सोचा कि नील के साथ कक्षा 6 में आई बीजगणितीय अवधारणाओं पर काम शुरू करूं। फिर लगा कि कक्षा 7 के ही पाठ से काम शुरू करता हूं, जरूरत पड़ने पर कक्षा 6 में सीखी गई अवधारणाओं पर भी काम कर लूंगा। एक ख्याल यह भी मन में था कि पहले ही दिन की शुरूआत में पिछली कक्षा के पाठ से शुरूआत करना कहीं उसके उत्साह को भंग न कर दे।
नील ने शुरू में ही बता दिया था कि कक्षा में पाठ 4 पूरा हो चुका है। उसने समझ में न आने पर अपनी अध्यापिका से पूछा भी, अध्यापिका ने बताया भी, लेकिन फिर भी उसे समझ में नहीं आया। वैसे यह भी बड़ी बात थी कि उसने इस बात को समझ लिया था कि उसे अध्यापिका के समझाने पर भी क्या बात समझ में नहीं आई थी। हम में से कई बड़ों को भी बहुत देर तक यह समझ नहीं आता कि हमें क्या समझ में नहीं आया है।
‘महत्वपूर्ण पहलू पर फोकस की जरूरत’
यह भी मुझे पता था कि हमारे यहां अच्छे से अच्छे से लेकर बुरे से बुरे माने जाने वाले ज्यादातर स्कूलों में अध्यापिकाएं गणित के पाठों में दिए गए उदाहरण तथा उनसे पहले अवधारणा को समझाने के कामों व बातों को फालतू का मान कर छोड़ दिया करती है। इसके साथ ही समय पर कोर्स को पूरा करने के दबाव में सीधे प्रश्नावली से शुरू करती है और एक तरह का सवाल समझा कर बाकी सवाल बच्चों को कक्षा या गृह कार्य में करने के लिए दे देती है।
इससे होता यह है कि ज्यादातर बच्चे प्रश्नावली से पहले दी गई अवधारणा की समझ तथा उसमें दिए गए उदाहरणों को बेफालतू का समझ कर कभी नहीं पढ़ते हैं। नतीजन पाठ्यपुस्तक के जिस हिस्से को उसके सचेत लेखक बड़ी मेहनत से गढ़ते हैं वह हिस्सा ताउम्र धूल फांकता रहता है। स्कूलों में बच्चे निरर्थक व न समझ में आने वाले कामों के बोझ से वैसे ही इतने दबे कुचले रहते हैं कि अध्यापिका द्वारा छुड़वाई गई पाठ्यसामग्री को भूले भटके कभी भले ही देख लें, जानबूझ कर देखने की कभी हिमाकत नहीं करते।
तो शुरूआत मैंने यहां से की, कि नील सरल समीकरण वाले पाठ का पहला पन्ना पढ़े। उसने पूरा पन्ना पढ़ लिया, जो वैसे भी आधा था, क्योंकि आधे पन्ने पर तो पाठ का नाम मोटे अक्षरों में लिखा था। उस पन्ने पर सरल समीकरण के दो सवाल, इबारत के साथ विस्तार से दिए गए थे। मैंने नील से पूछा कि ये सवाल क्या है? उसने सवाल पढ़ा और तुरंत समीकरण बना लिया। सवाल बड़ा ही सरल सा था। अमीना, सारा से कोई संख्या सोच कर उसे 4 से गुणा करके गुणनफल में 5 जोड़ने के लिए कहती है। सारा द्वारा नतीजे में 65 बताते ही अमीना कहती है तुमने 15 सोचा था। चूंकि नील भी पूरा पाठ पहले ही पढ़ कर कई सवाल हल कर चुका था, इसलिए उसने भी समीकरण 4x+5=65 बना लिया। मैंने पूछा कि अमीना ने संख्या कैसे बता दी तो वह तुरंत कापी पर सवाल हल करने लगा। मैंने उसे रोक कर कहा कि तुम भी मन में सोच कर बताओ कि अमीना ने सारा की सोची हुई संख्या कैसे बताई होगी? नील के चेहरे पर पसरी उलझन से साफ था कि बिना कापी कलम की मदद से कोई सवाल भला कैसे हल हो सकता है?
इसी पाठ के दूसरे पन्ने पर यह बात बताई गई थी कि अमीना ने यह सवाल मौखिक तौर पर यानी मन में कैसे हल किया होगा। मैंने उस बात को सुराग के तौर पर नील को बताया कि उल्टा चल कर देखे। यानी जवाब में आए 65 से शुरू करे और उसे हल करे। उसने 65 में से 5 घटा कर 60 तो निकाल लिया लेकिन वह 4x तथा 60 के संबंध को नहीं देख पा रहा था। खैर, मैंने फिर मदद की तो उसने 4x=60 को लिया और मौखिक हल करके x का मान 15 निकाल लिया। इसी तरह उसने पहले पन्ने पर दी गई दूसरी समस्या को भी हल कर लिया।
‘समीकरण और इबारती सवालों को हल करने का सुखद अनुभव’
फिर हमने समीकरण बनाने में जरूरी पूर्व ज्ञान, चर, अचर, स्थिरांक तथा व्यंजक व पद को समझने में थोड़ा वक्त लगाया और यह बात भी की, कि कैसे व्यंजक से समीकरण बनाया जाता है। इसके बाद हमने कुछ कथनों को समीकरण और कुछ समीकरणों को कथनों में बदला। मुझे लगा कि अब वह अगली चुनौती का सामना कर सकता है। तो मैंने उससे कहा कि मैं शब्दों में लिखा यानी इबारती सवाल पढ़ता हूं और वह इसे मन में हल करके बताए। उसके चेहरे पर छाई उलझन साफ थी। मैंने दो बार सवाल पढ़ा, वो बोला कि सुन कर तो सब बातें याद नहीं रहती। उसकी बात भी ठीक थी। तो अब मैंने एक वाक्य पढ़ा और पूछा कि इसमें क्या जानकारी दी गई है। इसी तरह दूसरा पढ़ कर उसमें दी गई जानकारी के बारे में पूछा। फिर तीसरा वाक्य पढ़ कर पूछा कि इसमें क्या पूछा गया है। पहले के उदाहरणों व सवाल पर की गई अब तक की बातचीत के अनुभव के आधार पर नील से समीकरण बना लिया। समीकरण बना कर उसने हैरत से पूछा कि क्या इसे हल नहीं करना है?
अगला उदाहरण भी समीकरण बनाने का ही था। मैंने उसमें समीकरण हल करने का काम भी जोड़ दिया। मैंने इस बार भी हर वाक्य पढ़ा और उससे पूछा कि इस वाक्य से तुम क्या समझे या इसमें क्या दिया गया है। अंत में पूछा कि इस समीकरण को कैसे हल करेंगे। नील से आसानी से सवाल को सुन कर मन में बनाए व बोल कर बताए गए समीकरण को हल किया व जवाब बता दिया। मैंने उसे जवाब की जांच करने का तरीका भी बताया कि वह जवाब को x की जगह पर रख कर हल करे।
इस समीकरण को बनाने व उसे हल करने के बाद नील की हैरत भरी आवाज गूंजी, ‘’इसका मतलब ये सवाल तो दिमाग में ही हो गया।‘’ उसकी हैरत भरी आवाज व चेहरे पर उभरी खुशी से छलकता यह वाक्य मेरे दिमाग की खूंटी पर टंग सा गया। साफ था कि शहर के बेहतरीन स्कूलों में किए गए अब के कामों ने उसके मन में यह धारणा बना दी थी कि गणितीय सवाल सिर्फ लिख कर ही हल किए जा सकते हैं। घंटे भर के काम से न सिर्फ उसकी यह धारणा चूर चूर हो चुकी थी। इसके साथ ही वह एक नया अनुभव भी हासिल कर चुका था कि समीकरण जैसे मुश्किल सवालों को न सिर्फ मन में या बोल कर गढ़ा जा सकता है, बल्कि उसे हल भी किया जा सकता है।
(लेखक परिचयः रविकांत शैक्षिक सलाहकार के तौर पर विभिन्न संस्थाओं व शिक्षकों के साथ काम कर रहे हैं। शिक्षण सामग्री, पाठ्यपुस्तकें, प्रशिक्षण संदर्शिकाएँ आदि का निर्माण, शैक्षिक शोध तथा अनुवाद कार्य में सक्रिय हैं। गणित शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया को समझने-समझाने में खास रुचि और शिक्षकों के क्षमतावर्धन में विशेषज्ञता।)
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