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शिक्षक दिवस: ‘बच्चों में सीखने की ललक जगाने वाले शिक्षक तैयार करते हैं भविष्य’

सादर नमस्कार और शिक्षक दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएं!

मेरा सौभाग्य है कि मुझे जीवन में ऐसे शिक्षक मिले जिन्होंने जीवन को देखने व समझने की अंतर्दृष्टि देने के साथ-साथ इसमें सक्रिय प्रतिभाग के लिए भी प्रोत्साहित किया। शिक्षकों की ‘सृजन वाली भूमिका’ का योगदान ही है कि मैंने पढ़ाई पूरी करने के बाद शिक्षा के क्षेत्र में काम करना चुना। शिक्षा विभाग के वरिष्ठ साथियों के पास जो अनुभव है और शिक्षा क्षेत्र की जिस यात्रा के वे साक्षी हैं वह उनसे सुनने, मनन करने और जीवन के अनुभवों का हिस्सा बनाने योग्य हैं। इस अवसर मैं उन शिक्षकों के प्रति तहे दिल से आभारी हूँ जिन्होंने उम्र, शिक्षा व अनुभवों को कभी संवाद के रास्ते में नहीं आने दिया और बड़ी उदारता से अपने अनुभवों को मेरे साथ साझा किया और मिलकर एक टीम के रूप में काम करने को सदैव प्रोत्साहित किया।

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सभी बच्चों को समान दृष्टि से देखने का भाव

यह शिक्षक समुदाय से मिले अपनेपन और सहयोग का ही परिणा है मेरी कलम से ‘शिक्षकों की तारीफ़ में कंजूसी क्यों?’ और प्रत्येक शिक्षक दिवस पर विशेष तौर पर पढ़ा जाने वाला लेख ‘शिक्षक का अर्थ क्या है’ लिखा गया। शिक्षा के क्षेत्र में ‘प्रोत्साहन की संस्कृति’ की जड़े बहुत मजबूत होनी चाहिए। इन मजबूत जड़ों वाले वट वृक्ष ही नई पीढ़ी को स्नेह की वह छाँव उपलब्ध करा सकेंगे जिसमें प्रत्येक बच्चा भयमुक्त वातावरण में शिक्षा प्राप्त करेगा। केवल ‘रटंतु विद्या’ का मौन ग्रहणकर्ता न होकर एक ‘ग्रहणशील व चिंतनशील’ मनुष्य के रूप में अपना विकास कर सकेगा, जिसे अपने देश से प्रेम होगा और देश का अर्थ यहाँ रहने वाले सभी देशवासियों से होगा जो पूरे देश की विविधता का प्रतिनिधित्व करते हैं और उसके प्रति एक आदर व सम्मान का भाव रखते हैं। विद्यालय में शिक्षकों के सानिध्य में सीखते हुए जाति के आधार पर, धर्म के आधार या किसी आर्थिक सामाजिक आधार पर बनने वाले दायरों को तोड़ने का अनुभव भी मिला। लोगों की टिप्पणियां भी सुनीं कि आप उनके घर क्यों जाते हैं, क्यों खाते हैं, क्यों पानी पीते हैं और उनके बच्चों के शिक्षा की परवाह करते हैं – इन प्रश्नों पर सदैव मेरा जवाब रहा कि

मैं शिक्षक होने के मर्म को अपने जीवन के अनुभव से छू सका हूँ और मेरे लिए क्लासरूम में बैठे सभी बच्चे समान हैं और सबके प्रति मेरी एक साझी जिम्मेदारी है। मेरे लिए कोई बच्चा केवल ज्यादा जानने के लिए अत्यधिक स्नेह व ध्यान पाने का अधिकारी नहीं है, या कोई बच्चा केवल कुछ विषयों में शेष बच्चों के समान दक्षता न हासिल करने के कारण उपेक्षा का पात्र नहीं होगा। क्योंकि हर बच्चे की अपनी यात्रा है और उसकी अपनी पारिवारिक, सामाजिक व आर्थिक पृष्ठभूमि है। मेरा प्रत्येक बच्चे पर 100 प्रतिशत विश्वास है वे सीख सकते हैं और प्रकृति ने उन्हें सीखने में ?सक्षम बनाया है व उनको एक विशिष्ट व्यक्तित्व दिया है जिसकी मजबूत बुनियाद बनाने की जिम्मेदारी एक शिक्षक है।

‘बच्चों में सीखने की ललक जगाना’ है शिक्षक का सबसे बड़ा योगदान

अगर कोई शिक्षक यह कह दे कि तुम नहीं सीख पाओगे तो बच्चे के लिए यह बहुत बड़ी बात होती है, कई बार ऐसी बातें उनके जीवन की दिशा तय कर देती हैं और उनके मन में एक ऐसी भावना भर देती हैं जिसे कोई योग्य शिक्षक ही सुधार सकता है। इसलिए आपके प्रत्येक वाक्य की अहमियत है। प्रोत्साहन भरे शब्दों का जादू क्या होता है, यह मैंने पहली कक्षा से दूसरी कक्षा में पहुंची एक बच्ची से सीखा। जिसमें पहली कक्षा में बहुत सामान्य प्रगति की लेकिन दूसरी कक्षा में पढ़ने की क्षमता, शब्दों को पढ़ने का सलीका और इन सबसे आगे ‘सीखने की एक ललक’ या दूसरों शब्दों में कहें कि सीखने की भूख को जागृत कर लिया जो उसके सीखने के सफर को एक लाइट हाउस की भांति सदैव मुश्किल पलों में उम्मीद की रौशनी से जगमग करती रहेंगीं।

उत्तर प्रदेश के फतेहुपुर जनपद में एसआरजी की भूमिका में काम करने वाले राजेश जी बच्चों व शिक्षकों के साथ जिस संवेदनशीलता से काम करते हैं वह काबिल-ए-तारीफ है।

‘बच्चों से सीखना भी है महत्वपूर्ण’

यह बात मुझे बच्चे के साथ वन टू वन संवाद के दौरान पता चली। अगर शिक्षकों के एक सजग सहयोगी या सुगमकर्ता की भूमिका में इस बात के लिए वक़्त नहीं निकाला होता तो शायद मेरी प्रोफ़ेशनल जर्नी पर कोई बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ता, लेकिन इस बातचीत से बच्चों की ज़िंदगी पर असर पड़ा। सकारात्मक असर पड़ा। सैकड़ों- हज़ारों बच्चों ने आत्मविश्वास के साथ पढ़ना सीखा, अपनी मातृभाषा से प्रेम करना और उस भाषा से प्रेम बनाए रखना सीखा और अपने जीवन को अनुभवों के महत्व को कक्षा में होने वाली चर्चा के माध्यम से एक मान्यता पाते हुए देखा। जब शिक्षा के क्षेत्र में ‘मौखिक भाषा विकास’ का कोई उल्लेख पढ़ना सिखाने को लेकर होने वाली चर्चाओं में नहीं होता था, उस दौर में भी प्रोफ़ेसर कृष्ण कुमार की किताब ‘बच्चों की भाषा और अध्यापक’ पढ़ते हुए और बच्चों का सीखना सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता ने क्लासरूम के रोजमर्रा के अनुभवों से बच्चों के साथ बालगीत करने, कविताओं में उनके गाँव, गली, मोहल्ले और आसपास के परिवेश को खींच लाने की संजीवनी प्रदान की।

बच्चों में गणित विषय का डर दूर करने और इसके शिक्षण को रोचक बनाने में पूजा जी ने काफी सक्रियता के साथ काम किया है।

क्लासरूम में होना बड़े सौभाग्य की बात है और ऐसा अवसर नियमित रूप से केवल शिक्षकों को मिलता है। इसलिए इस अवसर को सजगता के उपयोग करिए, प्रलय पर सृजन व निर्माण को प्राथमिकता दीजिए और शिक्षक दिवस को प्रत्येक दिन अपनी ज़िंदगी में सार्थक बना दीजिए। एक बार की बात है कि मैं स्कूल के एक शानदार दिन बिताकर वापस घर आया और घर लौटकर याद आया कि आज शिक्षक दिवस है। खुद को भुला देने वाले और जीवन को वर्तमान की धड़कन के साथ जोड़ देने वाले ऐसे लम्हों में हमें अपनी मौजदूगी और अपनी भूमिका की सार्थकता का अहसास होता है।

एक शिक्षक को हर दिन पुरस्कार मिलता है और शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया में यह सहज ही शिक्षकों को बच्चों की तरफ से सुलभ होता है। सारे पुरस्कार आपकी इस भूमिका को फिर से बताने का जरिया मात्र हैं, आपके योगदान को रेखांकित करने और अन्य साथियों को प्रेरित करने वाली कहानियां हैं। एक सच्चे किरदार के प्रति समभाव से भर देने वाली ‘भावना’ के रूप में उदार मन से इसे ग्रहण करिए और अपने पथ पर सदैव चलते रहिए। अपनी रौशनी से आसपास के चिरागों को भी रौशन करते रहें, इन्हीं शब्दों के साथ आपको ‘शिक्षक दिवस’ की हृदय की गहराइयों से बहुत-बहुत बधाई और धन्यवाद।

(इस लेख पर आपके सुझाव व टिप्पणी का स्वागत है। आप एजुकेशन मिरर को फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो कर सकते हैं। अपने आलेख और सुझाव भेजने के लिए ई-मेल करें educationmirrors@gmail.com पर और ह्वाट्सऐप पर जुड़ें 9076578600 )

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