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‘रफ कॉपी’ की कहानी



एक बच्चे की रफ कॉपी के नोट्स

हर सब्जेक्ट की कॉपी अलग अलग बनती थी, परंतु एक कॉपी ऐसी थी जो हर सब्जेक्ट संभालती थी, उसे हम रफ़ कॉपी कहते थे, यूं तो रफ़ मतलब खुरदुरा होता है, परंतु वो रफ़ कॉपी हमारे लिए बहुत कोमल थी!

कोमल इस सन्दर्भ में कि उसके पहले पेज पर हमें कोई इंडेक्स नहीं बनाना होता था, न ही शपथ लेनी होती थी की इस कॉपी का एक भी पेज नहीं फाड़ेंगे, इसे साफ़ साफ़ रखेंगे! वो कॉपी पर हमारे किसी न किसी पसंदीदा व्यक्तित्व का चित्र होता था,वो कॉपी जिसके पहले पन्ने पर सिर्फ हमारा नाम होता था, और आखिरी पन्नों पर अजीब सी कलाकृतियां, राजा-मंत्री-चोर-सिपाही या फिर पर्ची वाले क्रिकेट का स्कोरकार्ड।

यादों का पिटारा थी रफ कॉपी

उस रफ़ कॉपी में बहुत सी यादें होती थीं, जैसे अनजानी दोस्ती अनजाना सा गुस्सा, कुछ उदासी, कुछ दर्द, हमारी रफ़ कॉपी में ये सब कोड वर्ड में लिखा होताथा, जिसे डिकोड नहीं किया जा सके!

यह तस्वीर अहमदाबाद के एक सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे योगेश ने बनाई है।

उस पर अंकित कुछ शब्द, कुछ नाम, कुछ चीज़े ऐसी थीं जिन्हें मिटाया जाना हमारे लिए असंभव था, हमारे बैग में कुछ हो या न हो वो रफ़ कॉपी जरूर होती थी! आप हमारे बैग से कुछ भी ले सकते थे लेकिन रफ़ कॉपी नहीं!

समय इतना बीत गया की अब कॉपी हीं नहीं रखते हैं, रफ़ कॉपी जीवन से बहुत दूर चली गयी है, ! हालाँकि अब बैग भी नहीं रखते की रफ़ कॉपी रखी जाएँ, वो खुरदुरे पन्नों वाली रफ़ कॉपी अब मिलती ही नहीं, हिसाब भी नहीं हुआ है बहुत दिनों से, न ही प्रेम का, नही गुस्से का! यादों की भाग गुणा का समय नहीं बचता! अगर कभी वो रफ़ कॉपी मिलेगी तो उसे लेकर बैठेंगे, फिर से पुरानी चीज़ें खँगालेंगे, हिसाब करेंगे, और आखिरी के पन्नों पर राजा-मंत्री-चोर-सिपाही खेलेंगे!

(फ़ेसबुक पर प्रकाशित इस पोस्ट के लेखक का नाम पता नहीं चला। अगर हमें इसके लेखक के बारे में कुछ जानकारी मिलती है तो अवश्य साझा करते हैं।)

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