पाठ्यपुस्तक कैसे महत्वपूर्ण बन गई?
पाठ्यपुस्तक विद्यार्थी के जीवन में कब और क्यों इतनी महत्वपूर्ण बन गई?
इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं, “आधुनिक शिक्षा व्यवस्था का जन्म औपनिवेशिक परिस्थितियों में हुआ। इस सिलसिले में यदि आप 19वीं सदी की शिक्षा व्यवस्था के इतिहास को देखेंगे तो एक बड़ी बुनियादी बात पाएंगे कि उसमें पाठशालाएं शिक्षक के द्वारा ही संचालित की जाती थीं। पाठ्यक्रम व पाठ्यसामग्री भी छपी हुई नहीं थीं। पारम्परिक पाठ्यपुस्तक थी जो प्रायः स्थानीय जरूरतों की पूर्ति करती थी। एक स्थान में दी जाने वाली शिक्षा या पाठ्य सामग्री किसी दूसरे स्थान की शिक्षा से कुछ भिन्न या कुछ समान थी।”
भाषा व गणित शिक्षण
शिक्षकों पर इसके असर के बारे में वे बताते हैं, “शिक्षक का खुद का बौद्धिक जीवन पहले कितना भी सीमित रहा हो, उसके शासकीय कर्मचारी बन जाने के बाद और भी संकीर्ण हो गया। अब शिक्षक मानो पाठ्यपुस्तक पढ़ाने के लिए ही नियुक्त होने लगा। इस तरह से पाठ्यपुस्तक की केंद्रीयता जो 19वीं सदी के उत्तरार्ध में बननी शुरू हुई, वह आज तक स्थिर है।”
(प्रो. कृष्ण कुमार का यह साक्षात्कार दिशा नवानी ने किया जो टाटा इस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज में शिक्षा विभाग में एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं। यह साक्षात्कार संदर्भ पत्रिका में प्रकाशित हुआ।)