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लिट्रेसी हीरोज़-1: महेन्द्र सर की कक्षा में नियमित स्कूल आने वाले 80-90 फीसदी बच्चे पढ़ते हैं किताब


राजस्थान का सिरोही ज़िला माउण्ट आबू के पहाड़ों और सुहाने मौसम के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। सौंफ के खेतों की खुशबू यहाँ से निकलकर देश के विभिन्न हिस्सों में पहुंचती है। आदिवासी अंचल के बारे में तमाम तरह का मान्यताएं और धारणाएं बीते कुछ सालों में बदली हैं। शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ती जागरूकता ने इस क्षेत्र को एक नई पहचान दिलाई है। इस क्षेत्र में 2 सालों तक ‘लिट्रेसी कार्यक्रम’ में काम करने के दौरान ऐसे शिक्षकों की कहानियों से रूबरू होने का मौका मिला जो वास्तव में ‘लिट्रेसी हीरोज़’ कहलाने के हक़दार है। उनकी कहानियां लिखना, उनके योगदान के प्रति आभार जताने जैसा है। तो लिट्रेसी हीरोज़ की पहली सीरीज़ में पढ़िए राजस्थान के उच्च प्राथमिक विद्यालय के एक शिक्षक महेन्द्र सिंह दहिया की कहानी।

सरकारी विद्यालय में पिछले 19 सालों से कक्षा 1 से 5 तक के बच्चो को हिन्दी पढ़ाने के काम पूरी लगन के साथ कर रहे हैं। इन 19 वर्षां की सेवा के दौरान 3 विद्यालयों में उन्होनें कार्य किया है। ये अपने कार्य के प्रति पूरी तरह से समर्पित रहते है तथा हमेशा समय के पाबंद रहते है। साथी शिक्षकों के लिए हमेशा बच्चों के साथ कार्य को लेकर आदर्श रूप में अपना उदाहरण पेश किया है। पढ़ना-लिखना सिखाने के बारे में उनके क्या सुझाव हैं, पढ़िए विस्तार से।

बच्चों को पढ़ना-लिखना सिखाने के लिए ख़ास टिप्स

बच्चों के परिवेश को समझना है जरूरी

जरूरत के अनुसार शिक्षण के तरीके में करें बदलाव

साल 2015 से पहले भाषा शिक्षण का तरीका

साल 2015 से पहले अपने भाषा शिक्षण के तरीके के बारे में बताते हुए महेन्द्र सर कहते हैं कि वे भी पहले प्रतिदिन अ से ज्ञ तक बच्चों से बुलवाना व लिखवाने का कार्य करवाते थे । तथा फिर एक एक मात्रा को बताना तथा उसका अभ्यास करवाने पर बल दिया करते थे। इस दौरान बहुत सारा समय लग जाता था और जो बच्चों के सीखने का प्रतिशत भी प्रतिदिन विद्यालय आने वालों का 50-60 प्रतिशत ही बच्चे केवल किसी पाठ को केवल डिकोड भर कर पाते थे ।

भाषा शिक्षण में बदलाव से 85 से 90 फीसदी बच्चे पढ़ पाते हैं किताब

चूकि कार्य के दौरान इनकी सकारात्मक सोच रहती है, अतः बच्चों को सिखाने वाला कोई नया तरीका जिससे बच्चों को फायदा मिल सके उसको आसानी से स्वीकार करते है। इसी सोच से इन्होने रूम टू रीड के लिट्रेसी कार्यक्रम का अपनी कक्षा में सफल रूप से क्रियान्वयन किया और इस तरीके पर कार्य करने के दौरान स्वीकारोक्ति बनी कि बच्चों को वर्णां के साथ साथ मात्रा व शब्दों को शब्द के रूप में पढ़ने के अभ्यास का अवसर देना चाहिए।

इससे कुछ समय के बाद ही बच्चों को लगने लगता है कि उनको पढ़ना आ गया और उनके पढ़ने के प्रति लगाव बढता जाता है।अभी बच्चों के सीखने का प्रतिशत भी प्रतिदिन विद्यालय आने वालों का 85-90 प्रतिशत बच्चे किसी पाठ को समझ के साथ धाराप्रवाह से पढ पाते है। यानि वे न सिर्फ किताब पढ़ते हैं, बल्कि उस पाठ विशेष से जुड़े सवालों के जवाब भी दे पाते हैं।

मैं चाहता हूँ कि हर बच्चा पढ़ना-लिखना सीखे

महेन्द्र सर चाहते है कि विद्यालय में कोई भी बच्चा ऐसा नहीं हो जिसको पढ़ना-लिखना नहीं आता हो। इसके लिए 1 से 5 तक के सभी बच्चों का आकलन कर उनको पढ़ाने की योजना बनाते है। फिर उन बच्चों को एक नया कौशल सिखाने के लिए जुट जाते हैं। अभी 2 साल के दौरान कक्षा 1 व 2 को पढ़ाने को लेकर उनके जो अनुभव रहे हैं, उनको वे कक्षा 5 के बच्चों को पढ़ना-लिखना सीखाने के लिए काम में ले रहे है और जैसे ही बच्चे पढने लगे है , उनके चेहरे पर एक खुशी आती है, जिसे वे सभी शिक्षक साथियों के साथ शेयर करते है।

महेंद्र सर सही अर्थों में एक ‘लिट्रेसी हीरो’ वाली भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं। उन्होंने शिक्षक प्रशिक्षणों के दौरान जो सीखा है, उसे कक्षा-कक्ष में क्रियान्वित करने का प्रयास सफलतापूर्वक कर रहे हैं। अपने अनुभवों को अन्य शिक्षक साथियों के साथ साझा कर रहे हैं। अपने विद्यालय के पुस्तकालय तक उन्होंने पढ़ना सीखने की प्रक्रिया में लगे बच्चों के लिए पहुंचना आसान किया। इस प्रयास ने न सिर्फ बच्चों को पढ़ना-लिखना सिखाया है, बल्कि उनके पढ़ने की आदत का भी विकास किया है ताकि बच्चे आजीवन पाठक बने रहें।

एजुकेशन मिरर की पूरी टीम की तरफ से महेंद्र जी के प्रयासों को सलाम है। अगर आप भी ऐसे प्रयास कर रहे हैं तो साझा करें, अपनी कहानी एजुकेशन मिरर की ख़ास सीरीज़ ‘लिट्रेसी हीरोज़’ के लिए।

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