प्रायवेट स्कूल में बच्चे पढ़ना कैसे सीख जाते हैं?
प्रायवेट स्कूल में बच्चे पढ़ना कैसे सीख जाते हैं? एक सरकारी स्कूल के प्रधानाध्यापक ने निजी स्कूल के प्रधानाध्यापक से यही सवाल पूछा। उनको जवाब मिला, “हम बच्चों की उम्र देखकर एडमीशन देते हैं। पहली क्लास में बच्चे का एडमीशन तभी करते हैं जब वह छह साल का हो। इससे कम उम्र का होने पर एलकेजी और यूकेजी में एडमीशन कर लेते हैं।”
नियमित काम का कोई विकल्प नहीं है
सबसे पहले हम वर्ण सिखाते हैं। इसके बाद मात्राएं सिखाते हैं। इस तरह से नियमित अभ्यास से बच्चा पढ़ना सीख लेता है। जो धीरे-धीरे और पुख्ता हो जाता है। इस तरीके से बच्चे जल्दी पढ़ना-लिखना सीख लेते हैं। इन बच्चों को घर पर भी पढ़ाया जाता है। सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चों को अपने घर पर पढ़ने का माहौल नहीं मिलता, इसलिए भी उनको पढ़ना सीखने में थोड़ा वक्त लगता है।
एक प्रधानाध्यापक की तरफ से ऐसे अच्छे सवालों की पहल का हमें स्वागत करना चाहिए। सही अर्थों में ‘एकेडमिक लीडरशिप’ इसे ही कहते हैं। हमारे स्कूलों में इसी तरीके के नेतृत्व की जरूरत है जो संस्थान के शैक्षिक स्तर को बढ़ाने की दिशा में प्रभावशाली क़दम उठाएं।
इसके लिए एक प्रधानाध्यापक का प्रारंभिक साक्षारता (अर्ली लिट्रेसी) को समझना और भाषा कालांश के आब्जर्बेशन के दौरान सही फीडबैक देने वाली स्थिति में होना काफी मदद करता है। इससे भाषा के शिक्षक को लगता है कि उसके प्रधानाध्यापक उसके काम को गहराई से समझते हैं। उसकी अच्छी कोशिशों की सराहना करते हैं।
लीडरशिप से बदलाव संभव है
अर्ली लिट्रेसी वाला काम जिस स्कूल में हो रहा है, वहां के प्रधानाध्यापक को इस कार्यक्रम के बारे में क्या-क्या पता होना चाहिए। इस मुद्दे पर केंद्रित एक किताब ‘A Principal’s Guide to Literacy Instruction’ हाल ही में मिली।यह एक प्रधानाध्यापक को अपने स्कूल में चलने वाले लिट्रेसी कार्यक्रम को प्रभावशाली लीडरशिप का इस्तेमाल करने के लिए प्रभावशाली रणनीति बनाने में मदद कर सकती है। जैसा कि सरकारी स्कूल के प्रधानाध्यापक बता रहे थे कि इस साल चाहे जो भी हो जाये पहली क्लास में किसी भी कम उम्र वाले बच्चे का एडमीशन नहीं करना है। इससे एक शिक्षक की साल भर की मेहनत जाया होती है और कोई परिणाम भी नहीं मिलता है। यह भी एक तरह की रणनीति है जो एडवांस में प्लान बनाने में मदद करती है।
‘स्वतंत्र पाठक’ के मायने
कोई बच्चा जो अपनी उम्र व जरूरत की चीज़ बिना किसी की मदद के पढ़ सकें और समझ सके। पढ़ने का आनंद ले सके। पढ़ने के मामले में बच्चा अगर ऐसी स्वतंत्रता हासिल कर लेता है तो उसे स्वतंत्र पाठक कहते हैं। यानि स्वतंत्र पाठक बनने के लिए समय के साथ पठन कौशल का विकास होना जरूरी है, यह तभी संभव है जब बच्चे के भीतर नियमित रूप से पढ़ने की आदत विकसित हो।
इस लेख के बारे में अपनी टिप्पणी लिखें