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केंद्र सरकार ने शिक्षा बजट से कतरे 11 हज़ार करोड़ रूपए

केंद्र सरकार ने शिक्षा बजट से 11,000 करोड़ रूपए काटने का फ़ैसला किया है। यानि भौतिक आधारभूत संरचना को सामाजिक क्षेत्र (शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा और पोषण) से ज़्यादा वरीयता दी जा रही है। यह सवाल संस्कृत बनाम जर्मन की बहस से ज़्यादा गंभीर है। इसके पहले सरकार ने मनरेगा को सीमित करने की बात कही थी। अभी योजना आयोग को समाप्त करने की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। कुछ मुख्यमंत्री इस योजना का विरोध कर रहे हैं, लेकिन अधिकतर लोग योजना आयोग में बदलाव के पक्ष में है। योजना आयोग की समाप्ती का अर्थ होगा कि सरकार का निजी क्षेत्र को बढ़ावा देना और सामाजिक क्षेत्र को निजी क्षेत्र के रहमो-करम पर छोड़ देना।

शिक्षा क्षेत्र के लिए वर्तमान का समय संक्रमण का दौर है। राजस्थान सरकार ने कुछ महीने पहले 17,129 स्कूलों को 13,565 स्कूलों में मर्ज करने के आदेश दिये थे। इस नतीजे का क्या असर होगा? यह तो आने वाला वक़्त बताएगा। लेकिन राज्य सरकार के इस फ़ैसले से बहुत सारे सवाल उठ रहे हैं कि सरकार ने इस फ़ैसले का क्रियान्वय करने के लिए पहले से कोई रणनीति नहीं बनाई। स्कूल से जुड़े विभिन्न पक्षों की राय जानने की कोशिश नहीं की गई। शिक्षा का अधिकार क़ानून कहता है कि एक किलोमीटर की सीमा के भीतर बच्चों के लिए स्कूल मुहैया होना चाहिए। इन सारी बातों का कितना ध्यान इस फ़ैसले के दौरान रखा गया है। यह तो ज़मीनी अध्ययन के बाद ही सामने आ सकेगा।

राजस्थान के एक शिक्षक ने बातचीत के दौरान कहा कि इससे शिक्षकों की नौकरियां कम होंगी। लेकिन इसके अलावा उन्होंने एक सकारात्मक पहलू की तरफ़ संकेत करते हुए कहा कि इससे एकल शिक्षक स्कूलों में पढ़ाने वाले अध्यापकों की जवाबदेही और जिम्मेदारी बढ़ी है। उनके बारे में अक्सर देर से स्कूल आने और बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान न देने की शिकायतें पहले भी आती रही हैं। राजस्थान में शिक्षा क्षेत्र से जुड़े एक अधिकारी कहते हैं कि सरकार बच्चों को बस की सुविधा मुहैया कराने और स्कूलों में क्लर्क नियुक्त करने की तैयारी कर रही है ताकि डाक के काम को हल्का किया जा सके।

स्कूलों में सतत और व्यापक मूल्यांकन कार्यक्रम (सीसीई) की वास्तविक स्थिति के बारे में अधिकारी मानते हैं कि  सीसीई लागू करने के बाद सपोर्ट सिस्टम विकसित करने की जरूरत है। केवल एक बार (वन टाइम) प्रशिक्षण को टीचर पचा नहीं पाते हैं। इसके अलावा स्कूलों की आधारभूत संरचना ख़राब है। अगर सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों से मिलने वाली प्रतिस्पर्धा का मुकाबला करना है तो सरकारी स्कूलों का कायाकल्प करने की दिशा में भी सरकार को ध्यान देेने की आवश्यकता है। स्कूलों मे एसएमसी व पीटीएम सक्रिय नहीं है। उनका स्कूलों से उतना जुड़ान नहीं हो पा रहा है, जितना अपेक्षित है।

अभी राज्य सरकार राजस्थान में 222 स्कूलों को पंचायत स्तर पर मॉडल स्कूल बनाने की दिशा में विचार कर रही है।  सरकार की मंशा है कि पहली से 12वीं तक का एक मॉडल स्कूल पंचायत स्तर पर बनाया जा सके, जहाँ सभी बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल सके। प्राथमिक स्कूलों को बड़े स्कूलों (उच्च प्राथमिक व सीनियर स्कूलों) के साथ शामिल करने के बारे में उन्होंने कहा कि 12वीं के स्कूल का प्रिंसिपल बीईओ के समकक्ष होता है। इसलिए प्राथमिक स्कूल के एकल शिक्षकों पर मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ेगा। इससे प्रशासनिक नियंत्रण आसान होगा। लेकिव बच्चों के सामने चुनौती है कि कहीं-कहीं स्कूल दूर पड़े रहे हैं। लेकिन स्टॉफ़ बढ़ने जैसी सकारात्मक चीज़ें भी हो रही है।

शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव की दिशा में शैक्षिक कामों से जुड़ी प्रशासनिक इकाइयों के बीच संवाद की बहुत ज़्यादा आवश्यकता है। इसको एक उदाहरण के माध्यम से समझा जा सकता है कि अगर जिला शिक्षा एवम प्रशिक्षण संस्थान (डाइट) भविष्य के बदलावों के अनुरूप शिक्षकों को तैयार करे, शिक्षा के क्षेत्र में शोध कार्य करे, इससे मिलने वाले निष्कर्षों को ब्लॉक शिक्षा अधिकारी, ज़िला शिक्षा अधिकारी (प्राथमिक) व ज़िला शिक्षा अधिकारी के साथ साझा करें और सभी के बीच प्रशासनिक व शैक्षिक मसलों पर सुझावों व विचारों का आदान-प्रदान हो तो ज़मीनी स्तर पर न केवल विभिन्न योजनाओं का क्रियान्वय बेहतर होगा, बल्कि शिक्षा में गुणवत्ता सुधार की कोशिशों में बाधा बनने वाली प्रशासनिक अड़चनों को भी दूर किया जा सकेगा। इस कार्य को ज़िला अधिकारी अपने स्तर से रुचि लेकर कर सकते हैं ताकि शिक्षा के क्षेत्र में संवाद के माध्यम से समाधान और बदलाव की एक नई कहानी लिखी जा सके।

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