Trending

कहानी के शैक्षिक महत्व को अनदेखा क्यों किया जाता है?

किसी विद्यालय में जब बच्चों को कहानी सुनाने के लिए शिक्षक साथियों से बात होती है तो आमतौर पर कहानी और पाठ्यक्रम को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश होती है।

एक बार बच्चों को नियमित कहानी सुनाने और किताबों का लेन-देन करने के सवाल पर एक शिक्षक साथी ने कहा, “आधे से ज्यादा पाठ्यक्रम बाकी है और आप चाहते हैं कि मैं बच्चों को कहानी सुनाऊं।”

भारत में कहानी की परंपरा

कहानी सुनाने की भारत में लंबी परंपरा रही है। हर राज्य और उसके विभिन्न हिस्सों में अनेक लोककथाओं और कहानियों को सुनाने के कई तरीके प्रचलन में रहे हैं। जैसे लोरी, कांवड़ विधा, कठपुतली और कहानी को लय में गाकर सुनाने वाले तरीके। पर बीते कुछ सालों में पाठ्यक्रम और प्रतिस्पर्धा के बढ़ते दबाव में ऐसा लगता है जैसे कहानी कहीं खो गई है।

कहानी का शैक्षिक महत्व

जबकि इसके शैक्षिक महत्व को शिक्षाविदों व बाल साहित्यकारों द्वारा बार-बार रेखांकित किया जाता है।

एनसीईआरटी के रीडिंग डेवेलपमेंट सेल की तरफ से प्रकाशित पुस्तक ‘पढ़ना सिखाने की शुरुआत’ में कहानी के महत्व को यों रेखांकित किया गया है, “कहानी बच्चों को आनंदित करती है। कहानी से बच्चे सब्र से सुनना, अनुमान लगाना, कहानी के पात्रों व घटनाक्रम को याद रखना तो सीखते ही हैं, इससे उनकी एकाग्रता व स्मरण शक्ति का भी प्रशिक्षण होता है। एक बार बच्चों का किताबों की दुनिया से परिचय हो जाए तो वह उसी में रच-बस जाना चाहता है।”

ऐसे में बच्चों को कहानी से माध्यम से किताबों से दोस्ती और जुड़ने का अवसर मुहैया कराना बेहद अहम हो जाता है।

इस लेख के बारे में अपनी टिप्पणी लिखें

Discover more from एजुकेशन मिरर

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading