‘पेशेवर शिक्षक’ के मायने क्या हैं?
पिछले कुछ सालों में शिक्षा के क्षेत्र में बहुत से नए संप्रत्ययों का इस्तेमाल शुरू हुआ। ये संप्रत्यय अपने अर्थ के कितने करीब पहुंचे और शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के व्यवहार में कितने घुल-मिल पाए, यह सवाल विमर्श का है।
मगर जिस तरीके से शिक्षकों को नए नज़रिए से देखने की माँग पिछले कुछ सालों से हो रही है, उसे लेकर शिक्षक समुदाय के बीच एक दुविधा और संदेह का माहौल है। शिक्षक केवल सुगमकर्ता मात्र है, यह बात शिक्षक प्रशिक्षकों के बीच तो स्वीकार्य हो गई है। मगर शिक्षक साथियों को लगता है कि उनसे उनका अधिकार छीना जा रहा है, उन्हें उनकी सम्मानित भूमिका से हटाकर नए संदर्भों में पेश करने की कोशिश हो रही है जो भारतीय परिप्रेक्ष्य में फिट नहीं बैठती है।
‘शिक्षक को पेशेवर कहने की माँग नई नहीं है’

सेमीनार के दौरान पेशेवर शिक्षक के अर्थ व बनने की प्रक्रिया पर शोध पत्र पेश करते हुए मधूलिका झा।
इस विषय पर अपने विचार रखते हुए दिल्ली के अम्बेडकर विश्वविद्यालय में रिसर्च एसोसिएट के बतौर काम करने वाली मधुलिका झा कहती हैं, “शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षक को पेशेवर का दर्ज़ा देने की बहस नई नहीं है। इंसानी ज़िंदगी की बेहतरी के लिए प्रतिबद्ध चिकित्सा विज्ञान और वकालत जैसे पेशों के समकक्ष शिक्षा को रखकर देखने का दावा यह माँग करता है कि एक पेशेवर के रूप में शिक्षक के पेशे को परिभाषित किया जाए।”
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वे कहती हैं, “और तब यह देखा जाए कि शिक्षण का पेशा उन मानकों पर खरा उतरता है या नहीं। केल्डर हेड और डोव्नी के पेशे की अवधारणा के अनुसार पेशे की निम्न शर्तों को सामने रखती हैं –
- शिक्षण और अनुभव के माध्यम से अर्जित विशेष ज्ञान या नॉलेज बेस
- उपभोक्ता के साथ ख़ास तरह का रिश्ता और सेवा करने की प्रवृत्ति
- जन नीतियों और न्याय के मुद्दों पर ख़ास ज्ञान, ताकि निर्णय लेने और समस्या समाधान में इसका उपयोग हो
- राज्य और वाणिज्य के प्रभाव से उसके पेशेवर निर्णयों का स्वतंत्र होना।”
‘क्षमता और प्रतिबद्धता’ यानि पेशेवर शिक्षक
हाल ही में शिक्षा के सरोकार विषय पर केंद्रित सेमीनार में शिक्षाविद रोहित धनकर ने कहा, “पेशेवर शब्द का इस्तेमाल शिक्षा के क्षेत्र में एक पारिभाषिक शब्दावली के रूप में किया जा रहा है। जिसका अर्थ बाकी प्रचलित अर्थों से ज्यादा विशिष्ट है। पेशेवर अध्यापक को क्षमताओं व प्रतिबद्धता के संदर्भ में देखा जाता है। उदाहरण के लिए हम किसी को भी ऑपरेशन थियेटर में मरीज के ऑपरेशन की अनुमति नहीं दे सकते, इसी तरीके से शिक्षा के जरिए सीखने-सिखाने का काम करने के लिए भी एक अपेक्षित दक्षता को हासिल करना जरूरी है। जैसे हर पेशे की एक नैतिकता होती है, वैसे ही इस पेशे की एक नैतिकता है जिसके निर्वहन की अपेक्षा अध्यापक से की जाती है।”
इस बात को आगे बढ़ाते हुए मधूलिका झा कहती हैं, “एक शिक्षक के मूल्य हैं कि वह उदार और खुले मस्तिष्क वाला हो। पुराने विचारों को त्यागकर नए को अपनाने रचने का साहस उसके भीतर हो और पेशे के प्रति समर्पण का भाव हो। इसके साथ ही उसमें तार्किकता और पढ़ाने की व्यावहारिक क्षमताओं का भी होना जरूरी है।”
Thank you so much.
Your teacher history is very nice and moral .