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पहली से पाँचवीं कक्षा तक के बच्चों को साथ ‘पढ़ाने की रणनीति’ कितनी सफल है?

cropped-how-children-learnकई बार ऐसा होता है कि पहली से पाँचवीं तक की कक्षा के बच्चे एक साथ बैठे होते हैं। इस स्थिति की चर्चा 2018 के असर रिपोर्ट के साथ-साथ मीडिया रिपोर्ट्स में भी हुआ है। ऐसी स्थिति का बच्चों के सीखने पर क्या असर पड़ता है? यह एक बेहद समसामयिक सवाल है जो पिछले कई सालों से हमारा पीछा कर रहा है और अभी भी अपने जवाब की राह देख रहा है। 

पहली कक्षा के बच्चों का विद्यालय में पहला साल होता है। वे सीखने के मामले में बाकी बच्चों की तुलना में शुरुआती स्तर पर होते हैं। वहीं बाकी बच्चे विद्यालय के परिवेश के साथ सहज होते हैं। वे शिक्षक के साथ भी सहज होते हैं। अगर कोई सवाल दोनों कक्षाओं के साथ काम करते समय एक साथ पूछा जाये तो ज्यादा संभावना इस बात की होती है कि दूसरी कक्षा के बच्चे जवाब दे रहे होते हैं। पहली कक्षा के भी कुछ बच्चे जवाब देते हैं। लेकिन पहली कक्षा इस तरह के साथ बैठने से नुकसान में होती है और दूसरी बात कि पहली कक्षा को जो पढ़ाया जा रहा है, वह दूसरी कक्षा के बच्चे पहले ही सीख चुके होते हैं। या फिर वह चीज़ उनके लिए पुनरावृत्ति भर होती है। ऐसे में बच्चों को ज्यादा उत्साह होता है बताने का कि वे फलां चीज़ तो अच्छे जानते हैं। जबकि उनको पहली कक्षा से ज्यादा ऊंचे स्तर की चीज़ें सीखने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।

कई कक्षाओं को साथ बैठाकर पढ़ाने से क्या होगा?

यही बात तीसरी और चौथी कक्षा के संदर्भ में भी लागू होती है। भाषा, गणित के साथ-साथ यह बात लाइब्रेरी कालांश के लिए भी लागू होती है। क्योंकि कक्षा का स्तर बदलते ही किताबों का चुनाव, चर्चा के सवाल, संवाद की भाषा भी बदलती है। अगर कुछ सवाल समान भी रहें तो बच्चों की प्रतिक्रिया बदल जाती है। पाँचवीं के बच्चे सीखने के मामले में बाकी बच्चों की तुलना में ज्यादा स्पष्ट स्थिति में होते हैं, कुछ बच्चे किताब पढ़ रहे होते हैं। तो कुछ बच्चे सीखने के मामले में बहुत शुरूआती स्तर पर होते हैं, ऐसी स्थिति वाले बच्चों को ज्यादा सपोर्ट की जरूरत होती है ताकि वे बुनियादी समस्याओं का समाधान करते हुए सीखने की ज्यादा अच्छी स्थिति में आ सके। पियर लर्निंग या बच्चों के एक-दूसरे से सीखने वाली स्थिति कमज़ोर बच्चों के प्रदर्शन को बेहतर करने की एक कारगर रणनीति है।

इस सवाल के संदर्भ में अंतिम निष्कर्ष यही है कि हर कालांश के साथ काम अलग-अलग होना चाहिए। अगर कमरे की कमी है कि तो एक ही कक्षा में दोनों कक्षाओं को अलग-अलग बैठाना सही होगा। इससे आप दोनों कक्षाओं पर कोई टॉपिक पढ़ाते समय ध्यान दे पाएंगे। उदाहरण के तौर पर पहली कक्षा के साथ कई बार आँगनबाड़ी में जाने वाले बच्चे भी बैठे होते हैं। या फिर बड़ी कक्षाओं के बच्चों के साथ उनके छोटे भाई-बहन बैठे होते हैं।

निष्कर्ष क्या है?

इससे बड़े बच्चों का ध्यान छोटे बच्चों को संभालने की तरफ चला जाता है और कक्षा में होने वाली पढ़ाई पर वे ध्यान नहीं दे पाते हैं। सीखने के मालले में पूरी कक्षा एक स्तर पर रहे, इसके लिए कोई बच्चे छूटे नहीं वाली रणनीति बेस्ट है। अगर हमारी हर बच्चे पर नज़र होगी। हम ज्यादा से ज्यादा बच्चों को असेंबली से लेकर क्लासरूम व अन्य विद्यालयी गतिविधियों में भागीदारी देंगे तो हर बच्चे को सीखने व आत्मविश्वास हासिल करने का मौका मिलेगा। यह उनके शैक्षिक के साथ-साथ सह-शैक्षिक क्षेत्रों में प्रदर्शन को बेहतर बनाने की दिशा में कारगर होगा। इस बारे में आप क्या सोचते हैं, साझा करिये अपने अनुभव एजुकेशन मिरर के साथ।

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