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इंट्रोवर्ट बच्चों को कैसे पढ़ाएं?

बच्चे, पढ़ना सीखना, बच्चे का शब्द भण्डार कैसे बनता हैहर बच्चे का स्वभाव अलग होता है। कोई बच्चा स्कूल में बहुत आसानी से नये दोस्त बना लेता है। तो वहीं कुछ बच्चे दोस्त बनाने के लिए लंबा वक्त लेते हैं। वे शिक्षकों के सवालों से भी उतने सहज नहीं होते, जितने क्लास के अन्य बच्चे।

मनोविज्ञान की शब्दावली में नये परिवेश, परिस्थिति व लोगों के साथ बहुत सहजता से सामंजस्य बैठा लेने वाले लोगों को बहिर्मुखी (एक्सट्रोवर्ट) कहते हैं। जबकि इसके विपरीत थोड़ा रिजर्व रहने वाले, लोगों के साथ घुलने-मिलने में थोड़ा वक़्त लेने वाले लोगों को अंतर्मुखी (इंट्रोवर्ट) कहा जाता है।

बच्चों को ध्यान से सुने

बच्चे भी अपने स्वभाव के हिसाब से अंतर्मुखी और बहिर्मुखी होते हैं। आमतौर पर शिक्षकों का ध्यान उन बच्चों की तरफ होता है जो हर सवाल के जवाब में अपना हाथ सबसे ऊपर करते हैं। एक शिक्षिका कहती हैं कि कई बार शिक्षक समय के अभाव में उन्हीं बच्चों को वरीयता देते हैं जो बहिर्मुखी (एक्सट्रोवर्ट) होते हैं, ऐसे में उन बच्चों को आगे आने का मौका नहीं मिलता तो इंट्रोवर्ट या अंतर्मुखी होते हैं। ऐसे बच्चे चीज़ों को चुपचाप देखना पसंद करते हैं। उनको सवालों के जवाब आते हैं, मगर वे बाकी बच्चों की तरह सवालों का जवाब देने की हड़बड़ी में नहीं होते।

अपनी क्लास के एक बच्चे का जिक्र करते हुए शिक्षिका कहती हैं, “पांचवी क्लास में पढ़ने वाले उस बच्चे को सवालों के जवाब पता होते हैं। मगर वह बताने के लिए आगे नहीं आता। अगर उससे बोर्ड पर किसी सवाल का जवाब लिखने के लिए कहो तो वह बड़ी आसानी से सवालों के जवाब दे देता है।” हाल ही में एक स्कूल में हमेशा गुमशुम सी रहने वाली बच्ची से शिक्षक ने पढ़ाए गये पाठों के बारे में पूछा तो उनको यह जानकर हैरानी हुई कि वह वर्णों को तेज़ी से सीख रही हैं। हालांकि मात्राओं के संप्रत्यय को समझने में बाकी बच्चों की तुलना में थोड़ा ज्यादा समय लग रहा है।

नये प्रयासों की तारीफ करें

क्लास के सकारात्मक माहौल का इंट्रोवर्ट बच्चों के ऊपर सकारात्मक असर होता है क्योंकि ऐसी कक्षा में हर बच्चे को सामने आने। अपनी बात रखने। बाकी बच्चों के साथ बातचीत के ज्यादा मौके मिलते हैं। अपनी क्लास के बच्चों से डरने वाला एक बच्चा सातवीं क्लास में अपनी बड़ी बहन के साथ बैठता था। बातचीत में पता चला कि उसे अपनी क्लास में पढ़ने वाले बाकी बड़े बच्चों से डर लगता है। इसलिए वह अपनी क्लास में नहीं बैठता। जब उसको सातवीं क्लास के बच्चे अपनी क्लास में बैठने के लिए उठाते तो वह उनको दांत काटने की कोशिश करता।

एक दिन उसे भाषा शिक्षक ने अपनी क्लास में बाकी बच्चों की मदद से मंगवाया। मगर वह बहुत जोर-जोर से रो रहा था। जब धीरे-धीरे वह शांत हुआ तो उसने अपने पास में रखी एक कहानी की किताब को अपने पास से दूर ढकेल दिया, जो भाषा शिक्षक की तरफ से उसे दी गई थी। मगर थोड़ी देर बाद जब लायब्रेरी में सारे बच्चों को किताबों को देखने की पूरी छूट दी गई तो वह बाकी बच्चों के साथ किताबों में अपनी पसंद की किताबें खोज रहा था। एक किताब देखने के बाद दूसरी किताब लेने के लिए जा रहा था। आखिर में उसने पांच-छह किताबें चुनीं जो वह घर ले जाना चाहता था।

इससे यह पता चलता है कि अगर क्लास का माहौल इंट्रोवर्ट बच्चों को सुरक्षा का माहौल दे, उनको भरोसा दिलाये कि उनकी परवाह की जा रही है, उनको ख़ुद के मन के हिसाब से चीज़ों को करने का मौका वहां है तो ऐसे बच्चे बहुत आसानी से लोगों के साथ घुलमिल सकेंगे। उनके बारे में लोगों की राय भी बदलेगी कि फलां बच्चा तो डरपोक या शर्मीला है।

मदद नहीं मांगते ‘इंट्रोवर्ट्स’

एक सरकारी स्कूल में पहली बार स्कूल में पढ़ने जाने वाली लड़की  को साथ के बाकी सारे बच्चे परेशान करते थे। जब सारे बच्चे प्रार्थना के लिए लाइन में खड़े होते तो वह किनारे खड़े होकर सारे बच्चों को लाइन में लगता हुआ और प्रार्थना करता हुआ देखती। जब सारे बच्चे क्लास में बैठते तो वह अपना बैग लेकर क्लास के बाहर बैठती। शिक्षकों को उसका नाम तक नहीं पता था। वे उसे किसी और नाम से जानते थे, इस नाम की कई लड़कियां उस स्कूल में थीं। ऐसे में उनको लगा कि इसका भी वही नाम होगा।

इस लड़की को स्कूल में बाकी बच्चे मारते थे। ऐस में वह चुपचाप रोती। आँसू बहाती। मगर वह पलटकर जवाब न देती। इस बात को ग़ौर से देखने वाले उसके एक शिक्षक ने बच्ची को प्रोत्साहित किया कि अगर कोई उसे मारे तो वह भी पलटकर उसका जवाब दे। जब उसमे दो-तीन बच्चों की अपनी पाटी या तख्ती से मारा तो बाकी बच्चों के मन में एक बात घर कर गई कि यह बच्ची छोड़ेगी नहीं, तो धीरे-धीरे उन्होंने बच्ची को मारना छोड़ दिया।

एक बार मुझे उसके घऱ जाने का मौका मिला तो उसकी माँ ने बताया कि यह बच्ची पहले काफी डरती थी। घर से बाहर भी मेरे साथ ही जाती थी। मगर अब उसका डर थोड़ा कम हो रहा है। वह गाँव में घूमने में रुचि लेने लगी है। उनसे बातचीत करके लगा कि वह अपनी बेटी के स्वभाव को समझती हैं, हालांकि इंट्रोवर्ट या अंतर्मुखी जैसा शब्द उनके लिए बेहद अजनबी है। पर अपने बच्चों के स्वभाव को समझना हमें उनको मदद करने का रास्ता देता है।

प्रोत्साहन है जरूरी

अगर एक शिक्षक ने इस लड़की को परिस्थिति का सामना करने के लिए प्रोत्साहित न किया होता। अपने सपोर्ट का भरोसा न दिया होता तो वह बच्ची शायद स्कूल आने के नाम से भी घबराती और स्कूल में किसी दूसरे नाम से जानी जाती। कुछ महीनों तक किसी और के नाम से बुलाया जाना क्या होता है? इसके बारे में तो ऐसे बच्चे ही बता सकते हैं जो झिझक के कारण खुलकर लोगों को अपना नाम नहीं बता पाते, बहुत आसानी से लोगों के साथ घुलमिल नहीं पाते क्योंकि उनका मस्तिष्क एक अलग तरह से चीज़ों को देखने-समझने के लिए डिजाइन किया गया है।

ऐसे बच्चे अमूर्त विचारों को बहुत अच्छे से समझ पाते हैं। वे चीज़ों को अकेले करना ज्यादा पसंद करते हैं। समूह के साथ काम करने में उनको परेशानी होती है। मगर जब वे अकेले किसी काम को करने की कोशिश करते हैं तो अपना बेस्ट देते हैं। ऐसे अंतर्मुखी (इंट्रोवर्ट) बच्चों को ‘शर्मीले’ की लेबलिंग नहीं, हमारी तरफ से यह संकेत देने की जरूरत है कि हम उनको समझते हैं। उनके स्वभाव का सम्मान करते हैं। ऐसे बच्चों के ऊपर किसी काम को हड़बड़ी में करने का दबाव बनाने से बेहतर होगा कि उनको चीज़ों को अपने स्तर पर समझने का मौका दिया जाये।

इंट्रोवर्ट टीचर की कहानी

ऐसे शिक्षक भी होते हैं जो स्वभाव से अंतर्मुखी होते हैं, लोगों के सामने प्रशिक्षण के दौरान डेमो देने व अपनी बात रखने से घबराते हैं। मगर जब वे क्लास में बच्चों के साथ काम कर रहे होते हैं तो उनका उत्साह देखने लायक होता है। उनके काम का परिणाम धीरे-धीरे आना शुरू होता है। मगर जब वे अपने रंग में आते हैं तो उनकी क्लास का लर्निंग लेवल कई गुना ज्यादा होता है। क्योंकि उनकी क्लास में सक्रिय भागीदारी निभाने वाले बहिर्मुखी बच्चों के अलावा उन बच्चों को भी पर्याप्त मौका मिलता है तो स्वभाव से अंतर्मुखी या इंट्रोवर्ट होते हैं। क्योंकि ऐसे शिक्षक बच्चों के इस स्वभाव को समझते हैं। वे जानते हैं कि ऐसे बच्चों को आगे लाने के लिए प्रोत्साहित करना ही एक मात्र विकल्प है।

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