मनोविज्ञानः शिक्षण की एक प्रक्रिया है ‘स्कैफल्डिंग’

वाइगाट्सकी ने संभावित विकास क्षेत्र (ZPD) का संप्रत्यय भी दिया।
रूसी मनोवैज्ञानिक लिव सिमानोविच वाइगाट्सकी ने स्कैफल्डिंग का विचार दिया। शिक्षा के क्षेत्र में इस विचार का सफलतापूर्वक इस्तेमाल भाषा शिक्षण के लिए भारत में किया जा रहा है। छोटे बच्चों को इस तकनीक से बुनियादी बातों को सीखने में काफी मदद मिली है।
स्कैफल्डिंग का अनुवाद ढांचा-निर्माण किया गया है, इसका तात्यपर्य है छात्रों को सीखने और समस्या समाधान के लिए दिए जाने वाले समर्थन (Support) से है।
यह समर्थन संकेतों के रूप में, याद दिलाने वाले उपायों, शाबाशी, समस्या को छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँटना या कुछ ऐसा करना जिससे बच्चों को अपने आप या स्वतंत्र रूप से सीखने का मौका मिल सके, इन विभिन्न रूपों में हो सकती है।
स्कैफल्डिंग का व्यावहारिक उदाहरण
स्कैफल्डिंग एक प्रकार की शिक्षण प्रक्रिया है, जिसमें बच्चों को दिये जाने वाले निर्देश की मात्रा तथा स्वरूप उनके विकास के स्तर के अनुरूप होता है। बच्चों को दिया जाने वाले समर्थन या सहयोग तब वापस ले लिया जाता है जब बच्चा स्वतंत्र रूप से किसी काम को करने लग जाता है। इस प्रक्रिया में बड़े या शिक्षक की तरफ से उस समय समर्थन वापस लिया जाता है, जब बच्चा उच्च क्षमता व आत्मविश्वास के साथ के साथ कोई काम करना सीख जाता है।
नये कौशल सीखने के लिए उपयोगी है स्कैफल्डिंग
नये कौशलों के सीखने में स्कैफल्डिंग या ढांचा-निर्माण का यह तरीका काफी कारगर है। इसमें शुरू में अधिक समर्थन दिया जाता है, फिर उसे धीरे-धीरे हटा लिया जाता है।
पूरी कक्षा के साथ काम करते समय, हो सकता है कि कुछ बच्चों ने नये कौशल में परिपक्वता हासिल कर ली हो, मगर अन्य बच्चों के सीखने की संभावना को ध्यान में रखते हुए इसे जारी भी रखा जा सकता है। ताकि पूरी कक्षा के बच्चे लगभग समान स्तर पर पहुंचने में सफल हो सकें।
भाषा शिक्षण में महत्व
रूम टू रीड की शिक्षक संदर्शिक में भाषा शिक्षण की पूरी प्रक्रिया को स्कैफल्डिंग के इसी प्रारूप में ढाला गया है ताकि बच्चों को किसी प्रक्रिया को खुद देखने, शिक्षक के साथ-साथ करने और खुद भी स्वतंत्र रूप से करने का अवसर मिल सके। इसको संक्षेप में I Do, We Do और You Do कहा जाता है।
उदाहरण के तौर पर अगर भाषा शिक्षक बच्चों को आ वर्ण की पहचान कराने वाले हैं तो वे बच्चों को पहले खुद बताएंगे (I Do) कि यह वर्ण आ है। इसके बाद वे इसे लिखने का तरीका भी बताते हैं ताकि बच्चों को मदद मिल सके। इसके बाद वे पूरी प्रक्रिया को बच्चों के साथ-साथ करते हैं (We Do)। आखिर में बच्चों को स्वतंत्र रूप से (You Do) उस वर्ण को पहचानने और लिखने का अवसर दिया जाता है।
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