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स्कूल को बेहतर बनाती हैं ये ख़ास बातें

पाबुला, तितली, गरासिया भाषा, बहुभाषिकता, एजुकेशन मिरर, बच्चों की भाषा, घर की भाषाएक स्कूल को बेहतर बनाने वाली कौन सी चीज़ें होती हैं? अगर इस सवाल पर ग़ौर फरमाएं तो सबसे पहले बच्चों का जिक्र आएगा कि किसी भी स्कूल को वहां के बच्चे विशिष्ट या ख़ास बनाते हैं। इसके बाद की भूमिका उनके शिक्षक और शिक्षकों का नेतृत्व करने वाले प्रधानाध्यापक की होती है।

स्कूल के समानांतर घर के माहौल की भी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जिसमें अभिभावक एक सक्रिय भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा बच्चों की पाठ्यपुस्तकें, कक्षा का माहौल, बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षकों का पढ़ाने के प्रति जज्बा और बच्चों से लगाव भी कम महत्वपूर्ण नहीं है।

कैसा हो पढ़ाई का तरीका?

अचानक से आने वाली परिस्थिति का सामना शिक्षक किस तरह से करते हैं? यह भी एक बड़ा कौशल है क्योंकि स्कूलों में बहुत सारी चीज़ें अचानक से आती हैं। इनके कारण बच्चों की पढ़ाई और उसकी निरंतरता पर कोई असर न पड़े इसकी योजना एक अच्छे शिक्षक के पास होनी चाहिए। बच्चों को मिलने वाले निर्देश स्पष्ट होने चाहिए। ख़ास बात है कि उनको एक ही तरीके से पढ़ाया जाना चाहिए।

अगर किसी स्कूल के बच्चों को अलग-अलग शिक्षक एक ही विषय सामग्री को अलग-अलग तरीके से पढ़ाने और समझाने का प्रयास करते हैं तो उससेस दिक्कत पेश आती है जैसे पहली कक्षा के बच्चों को कोई शिक्षक नियमित रूप से एक योजना के मुताबिक़ अंग्रेजी का पाठ पढ़ा रहे हैं। इसके अलावा स्कूल में आने वाले पैरा टीचर भी उन बच्चों को अपने हिसाब से अंग्रेजी पढ़ा रहे हैं तो उससे भी बच्चों का तालमेल टूटता है और इसका सीधा असर उनके सीखने की गति, गुणवत्ता और भावी अनुभवों में उसके इस्तेमाल की क्षमता पर पड़ता है।

‘ख़तरे की घंटी’

बहुत ज़्यादा एक्सपोजर भी है ख़तरे की घंटी। जिन बच्चों को बहुत ज़्यादा समझाने की कोशिश की जाती है वे उतना ही उलझते चले जाते हैं। इसस बात को एक उदाहरण से समझने का प्रयास किया जा सकता है अगर कोई शिक्षक A लेटर के साउण्ड पर फ़ोकस करके पढ़ा है, दूसरा शिक्षक उनको चित्रों के माध्यम से A को पहचानना सिखा रहा है और तीसरा शिक्षक उनको दोनों में से एक तरीके से A को पहचानना और उसका उच्चारण करना सिखा रहे हैं तो ऐसी स्थिति में एक संभावना बनती है कि बच्चे वर्ण और साउण्ड के साथ-साथ चित्र और साउण्ड का कनेक्शन बैठाने में एक दुविधा वाली स्थिति का सामना कर रहे हों।

ऐसी किसी भी परिस्थिति को बनने से रोकने के लिए बेहद जरूरी है कि बच्चों को निर्देश साफ़-साफ़ दिये जाएं। उन निर्देशों की पुष्टि सही सवालों के माध्यम से करके यह जानने का प्रयास किया जाये कि बच्चा वाकई उन निर्देशों या बातचीत को समझ पा रहा है या नहीं। अगर बच्चा निर्देशों को स्पष्टता के साथ नहीं समझ पा रहा है तो निर्देश को फिर से स्पष्ट रूप से बनाने और उसे बच्चों के सामने रखने वाली प्रक्रिया पर फिर से ग़ौर करना चाहिए कि निर्देशों के निर्माण और संवाद के दौरान साझा होने वाली प्रक्रिया में कहाँ चूक हो रही है। अच्छे निर्देश देना एक कला है, जो लगातार अभ्यास से निखरती है।

बच्चों के साथ तालमेल है जरूरी

हर शिक्षक के काम करने का अपना तरीका होता है। कोई रफ़्तार के साथ काम करने का आदी होता है तो कोई धीरे-धीरे काम करना पंसद करता है। हर शिक्षक को अपनी क्षमता बढ़ाने और नई चीज़ें सीखने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहना चाहिए। इसके लिए अपने विचारों को चुनौती देना और ख़ुद को नये अनुभवों के लिए तैयार करना काफ़ी मददगार होता है। एक शिक्षक कहते हैं, “मैंने बीएड के दौरान बहुत से चार्ट पेपर का इस्तेमाल करके बच्चों के लिए सहायक शिक्षण सामग्री बनाई थी। लेकिन वास्तविक जॉब में आने के बाद वह पहले जैसा उत्साह नहीं रहा। उन्होंने ख़ुद से कोशिश करते हुए दूसरे साथी का मदद से अपने विचार को एक्शन में तब्दील करके बच्चों को अंग्रेजी की वर्णमाला लिखना सिखाने के लिए चार्ट पेपर बना लिया।” उनको ख़ुशी थी कि वे अपने एक विचार को वास्तविकता में ढाल पाये।

अपने विचारों को वास्तविकता में तब्दील करने वाली ख़ुशियों को संजोते रहें और सदैव इस बात का अहसास रखें कि आपकी काम आने वाली पीढ़ियों के साथ आगे जाना वाला है। समाज में नन्हे-नन्हे बदलाओं की ज़मीन तैयार करने वाला है। अपने काम से जुड़ी पढ़ाई करना, रोज़मर्रा के अनुभवों को डायरी में लिखना, उन अनुभवों से आगे की कार्ययोजना बनाना और हर बच्चे के सीखने के तरीके पर ग़ौर करना। उसको अपने तरीके से सीखने में मदद करना भी एक अच्छे शिक्षक की पहचान है। वे बच्चों के पास जाते हैं। उनको अपना काम करते हुए देखते हैं, उनको पेश आने वाली परेशानियों और उनको सफल बनाने वाले कारणों को समझते हैं। साथ ही साथ बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। उसके प्रयासों की सराहना करते रहते हैं ताकि सकारात्मक ऊर्जा की शृंखला वाली कड़ी टूटने न पाए। इससे कोशिश करने वाले बाकी बच्चों को भी हौसला मिलता है कि हम भी पढ़-लिख सकते हैं। कक्षा में अपने प्रदर्शन को बेहतर बना सकते हैं।

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