Trending

बोर्ड परीक्षाः क्यों होती है नकल?

किताब पढ़ते बच्चे, अर्ली लिट्रेसी, प्रारंभिक साक्षरता, रीडिंग रिसर्च, भाषा शिक्षणयूपी बोर्ड में नकल विहीन परीक्षा के दावे की ज़मीनी सच्चाइयां सामने आ रही हैं। मगर सबसे जरूरी सवाल है कि नकल को एक संस्कृति का रूप देने वाली मानसिकता में बदलाव कैसे होगा? अगर कक्षाओं में पर्याप्त विषय शिक्षकों के बिना पढ़ाई होगी और छात्र-छात्राओं में परीक्षा का डर रहेगा, तो यह स्थिति बनी रहेगी।

एक संपादकीय में इस बात का जिक्र था, “हमें निर्मम शिक्षकों की जरूरत है। जो पूरे साल पढ़ाते हों और नकल को बढ़ाना न देते हों।” ऐसे विचारों को पढ़कर लगता है कि हम शिक्षा को लेकर कितने निर्मम तरीके से सोचते हैं। हमारी लालसा होती है कि चीज़ें वैसी हो जाएं, जैसा हम चाहते हैं। ऐसे में हम सामने वाले को समझने की कोशिश करने का जोखिम नहीं लेना चाहते।

उत्तर प्रदेश में 6 फरवरी से बोर्ड परीक्षाओं की शुरूआत हुई है। इस बार की बोर्ड परीक्षाएं सीसीटीवी कैमरे के इंतज़ाम के साथ हो रही हैं ताकि परीक्षा में सामूहिक नकल जैसी घटनाओं को रोका जा सके। मगर पहले ही दिन से नकल की खबरों की चर्चा मीडिया में फिर से शुरू हो गई है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, “यूपी बोर्ड एग्जाम में नकलविहीन परीक्षा के लिए प्रशासन ने खास प्रबंध किए हैं इसके बावजूद नकल माफिया परीक्षा के पहले दिन ही सक्रिय नजर आए। गोरखपुर में एक परीक्षा केंद्र पर सामूहिक नकल के बाद एफआईआर दर्ज की गई है। वहीं चंदौली और प्रतापगढ़ ज़िले में भी नकल की खबरें सामने आई हैं।”

क्यों होती है परीक्षा में नकल

अगर हम चाहते हैं कि परीक्षाओं के दौरान छात्र नकल न करें तो हमें एक ऐसा समाज बनाना होगा जो बच्चों के कम नंबर पाने का जश्न मनाना जानता हो। जो बच्चे को प्रोत्साहित करना जानता हो कि कोई बात नहीं अगली बार अच्छे नंबर मिल जाएंगे।

फर्स्ट डिवीजन से चूकने वाले छात्रों, फेल होने वाले छात्रों और थर्ड डिवीजन पास होने छात्रों के साथ जैसा व्यवहार होता है, उसे देखते हुए कम नंबर का जश्न मनाने वाली बात बड़ी आदर्शवादी लगती है।

कैसे हासिल होगा ‘नकल विहीन’ परीक्षा का लक्ष्य

‘नकल न करने वाला बात’ भी तो एक आदर्श है। ऐसे आदर्श की कसौटी पर खरा उतरने के लिए हमें समाज में ऐसे माहौल के पनपने वाला आदर्श विकसित करना होगा। इसके बग़ैर हम नकल की नैतिकता वाली थोथी बहस में उलझे रहेंगे और निर्मम शिक्षकों की जरूरत पर जोर देंगे। जबकि शिक्षा के क्षेत्र में संवेदनशील शिक्षकों की ज्यादा जरूरत है। जो बच्चों से लगाव रखते हों। जो पढ़ने-पढ़ाने के काम को इंज्वाय करते हों। जो बच्चों की पढ़ाई की क़ीमत पर अपनी सफलता को तवज्जो न देते हो।

 

इस लेख के बारे में अपनी टिप्पणी लिखें

%d bloggers like this: