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मेरी पहली कविताः ‘एक था बचपन प्यारा सा’

एक था बचपन
बड़ा प्यारा सा
बहुत न्यारा सा
अपने सपनों के साथ
चौंकड़ी भरता दुलारा सा

पल में रिश्ते जोड़ लेता
पल में मन को मोड़ लेता
चाँद-सूरज थे मामा चाचा
आँखों में चमके तारे सा
सारा जग था सोने सा
अज़नबी भी लगे हमारा सा

कोई मन में भेद नहीं था
सबकुछ लगे कुँवारा सा
पानी के भरे मैदानों में
मेंढक और जंगली फूल वाले
दिन थे प्यारे से

अब समय बदल रहा था
बचपन देख रहा था बेचारा था
जब धूल भरी आँधी आयी
सबसे आगे निकलने की होड़ में
दब गया, कुचल गया वो कोमल मन
महसूस होता था लाचारा सा

अब कोई बचा नहीं अपना
जो लगता था प्यारा सा
छोड़ माँ का आँचल दुलारा सा
अब दौड़ लगानी
बदल गये सपनों के तारे
जो चमक रहे थे भोली आँखों में
अब तो बदल रही थी
वो आबो-हवा भी
जो भर जाती थी साँसों में

लूट लिया उस बचपन को
कड़वी सच्चाई के छलावे ने
सब धुंधला हो चला
उन स्वार्थ के जालों में
खून कर दिया बचपन का
हमने पी लिया ज़हर प्यालों में

                                                                                               – कुलदीप सिंह

(एजुकेशन मिरर के लिए यह कविता लिखी है कुलदीप सिंह ने। आप एम. टेक. की पढ़ाई के बाद वर्तमान में डीईएलएड के कोर्स में अध्ययनरत हैं। बच्चों को पढ़ाना, संगीत सुनना और लिखना आपको बेहत पसंद है। यह आपकी पहली कविता है जो एजुकेशन मिरर पर प्रकाशित हुई है। लेखन के सफ़र के लिए टीम एजुकेशन मिरर की तरफ से आपको हार्दिक शुभकामनाएं)

 

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