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21वीं सदी में ‘अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस’ की प्रासंगिकता क्या है?

new doc 2019-07-07 151828114024012890328..jpg21 फरवरी के दिन को पूरी दुनिया में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाता है। हममें से बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि मातृभाषा पर केंद्रित इस दिन को एक ख़ास तरीके से मनाने का विचार बांग्लादेश से आया। यूनेस्को के सम्मेलन में इस विचार को वर्ष 1999 में  स्वीकार्यता मिली। उसके बाद से वर्ष 2000 से इसे पूरी दुनिया में मनाने का सिलसिला जारी है। किसी भी समाज के लिए सांस्कृतिक और भाषायी विविधता बेहद महत्वपूर्ण है, इस बात को केंद्र में रखते हुए इस दिन को मनाया जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की प्रासंगिकता

वर्तमान में भाषायी विविधता पर संकट मंडरा रहा है, हर साल बहुत सी भाषाओं के विलुप्त होने की ख़बरें सामने आती हैं, ऐसी स्थिति में इस दिवस की प्रासंगिकता काफी बढ़ जाती है। वैश्विक स्तर पर 40 प्रतिशत आबादी को उस भाषा में शिक्षा की सुविधा उपलब्ध नहीं जो भाषा वे बोल और समझ सकते हैं। ख़ासतौर पर पूर्व प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा मिलने की जरूरत का शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले शोध व अन्य साक्ष्य समर्थन करते हैं। लेकिन बाज़ार के दबाव में अंग्रेजी व अन्य नौकरी वाली भाषाओं का वर्चस्व मातृभाषाओं व स्थानीय भाषाओं के समक्ष एक चुनौती के रूप में खड़ा है।

पढ़िएः मातृभाषा में हो पढ़ाई तो तेज़ी से सीखते हैं बच्चे

पढ़ने में डिकोडिंग व समझने की चुनौती

मातृभाषा के अलावा अन्य माध्यम में पढ़ने वाले बच्चे किसी लिखी हुई सामग्री को पढ़कर समझने के संकट से जूझते हैं। इसके साथ ही साथ वे डिकोडिंग के स्तर तक पहुंचने में भी जूझते हैं। उदाहरण के तौर पर भारत के बहुत से हिन्दीभाषी राज्यों में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में अपने बच्चों का दाखिला कराने की चाहत के कारण बहुत से बच्चे न तो हिन्दी भाषा सीख पा रहे हैं और न ही अंग्रेजी भाषा से जुड़ पा रहे हैं।

लेकिन इस बुनियादी सी बात को समझने के लिए भी लोग तैयार नहीं हैं। लोगों को आमतौर पर यह लगता है कि मातृभाषा तो बच्चे जानते ही हैं। बच्चों को अंग्रेजी व अन्य भाषाओं को सीखने का ज्यादा अवसर मिलना चाहिए।

पढ़िएः बहुभाषिकता का क्या महत्व है?

आपकी मातृभाषा क्या है?

20190426_1424572638389676547165453.jpgइस मौके पर एक व्यक्तिगत अनुभव आपसे साझा है। हम लोगों में से बहुत से लोगों को अपनी मातृभाषा का पता बड़े होने पर भी नहीं चलता है। यह स्थिति मातृभाषा की उस अवधारणा के कारण आती है जिसमें हम अपने क्षेत्र में बोली जाने वाली बोली को अपनी मातृभाषा कह लेते हैं। वास्तव में हमारी मातृभाषा वह भाषा/बोली है जिसमें माँ अपने बच्चे से बातचीत करती है। उदाहरण के तौर पर मेरी माँ की भाषा भोजपुरी थी। लेकिन मेरे क्षेत्र/परिवेश में अवधी बोली जाती थी, इसलिए मुझे लगता था कि मेरी मातृभाषा अवधी है। लेकिन अपनी एक वरिष्ठ साथी से बातचीत में मेरा भ्रम टूटा और मुझे कई सालों के बाद वास्तविकता पता चली कि मेरी मातृभाषा तो भोजपुरी है।

मातृभाषा के फायदे क्या हैं?

मातृभाषा को समझने व उसमें जवाब देने की क्षमता एक बच्चे को स्वाभाविक ढंग से प्राप्त होती है। उसका समूचा ज्ञान इसी भाषा में होता है जिसे वह बताने के लिए अलग-अलग भाषाओं का सहारा ले सकता है। पढ़ाई-लिखाई में सबसे ज्यादा महत्व समझने का है, जिसे सही अर्थों में पढ़ना कह सकते हैं।

जबकि डिकोडिंग में शब्दों व वाक्यों का उच्चारण तो हो जाता है, लेकिन समझकर जवाब देने की क्षमता बच्चों में अन्य भाषाओं में शुरुआती स्तर पर विकसित नहीं हो पाती है। इसलिए भाषा वैज्ञानिकों व शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों द्वारा मातृभाषा के  इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने की जरूरत को बार-बार प्रोत्साहित किया जाता है। आखिर में एक ग़ौर करने वाली बातः

एक शिक्षाविद् कहते हैं कि हम मूलतः बहुभाषी हैं। भारत जैसे बहुभाषी देश में तो हमारा किसी एक भाषा के सहारे काम चल ही नहीं सकता। हमें अपनी बात बाकी लोगों तक पहुंचाने के लिए और उनके साथ संवाद करने के लिए एक भाषा से दूसरे भाषा के बीच आवाजाही करनी ही पड़ती है। जैसे हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं का मिश्रित रूप है हिंदुस्तानी जुबान। हिंदुस्तान जुबान में होने वाले संवाद की मिठास और संप्रेषण की सहजता देखने लायक है। बहुत से बच्चों से घर की भाषा (होम लैंग्वेज) स्कूल की भाषा से इतर होती है।                                                                            

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