Trending

‘तोत्तो चान’ किताब पढ़ते हुए इस स्कूल को देखने की इच्छा प्रबल हो जाती है’

दीपिका नानकमत्ता पब्लिक स्कूल में 11वीं में अध्ययनरत हैं। शिक्षा से जुड़ी विभिन्न गतिविधियों के साथ लेखन और पढ़ने में उनकी ख़ास रुचि है। उन्होंने यह तोत्तो चान किताब पढ़ी और इसकी समीक्षा भी लिखी है। वे इसके परिचय में लिखती हैं, “अरे,सभी पन्ने ख़त्म हो गए! काश कुछ पन्ने और होते!” मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह किताब पूरी पढ़ ली मैंने।  कोविड-19 के फलस्वरूप किताबें पी०डी०एफ में समा गईं, इसलिए आँखों का इवोल्यूशन तेज़ हो गया। थोड़ा-सा दर्द होने के बावजूद आँखें अंगुलियों को इशारे कर रही थी कि स्क्रॉल करते जाओ! इस किताब को पढ़ना नदी में सफ़र करने जैसा था। एक के बाद एक मनमोहक दृश्य मन को संतुष्ट कर देने वाली लहर पर सवार।

“मदोगिवा नो तोत्तो-चान” या “तोत्तो-चान” 1981 में प्रकाशित एक जापानी उपन्यास है, जिसकी लेखक तेत्सुको कुरोयानागी हैं। यह तेत्सुको के इतने वर्षों के अनुभवों का एक आत्मकथात्मक लेख है, जो दक्षिण-पश्चिम टोक्यो में स्थित एक गैर-पारंपरिक स्कूल टोमो गाकुएन में पढ़ती थी। एक पत्रिका की तरह लिखी गई यह पुस्तक स्कूल में दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों और अनुभवों का वर्णन करती है जो पुस्तक के मुख्य पात्र यानी छह वर्षीय तोत्तो-चान पर एक अमिट छाप छोड़ती है। विश्व की कई भाषाओं में इसका अनुवाद किया जा चुका है। हिंदी में इसका अनुवाद पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा ने किया है। इसके कवर कलाकार चिहिरो इवासाकी हैं। यह किताब वर्तमान शिक्षा पद्धति पर गहरा कटाक्ष करती है और वैकल्पिक शिक्षा यानी alternative learning पर जो़र डालती है।

तोत्तों चान का स्कूल से निकाला जाना

तोतो-चान को पहली कक्षा में ही स्कूल से निकाल दिया गया था। जब उसकी माँ को स्कूल में यह बताने के लिए बुलाया गया तो शिक्षिका ने कई ऐसे तर्क दिए जो यह अहसास दिलाते हैं कि किसी शिक्षक के लिए बाल-मन को समझना कितना आवश्यक होता है। शिक्षिका माँ से कहती है कि – पहली बात तो यह कि आपकी बेटी दिन में सैकड़ों बार अपनी मेज़ खोलती है। मानिए, हमें अक्षर लिखने हों तो आपकी बिटिया मेज़ खोलकर कॉपी निकालती है फिर धड़ाम से ढक्कन बंद कर देती है। वह फिर मेज़ खोलती है और इस बार पेंसिल निकालती है और फिर से मेज़ बंद कर देती है जिससे पूरी क्लास डिस्टर्ब होती है।

ऐसे ही कुछ तर्क और देते हुए शिक्षिका माँ से तोतो को स्कूल से ले जाने को कहती है। जबकि यहाँ उन्हें बाल-मन को समझने की आवश्यकता थी। उन्हें समझना चाहिए था कि वह यह सब उत्सुकतापूर्वक कर रही है। उसके लिए पेंसिल, कॉपी और मेज़ बिल्कुल नई चीज़ें हैं। जब उसका मन भर जाता तो वह खुद ही ऐसा करना बंद कर देती। परंतु शिक्षिका ने बिना ऐसा सोचे तोतो को स्कूल से निकाल दिया।

नये स्कूल ने बदली तोत्तो-चान की ज़िंदगी

तोत्तो-चान की माँ ने उसे डाँटा नहीं क्योंकि वह एक तर्कपूर्ण महिला थी। वह उसकी मासुमियत को समझती थी। इसलिए उन्होंने उसे यह भी नहीं बताया  कि उसे स्कूल से निकाल दिया गया है बल्कि उन्होंने कहा कि हम नए स्कूल में जा रहे हैं। फिर काफी मशक्कत के बाद तोतो के लिए नया स्कूल मिला।

उस स्कूल का नाम ‘ टोमोए गाकुएन ‘ था। वह स्कूल असल में कुछ रेल के डिब्बे थे। स्कूल बहुत बेहतरीन था। मानो कोई कहानी हो। यह द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान में अस्तित्व में था जब युद्ध की भयावहता चारों ओर फैली हुई थी।  वह रेल के डिब्बे ही कक्षा-कक्ष थे जहाँ सब बच्चे पढ़ते थे। वहाँ के हैडमास्टर थे – सोसाकू कोबायाशी। हेडमास्टर जी का मानना था, ‘सभी बच्चे स्वभाव से अच्छे होते हैं। उस अच्छे स्वभाव को उभारने, सींचने-संजोने और विकसित करने की जरूरत है। बच्चे बिना किसी कुंठा के आत्मसम्मान से जीना सीखें। पहले से बने खाचों में डालने की जगह बच्चों को प्रकृति पर छोड़ देना चाहिए। ‘

एक स्कूल जहाँ बच्चों को धैर्य से सुना जाता है

उस स्कूल की खासियत ही थी कि वहां अलग-अलग विषयों पर बच्चों को अपनी-अपनी तरह से काम करने और बोलने की आज़ादी और गैर पारंपरिक शिक्षण पद्धति, रचनात्मक गतिविधियाँ, शरीर व मस्तिष्क का समान विकास आदि थी। सबसे महत्वपूर्ण बात उन्हें भयमुक्त वातावरण प्रदान किया जाता था। जहाँ बच्चे बिना किसी भय के स्वयं को अभिव्यक्त कर सकें। बल्कि जिस दिन तोतो वहाँ दाखिला लेने गई थी तब भी हैडमास्टर ने पूरे 4 घंटे तक बिना किसी शिकायत के या आलस्य के उसे ध्यान से सुना था। उसकी माँ भी यह देख कर चौंक गई थी कोई इतनी देर तक किसी बच्ची की बात कैसे सुन सकता है!

हैडमास्टर सोसाकू कोबायाशी बड़े बुद्धिजीवी व्यक्ति थे। वह बच्चों के माता-पिता से उन्हें पौष्टिक भोजन देने को कहने के बजाय बच्चों को “कुछ समुद्र का और कुछ पहाड़ का लाने को कहते थे”। कुछ समुद्र का यानी सी-फूड और कुछ पहाड़ का यानी सब्जियां । हर रोज़ खाना खाते समय वह हर बच्चे के टेबल में जाकर उससे पूछते कि वह कुछ समुद्र का और कुछ पहाड़ का लाए या नहीं और उन्हें सराहते थे। जो नहीं  लाया होता था उसे वह खुद ही कुछ सब्जियां या सी-फूड दे देते थे। इस तरह हर बच्चे को पौष्टिक भोजन मिल जाता था।

खेल में जीत और विविधता की परवाह

उस स्कूल में 3 नवम्बर को खेल दिवस भी मनाया जाता था। वह खेल भी हैडमास्टर जी ने बड़ी सूझ-बूझ के साथ रचे थे। जैसे – एक खेल था जिसमें उन्हें  सीढ़ियां से होकर गुज़रना होता था और टेबल में से पर्ची उठानी होती थी। पर्ची में दर्शकों में से किसी का भी नाम हो सकता था जैसे – कुमारी ओकू की बहन या कुनी नोरी का बेटा। बच्चों को दर्शकों के बीच जाकर पर्ची में लिखा नाम चिल्लाना होता और उस व्यक्ति का हाथ पकड़कर वापस टेबल तक आना होता था। ऐसा करने से न सिर्फ उनका आत्मविश्वास बड़ता बल्कि उनके मन से हिचक भी दूर हो जाती थी । जीतने वालों को सब्जियां ईनाम के रूप में दी जाती थी । हैडमास्टर बच्चों को समझाते की यह तुम्हारी मेहनत है जो आज रात तुम्हारे घरवालों का पेट भरेगी। इस तरह वह बच्चों को परिश्रम भी सिखाते थे।

वह इन खेलों को कुछ इस तरह रचते, जिससे ज्यादातर बार एक बौना लड़का जीते। वह ऐसा इसलिए करते थे ताकि बाकी सभी के मन में उसके लिए सम्मान जागे और वह बच्चा भी बिना किसी कुंठा के जीवन बिताये। उस विद्यालय में बच्चों को पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाना सिखाया जाता था। वहां शिक्षक केवल फैसिलेटर का काम करते थे। सुबह टीचर ब्लैकबोर्ड में लिख देती थी कि आज दिनभर क्या-क्या करना है?  उसके बाद जिस बच्चे को जो करना होता था वह वही करता था। कोई बच्चा गणित पढ़ते तो कोई वर्णमाला। इस तरह बच्चे खुद करके सीखते थे। वह गलत करते तो टीचर से पूछ लेते। टीचर भी बिना किसी शिकायत के उनके सवालों के जवाब देते।

पिछले कुछ महीनों में मैं Excellent Education पर जितनी भी वैबिनार्स का हिस्सा रही,  उन सभी का निष्कर्ष वही निकल कर आया जो सोसाकू कोबायाशी आज से कई साल पहले एक अलग दुनिया बनाकर लागू कर चुके थे। इस किताब के हर पन्ने की एक-एक पंक्ति मेरे मन में टोमो गाकुएन को अपनी नजरों से देखने की इच्छा को और प्रबल कर देती है। यह किताब न केवल शिक्षकों या छात्रों को पढ़नी चाहिए बल्कि परिजनों को भी पढ़नी चाहिए क्योंकि तोत्तो चान की माँ ने जिस तर्क व धैर्य से अपनी बेटी की परवरिश की, वह सबके लिए प्रेरणादायक है।

(आप एजुकेशन मिरर को फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो कर सकते हैं। अपने आलेख और सुझाव भेजने के लिए ई-मेल करें mystory@educationmirror.org पर और ह्वाट्सऐप पर जुड़ें 9076578600 )

1 Comment on ‘तोत्तो चान’ किताब पढ़ते हुए इस स्कूल को देखने की इच्छा प्रबल हो जाती है’

  1. Durga thakre // August 9, 2021 at 10:53 am //

    बेहतरीन अभिव्यक्ति 👌👌👌

इस लेख के बारे में अपनी टिप्पणी लिखें

Discover more from एजुकेशन मिरर

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading