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भाषा विकास और साक्षरता को पुस्तकालय के माध्यम से कैसे प्रोत्साहित करें?

पुस्तकालय भाषा विकास के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन की भूमिका निभाता है।

भारत में भाषा शिक्षण के लिए फोनिक्स, होल लैंग्वेज (संदर्भ पद्धति या शब्द पद्धति) और बैलेंस अप्रोच का इस्तेमाल प्राथमिक स्तर पर भाषा शिक्षण के लिए किया जाता है। होल लैंग्वेज अप्रोच वाले तरीके में भाषा को एक संपूर्ण इकाई के रूप में देखा जाता है और माना जाता है कि जैसे बच्चा समाज में लोगों के बीच रहते हुए सुनते, देखते व लोगों का अनुकरण करते हुए मौखिक भाषा सीख जाता है, उसी तरीके से अगर भाषा कालांश में काम किया जाये तो बच्चे समझ के साथ पढ़ना भी सीख लेते हैं। इसके लिए कविता व कहानियों का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं फोनिक्स अप्रोच में भाषा सिखाने के लिए बच्चों को अक्षर/मात्रा पहचान, अक्षरों को मिलाकर शब्द बनाने, शब्दों को शब्द की तरह पढ़ने व अक्षर व मात्राओं को मिलाकर पढ़ने का अभ्यास कराया जाता है ताकि बच्चे डिकोडिंग व समझ के साथ पढ़ने का कौशल हासिल कर सकें।

उपरोक्त संदर्भ में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के आलोक में निपुण भारत मिशन में संतुलित भाषा शिक्षण पद्धति को अपनाने की बात कही गई है। ताकि बच्चों में डिकोडिंक के कौशलों के साथ-साथ समझ के साथ पढ़ने के कौशलों का विकास हो सके। इसमें मौखिक भाषा विकास, ध्वनि जागरूकता, अक्षरों व मात्राओं की पहचान, अक्षरों के साथ मात्राओं को मिलाकर पढ़ने, अक्षरों को मिलाकर शब्द बनाकर यानि मिलाकर पढ़ने, शब्दों को शब्द की तरह पढ़ने यानि शब्द पठन, धारा प्रवाह पठन (उचित गति (45-60 शब्द प्रति मिनट), शुद्धता और हाव-भाव के साथ पढ़ना), वाक्य पठन और छोटे-छोटे पैराग्राफ को पढ़ने की क्षमता को क्रमिक विकास के सिलसिले में बाल वाटिका से तीसरी कक्षा तक हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है।

प्रारंभिक कक्षाओं में भाषा शिक्षण व बाल साहित्य के इस्तेमाल में डॉ. शैलजा मेनन अपने एक आलेख में लिखती हैं, “क्या बच्चों को पढ़ना सिखाने के लिए साहित्य का इस्तेमाल किया जा सकता है? या, क्या इसका इस्तेमाल मुख्य रूप से बच्चों को सीखने के लिए पढ़ना सिखाने के लिए ही किया जाना चाहिए? मेरे विचार में यह एक कृत्रिम भेद है जो ऐसे शिक्षकों ने बना दिया है जो पढ़ना सीखने जो पढ़ना सीखने की संकुचित परिभाषा से चलते हैं। साक्षरता की जो विस्तृत परिभाषा है उसके हिसाब से पढ़ना सीखना और सीखने के लिए पढ़ना, दोनों प्रक्रियाएं एक साथ ही चलती हैं। दोनों में पृथकता कोई भेद नहीं होता है। जब कोई बच्चा पहली बार स्कूल आता है, खासतौर से अगर वह पहली पीढ़ी का विद्यार्थी है तो उसे न केवल साक्षरता की समझ हासिल करनी होती है बल्कि वह साक्षरता की संस्कृति- साक्षरता व्यक्ति का रवैया, मूल्य-मान्यताएं, ज्ञान और कौशल आदि भी सीखता है।” (बाल साहित्य के जरिये प्रारंभिक भाषा व साक्षरता को सींचना, लेख का एक अंश)

उपरोक्त आलेख के एक अंश में उस मान्यता को रेखांकित किया गया है जिसके कारण यह विचार जन्म लेता है कि बच्चे जब पढ़ना सीख जाएं, तभी उनको पढ़ने के लिए किताबें देनी चाहिए। इस मान्यता पर सवाल उठाते हुए उपरोक्त आलेख में साफ-साफ कहा गया है कि पढ़ना सीखना और सीखना के लिए पढ़ना दोनोंम प्रक्रियाएं साथ-साथ चलती हैं, इसलिए जरूरी है कि बच्चों को बाल साहित्य  के इस्तेमाल का अवसर शुरू से देना चाहिए ताकि वे पढ़ना सीखने की प्रक्रिया में सीखने की दिशा में आगे बढ़ सकें। लाइब्रेरी बच्चों को कैसे पढ़ना सीखने की दिशा में मदद करती है और उनको एक संदर्भ देती है।

राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 के अंतर्गत भारतीय भाषाओं का शिक्षण के आधार पत्र का एक अंश काफी उपयोगी है, “भाषा में पूरे संसार को समझने का गुण तो होता ही है लेकिन इसके साथ ही साथ इसमें कई कल्पनापरक तत्व भी मोजूद होते हैं। पद्य, गद्य और नाटक हमारी भाषिक संवेदना को धार प्रदान करने के साथ-साथ हमारे जीवन के सौंदर्यपरक पहलू को समृद्ध करते हैं, साथ ही साथ हमारे पढ़ने और लिखने की क्षमता को भी ऊंचा उठाते हैं।“

अगर हम बच्चों को लाइब्रेरी की किताबों के इस्तेमाल का मौका देते हैं तो बच्चे चित्रों को देखकर उसके ऊपर चर्चा करना शुरू करते हैं। अपने परिवेश के चित्रों को पहचान पाते हैं और अपने घर की भाषा में उसके बारे में बता पाते हैं। स्थानीय भाषा व हिन्दी में कहानी सुनने का अवसर बच्चों को सुनकर समझने की क्षमता के विकास का बेहद जरूरी मौका उपलब्ध कराता है। इससे बच्चों में सुनकर समझने की क्षमता विकसित होती है, जो बच्चों को डिकोडिंग के कौशलों का इस्तेमाल करते समय पढ़कर समझने की क्षमता विकसित करने में काफी मदद करती है। इसके साथ ही साथ लाइब्रेरी में बच्चों को उन कौशलों के अभ्यास का मौका मिलता है जो वे भाषा कालांश में सीख रहे हैं। इससे बच्चों के अटक-अटक कर पढ़ने की स्थिति में सुधार होता है और इनके धारा प्रवाह पठन करने की संभावना बढ़ जाती है।

लाइब्रेरी में इस्तेमाल होने वाली पठन रणनीतियों जैसे रीड अलाउड से बच्चों को सोचने, कल्पना करने व अनुमान लगाने का पर्याप्त अवसर कहानियों की किताबों के साथ मिलता है। इससे उनके अनुमान लगाकर पढ़ने की क्षमता पुख्ता होती है। इस तरीके से कहा जा सकता है कि लाइब्रेरी से प्रारंभिक साक्षरता के काम को काफी मदद मिलती है जो बच्चों को स्वतंत्र पाठक बनने की दिशा में आगे बढ़ने में मदद करता है। इसके साथ ही साथ बच्चे पढ़ने की खुशी भी हासिल करते हैं। अन्य प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं –

  1. स्कूल में लाइब्रेरी की जरूरत बच्चों तक किताबों की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए अत्यंत आवश्यक है। इसके लिए किताबों का डिसप्ले इस तरह करना चाहिए ताकि बच्चे स्वयं से किताबों का चुनाव कर सकें।
  2. बच्चों के साथ पठन गतिविधियों के संचालन व किताबों का लेन-देन को नियमित बनाने के लिए पुस्तकालय का टाइम टेबल बनाना और उसको क्रियान्वित करना।
  3. बच्चों के साथ पठन गतिविधियों में विविधता (बुक टाक, रीड अलाउड, शेयर रीडिंग, पेयर रीडिंग, स्वतंत्र पठन, बुक डिसप्ले, रोल प्ले, पाठक रंगमंच इत्यादि)
  4. सप्ताह में एक बार किताबों का लेन-देन बच्चों को घर पर पढ़ने के लिए अवश्य करना, पहली कक्षा से लेकर उच्च प्राथमिक स्तर तक के सभी बच्चों को इस प्रक्रिया में शामिल करना।
  5. लाइब्रेरी में बच्चों को अपनी पसंद की किताबों को चुनने और इस प्रक्रिया में सहयोग की आवश्यकता होने पर शिक्षक के माध्यम से सहयोग किया जाना चाहिए।
  6. लाइब्रेरी को व्यवस्थित करने में बच्चों की भागीदारी लेनी चाहिए ताकि वे इस स्पेश को अपनी जगह के रूप में देखने वाला नजरिया विकसित कर सकें।

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