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‘ग्रोथ माइंडसेट’ के बारे में कैरेल ड्वेक क्या कहती हैं?

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प्रोफ़ेसर कैरेल ड्वेक कहती हैं कि ‘ग्रोथ माइंडसेट’ का विचार गतिशील है। किसी एक क्षेत्र में ‘फिक्स माइंडसेट’ रखने वाला व्यक्ति अन्य क्षेत्रों में ‘ग्रोथ माइंडसेट’ का प्रदर्शन कर सकता है।

इस पोस्ट में हम ‘ग्रोथ माइंडसेट’ के उन बिंदुओं पर बात करेंगे जो बच्चों के साथ काम करने के लिए उपयोगी हैं। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की प्रोफ़ेसर कैरेल ड्वेक अपनी किताब ‘माइंडसेट’ में  ग्रोथ माइंडसेट और फिक्स माइंडसेट का विचार लेकर आती हैं।

वे कहती हैं, “हम अपने मस्तिष्क के सीखने और समस्याओं का समाधान करने की क्षमता बढ़ा सकते हैं।” यह चीज़ें जन्मजात या पहले से निर्धारित नहीं हैं।

गतिशील कांसेप्ट है ‘ग्रोथ माइंडसेट’

अपने एक साक्षात्कार में वे कहती हैं कि 1999 के दौर में आत्म सम्मान को महत्व देने वाली मुहिम (Self Esteem Movement) की शुरूआत हुई। इसमें हमने बच्चों के लिए प्रतिभाशाली, और होशियार जैसे शब्दों का इस्तेमाल शुरू किया ताकि उनकी उपलब्धियों में बढ़ोत्तरी हो।

इसके पीछे यह भी मान्यता थी कि इससे बच्चे प्रोत्साहित महसूस करेंगे। मगर इसका एक उल्टा प्रभाव दिखायी दिया कि ऐसे बच्चे लकीर के फकीर बनते चले गए। वे चुनौतियों को स्वीकार करने से डरने लगते हैं। क्योंकि उनको लगता था कि अगर वे किसी सवाल का जवाब क्लास में सबसे पहले नहीं दे पाए, तो लोग क्या कहेंगे? वे मेरे बारे में एक उल्टी धारणा बना लेंगे कि मैं इतना होशियार या प्रतिभाशाली नहीं हूँ।

‘ग्रोथ माइंडसेट’ वाले बच्चों का पढ़ाई में प्रदर्शन

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किसी भी तरह की रुढी या स्टीरियोटाइप ‘फिक्स माइंडसेट’ हैं। जैसे लड़कियां गणित में कमज़ोर होती हैं। जबकि इस विचार में कोई सच्चाई नहीं है।

किसी इंसान के कौशलों या हुनर के बारे में यह सोचना कि यह है या नहीं है। यानि उसके विकसित होने या सीखे जाने की संभावना को खारिज कर देना ही ही ‘फिक्स माइंडसेट’ है। जबकि कौशलों के बारे में ऐसी राय रखना कि इसे विकसित किया जा सकता है।

मेहनत और सतत प्रयास से सीखा जा सकता है और खुद की क्षमता में भरोसा करके ऐसे प्रयासों को करने की दिशा में आगे बढ़ना ग्रोथ ‘माइंडसेट’ का परिचायक है। यानि हर कोई अपने हुनर या कौशलों का विकास कर सकता है, सीख सकता है, आगे बढ़ सकता है ऐसी सोच ग्रोथ माइंडसेट या विकास मानसिकता को दर्शाती है।

अपने साक्षात्कार में वे कहती हैं कि ‘ग्रोथ माइंडसेट’ रखने वाले बच्चे पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन करते हैं। क्योंकि अपनी सीखने की क्षमता पर भरोसा करते हैं। वे आत्म-विश्वास से भरे होते हैं। वे चुनौतियों को एक अवसर के रूप में देखते हैं। चुनौतियों को सामना करते हैं और अपना रास्ता खोजने के  लिए प्रयास करते हैं। एक विकल्प के काम न करने पर दूसरे विकल्पों की तलाश करते हैं। ऐसे बच्चे रचनात्मक होते हैं, चीज़ों को नए तरीके से करने और नई चीज़ें सीखने के लिए तत्पर होते हैं।

‘फिक्स माइंडसेट’ का नकल से क्या रिश्ता है

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कैरेल ड्वेक कहती हैं कि हमें किसी बच्चे की तारीफ उसकी गतिविधि में शामिल होने की प्रक्रिया को लेकर करनी चाहिए। उनके काम में रुचि दिखाकर हमें बात करनी चाहिए।

जबकि ‘फिक्स माइंडसेट’ रखने वाले बच्चे पढ़ाई में उन क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन करते हैं जिसमें वे अपनी क्षमता में भरोसा करते हैं। लेकिन जहाँ पर उनके मन में ऐसे विचार होते हैं कि गणित कठिन है।

या अंग्रेजी तो मुश्किल विषय है। संस्कृत के शब्दार्थ समझना मुश्किल है। उनको लगता है कि यह विषय तो अपने लिए हैं ही नहीं। इस विषय में मुझसे कुछ नहीं हो पाएगा। बस किसी तरीके से पास होने भर का नंबर मिल जाए, बाकी सब ठीक है।

इस सोच का असर उनकी पढ़ाई में उन विषयों को मिलने वाले महत्व और दिए जाने वाले समय पर पड़ता है। उसके लिए होने वाले प्रयासों में कम भरोसा होता है। इस कारण से वे अच्छे नंबर पाने के वाले उपायों का सहारा लेते हैं। प्रोफ़ेसर कैरैल ड्वेक कहती हैं कि कि कुछ बच्चों ने तो बातचीत के दौरान कहा कि परीक्षा में चीटिंग करनी पड़ेगी, अच्छे नंबर लाने के लिए। यानि नकल के प्रति रुझान पैदा करने वाली बात भी ‘फिक्स माइंडसेट’ की तरफ संकेत करती है।

( इस पोस्ट को पढ़ने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। इसे पढ़ने के बाद आप क्या सोच रहे हैं लिखिए कमेंट बॉक्स में अपने नाम के साथ।  ताकि अगली पोस्ट को आपके लिए ज्यादा उपयोगी बनाय जा सके।)

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