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मितवाः बग़ैर ‘दंगल’ लड़की व लड़के के बीच भेदभाव पर सोचने को मजबूर करती एक कहानी

मितवा एकलव्य प्रकाशन द्वारा प्रकाशित एक किताब है। ‘मितवा’ जेंडर आधारित भेदभाव को दर्शाती एक कहानी है, इसमें सकारात्मक तरीके से इस संवेदनशील मुद्दे को बच्चों के सामने रखने की कोशिश की गई है। इस कहानी की लेखिका कमला भसीन हैं, जो जेंडर के मुद्दे पर गहरी समझ रखती हैं और सार्वजनिक मंचों पर बड़ी सक्रियता व संवेदनशीलता से इस मुद्दे को रेखांकित करती हैं। इसके सुंदर चित्र शिवानी ने बनाएं हैं. जो कहानी से जोड़ने में बच्चों के लिए सहायक सिद्ध होते हैं।

मितवा का शाब्दिक अर्थ होता है प्यारी दोस्त। अपनी माँ के लिए इस कहानी की मुख्य पात्र ऐसी ही है। इस कहानी के बारे में एकलव्य के पिटारा वाली वेबसाइट पर ठीक ही लिखा गया है, “रिश्तों की नाजुक बुनावट लिए मितवा की कहानी, हर उस लड़की की कहानी है जिसने मुश्किलों से हारना सीखा नहीं ।” इस किताब की कीमत 40 रूपये है।

कहानी सुनने के बाद बच्चों की प्रतिक्रिया:

  • इस कहानी में मुझे एक बात अच्छी लगी कि मितवा ने चुपके से टैक्टर चलाना सीखा।
  • एक छात्रा ने कहा, “लड़कियों को सारे काम की आज़ादी होनी चाहिए, ग़लती करने की नहीं।”
  • मितवा का बड़ा भाई उसे कम मानता था, दोनों भाइयों की एक ही बहन ही थी, इसलिए दोनों भाइयों को अपनी बहन को एक समान मानना चाहिए था।
  • माँ और मितवा का बात करना मुझे बहुत अच्छा लगा।
  • मितवा ने टैक्टर चलाकर अपने पिता को अस्पताल पहुंचाया और उनकी जान बचाई, यह बात मुझे अच्छी लगी।
  • मितवा के छोटे भाई ने उसे साइकिल चलाना सिखाया, मुझे यह बात पसंद आई।
  • बेटी ने भले ही चोरी-चोरी टैक्टर चलाना सीखा, लेकिन वो सब तो पापा के ही काम आया। उसके भाई ने टाइम निकालकर मितवा को साइकिल और टैक्टर चलाना सिखाया।

यह कहानी प्राथमिक, उच्च प्राथमिक से लेकर माध्यमिक स्तर तक के बच्चों को बेहद पसंद आती है। इस किताब के ऊपर बच्चों के साथ अच्छी चर्चा हो सकती है। लड़कियों के साथ होने वाले भेदभाव को रेखांकित करने के साथ-साथ यह लड़कों की एक सकारात्मक भूमिका को भी सामने लाने का अवसर देती है।

कुछ लड़कियों ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि कैसे उन्होंने अपने पिता को बीमार होने पर मोटर साइकिल से अस्पताल पहुंचाया। लड़कियों ने अपने साइकिल चलाना सीखने और पिता द्वारा बाइक सीखने के लिए प्रेरित करने जैसे उदाहरण भी बताए। यह कहानी अपनी सहज भाषा और रोचक शैली की बदौलत बच्चों के मन में एक ख़ास स्थान बनाने में सफल होती है, इसका अंदाजा स्कूल में बच्चों की प्रिय किताबों वाले पोस्टर को देखकर सहज ही लग जाता है।

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