लेखः महामारी और सोशल मीडिया की भूमिका – डॉ. केवल आनन्द काण्डपाल
प्रस्तावना: सोशल मीडिया को परस्पर संवाद का वेब आधारित एक ऐसा गतिशील मंच कहा जा सकता है, जिसके माध्यम से लोग आपस में संवाद करते हैं, जानकारियों का आपस न आदान-प्रदान करते हैं और इस दौरान सृजित सामग्री में संशोधन करते हैं, फीड बैक देते हैं, संवाद करते हैं और जरुरी होने पर सूचना को हटा (डीलीट) भी कर देते हैं। मीडिया, जन समूह तक सूचना, शिक्षा और मनोरंजन पहुँचाने का एक माध्यम है। यह संचार का सरल और सक्षम साधन है। ऐसे युग में जहाँ ज्ञान और तथ्य आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए औजार है, वहाँ रचनात्मक मीडिया की मौजूदगी सम्पूर्ण समाज, लघु एवं वृहत व्यवसाय और विभिन्न अनुसंधान संगठनों, निजी क्षेत्रों तथा सरकारी क्षेत्रों की विविध आवश्यकताओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण है।
इसमे मौटे तौर पर प्रिन्ट मीडिया जैसे-समाचार पत्र, पत्रिका, जर्नल और अन्य प्रकाशन तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जैसे-रेडियो, टेलीविजन और इंटरनेट आदि समाज में जागृति का कार्य करते हैं/करना चाहिए। तकनीकी सक्रियता के बाद, अब ‘सोशल मीडिया सक्रियता’ आज की पीढ़ी के लिए एक पर्याय बन गई है। आज लगभग तीन में से दो भारतीय अलग-अलग सोशल नेटवर्किंग साइटों जैसे कि फेसबुक, ट्विटर, यू-ट्यूब, पिन्ट्रेस्ट आदि पर ऑनलाइन रहकर अपना समय बिताते हैं। लगभग 100 मिलियन भारतीय, जो कि जर्मनी की आबादी से अधिक हैं, हर दिन सोशल मीडिया से सम्बन्धित कार्यो में व्यस्त रहते हैं। हमारे देश में आज मीडिया की भूमिका गरीबी, बेरोजगारी और अन्य सामाजिक बुराइयों जैसे जातिवाद और सांप्रदायिकता आदि के खिलाफ संघर्ष में लोगों की मदद करने तथा भारत को एक आधुनिक शक्तिशाली जिम्मेवार देश बनाने की होनी चाहिए। लोगों की सोच को तर्कसंगत और तार्किक बनाने की आवश्यकता है। मीडिया की कोशिश होनी चाहिए कि वह संपूर्ण वैज्ञानिक दृष्टिकोण को लोगों के बीच व्यापक रूप से फैलाने की कोशिश करें।
मीडिया एवं सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव
हमारी दुनिया की बीती हुई शताब्दियाँ किसी न किसी खास वजह से याद की जाती हैं। इसी क्रम में 21 वीं शताब्दी अन्य वजहों के साथ-साथ ‘इन्टरनेट, वेब, सोशल मीडिया’ के लिए भी याद की जाएगी। बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में बहुत मजबूती से इसकी नींव पद गयी थी। सोशल मीडिया के बढ़ते विस्तार के साथ ही मीडिया की शक्ति कुछ हद तक आम जनता के हाथ में आ गयी है। सामाजिक सम्प्रेषण के नए-नए माध्यम सामने आ रहे हैं। यदि यह कहा जाए कि सोशल मीडिया का उपयोग करना हमारे दैनिक जीवन का अपरिहार्य हिस्सा बन गया है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति भी नहीं है। सोशल मीडिया का आभासी संसार हमारे जीवन के कई पहलुओं को तय कर रहा है, बहुत हद तक नियंत्रित भी करने लगा है। हमारा रहन-सहन, कामकाज, खुशियों के पल, निराशा, मौजमस्ती, यहाँ तक कि दुखों को भी सोशल मीडिया पर साझा करने की प्रवृति हमारी जीवन शैली का अभिन्न हिस्सा बन गए हैं। हम मनुष्य मूलतः सामाजिक प्राणी हैं। हम लोग सुख-सुविधा के चाहे कितने भी ताम-झाम जुटा लें, सम्पन्नता प्राप्त कर लें, बावजूद इसके सामाजिक ताने-बाने के बिना हम संतुष्टि का भाव महसूस नहीं कर सकते हैं। मानव सभ्यता के शुरुआत से ही हम परिवार, जाति-बिरादरी, संतति और कुलगोत्र आदि के द्वारा सामाजिक संबंधों का ताना-बाना बुनते रहे हैं।
वर्तमान में हम ‘विश्व ग्राम’ के दौर में जी रहे हैं। संचार एवं संपर्कों के अधुनातन माध्यमों ने वैश्विक दूरी को बहुत कम कर दिया है। नेट वर्क के इस युग में सोशल मीडिया ने यह संभव कर दिखाया है। यह कहा जा सकता है कि नेटवर्क में तकनीक का उपयोग करके ‘सोशल मीडिया’ के बहुत से माध्यमों का प्रादुर्भाव हुआ है।
सोशल मीडिया इंटरनेट आधारित उपयोगों का एक ऐसा समूह है जो विचारधाराओं और तकनीकों के आधार पर निर्मित हुआ है और यह उपयोगकर्ताओं को सामग्री के सृजन और इसके आदान-प्रदान की सुविधा देता है। वर्तमान में लगभग सभी आयु वर्ग के लोगों में सोशल मीडिया की चाहना दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है।
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आज दुनियाँ भर में सोशल नेटवर्किंग पर संदेशों, सूचनाओं एवं विचारों का आदान-प्रदान करना नेटवर्क पर की जाने वाली नंबर एक गतिविधि बन गयी है। ऐसा अनुमान है कि इससे पहले यह स्थान पोर्नोग्राफी साइट्स को प्राप्त था। सोशल मीडिया सूचना एवं संचार का बहुत ही सशक्त माध्यम बन गया है, जिसके माध्यम से हम लोग अपनी बात को, विचारों को बिना किसी रोक-टोक के रख पाते हैं और हमारी बात बहुत कम समय में देश और दुनियाँ के कोने-कोने तक पहुँच जाती है। इतना ही नहीं इस पर लोग अपनी राय को बेबाक रख सकते हैं। इस तरह से हम संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की आज़ादी का उपयोग करने में कुछ हद तक समर्थ भी हो जाते हैं।
आधुनिक युग में मीडिया का सामान्य अर्थ सामाचार-पत्र, टेलीविजन और सोशल मीडिया इत्यादि से लिया जाता है। किसी भी देश की उन्नति व प्रगति में मीडिया का बहुत बड़ा योगदान होता है। अगर यह कहा जाय कि मीडिया समाज का निर्माण व पुनर्निर्माण करता है, तो यह गलत नहीं होगा। इतिहास में ऐसे अनगिनत उदाहरण भरे पड़े हैं, जब मीडिया की शक्ति को पहचानते हुए लोगों ने उसका उपयोग सत्ता परिवर्तन के भरोसेमंद हथियार के रूप में किया है। हाल के समय में सोशल मीडिया का चलन बहुत तेजी से बढ़ा है। तकनीक के बढ़ते क्षेत्र से सोशल-मीडिया तक लोगों की पहुँच काफी आसान हो गयी है। सोशल मीडिया के माध्यम से न्यूज या मनोरंजन की चीजें लोगों को तुरन्त और आसानी से उपलब्ध होती है। सोशल मीडिया ने लोगों के बीच की दूरी को कम कर दिया है । सोशल मीडिया के कई रूप हैं जिनमें कि इन्टरनेट फोरम, वेबलॉग, सामाजिक ब्लॉग, माइक्रोब्लागिंग, विकीज, सोशल नेटवर्क, पॉडकास्ट, फोटोग्राफ, चित्र, चलचित्र आदि सभी आते हैं। अपनी सेवाओं के अनुसार सोशल मीडिया के लिए कई संचार प्रौद्योगिकी उपलब्ध हैं।
सोशल मीडिया के माध्यम से सूचना दूर-दराज के गाँवों तक भी उपलब्ध होती है, भारत में मोबाइल फोनों का विस्तार काफी तेज गति से हो रहा है। मीडिया का जन-जागरण में भी बहुत बड़ा योगदान है। बच्चों को पोलियो की दवा पिलाने का अभियान हो या एड्स के प्रति जागरूकता फैलाने का कार्य, मीडिया ने अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह से निभाई है। लोगों को वोट डालने के लिए प्रेरित करना, बाल मजदूरी पर रोक लगाने के लिए प्रयास करना और धूम्रपान के खतरों से अवगत कराना जैसे अनेक कार्यों में मीडिया की भूमिका सराहनीय रही है। मीडिया समय-समय पर नागरिकों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करता रहता है। देश में भ्रष्टाचारियों पर कड़ी नजर रखता है। समय-समय पर स्टिंग ऑपरेशन कर इन सफेदपोशों का काला चेहरा दुनिया के सामने लाता है।
वर्तमान समय में सोशल मीडिया की भूमिका
सोशल मीडिया पारस्परिक संबंध के लिए अंतर्जाल (इन्टरनेट) एवं अन्य माध्यमों द्वारा निर्मित आभासी समूहों से है। यह व्यक्तियों और समुदायों के साझा, सहभागी बनाने का माध्यम है। इसका उपयोग सामाजिक संबंध के अलावा उपयोगकर्ता सामग्री के संशोधन के लिए उच्च पारस्परिक मंच बनाने के लिए मोबाइल और वेब आधारित प्रौद्योगिकियों के प्रयोग के रूप में भी देखा जा सकता है। वर्तमान में समाज में सोशल मीडिया की भूमिका और दखल निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली में प्रेस को लोकतांत्रिक व्यवस्था का चौथा स्तंभ कहा जाता है, प्रेस की अहम् जिम्मेदारी है कि देश और लोगों की समस्याओं को सामने लाने के साथ-साथ सरकार के कामकाज पर नजर रखे। प्रेस के माध्यम से सूचनाओं के प्रचार-प्रसार में कुछ छद्म बंदिशें भी रहती ही हैं।
दरअसल सरकारें अपने मंतव्य और एजेंडा को लागू करने के लिए प्रेस को अपने हित में साधने की कोशिशें तो करती ही हैं। यह तथ्य न केवल भारत के सम्बन्ध में सही है वरन विश्व भर में भी यह होता रहा है। सोशल मीडिया की स्थिति इस मामले में भिन्न है। प्रथम तो ये माध्यम सीधे-सीधे सरकार के नियंत्रण में नहीं के नियंत्रण में नहीं आते और दूसरा इनकी व्यापकता इतनी अधिक होती है कि इन पर प्रतिबन्ध लागू करना बहुत आसान काम नहीं होता है, हाँ यदि सरकार अभियक्ति की आज़ादी को ही नकार दे तो बात अलग है।
आज भी विश्व के कतिपय देशों में सोशल मीडिया प्रतिबंधित है। प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि सोशल मीडिया की आज़ादी को किस तरह से परिभाषित किया जाए? इसकी सीमा क्या हो? इतना तो तय है कि प्रेस की आज़ादी की तरह सोशल मीडिया की स्वतंत्रता निरपेक्ष नहीं हो सकती। भारतीय संविधान में प्रेस की स्वतंत्रता को अलग से परिभाषित नहीं किया गया है वरन नागरिकों के मौलिक अधिकारों के अंतर्गत अधिकारों के अंतर्गत अनुच्छेद 19 (1) के द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अभिन्न हिस्से के रूप में व्याख्यायित किया गया है। अतः सोशल मीडिया के उपयोग में भी ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ की यही व्याख्या लागू होती है।
वर्तमान समय में दुनियां के अनेक देशों में लोग अपनी सुविधा एवं परिस्थितियों के अनुसार सोशल साइट्स का इस्तेमाल अपने विचारों एवं भावनाओं का आदान-प्रदान करने के लिए कर रहे हैं। पहली बार नब्बे के दशक में सोशल मीडिया की चर्चा शुरू हुई, जब वर्ष 1994 में पहली सोशल मीडिया जीओ साईट के रूप में सामने आयी। इसका उद्देश्य एक ऐसी वेबसाईट बनाना था जिसके माध्यम से लोग अपने विचारों एवं भावनाओं को साझा कर सकेंगे, मीडिया के माध्यम से बातचीत कर सकेंगे। शुरुआत में इसे मात्र 6 शहरों में इस्तेमाल के लिए बनाया गया था परन्तु आज यह सम्पूर्ण विश्व में निर्विवाद रूप से लोकप्रिय हो गया है। फेसबुक, टि्वटर, गूगल प्लस, लिंक्डइन, माय स्पेस, पिंटररेस्ट आरकुट, आदि तमाम सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने सारी दुनिया को एक तरह से सूत्र में बाधने का काम किया है। इंटरनेट आधारित सोशल नेटवर्किंग की परंपरा सबसे पहले वर्ष 2002 में ‘फ्रेंडस्टर’ से हुई थी। इसके कुछ समय बाद ‘माई स्पेस’ व ‘लिंक्डन’ जैसी साइटें सामने आई। फिर वर्ष 2004 में फेसबुक का आगमन हुआ, आज की तारीख में यह सबसे अधिक लोकप्रिय नेटवर्किंग साइट्स मौजूद हैं।
‘ट्विटर’ इसके बाद दुनिया की सबसे लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग साइट है। सोशल साइट्स के उपयोगकर्त्ताओं की दृष्टि से देखा जाए ‘फेसबुक’ पहले स्थान पर है। इसके बाद क्रमशः ट्वीटर, गूगल प्लस, लिंक्डइन, पिंटररेस्ट आदि का नंबर आता है। सोशल साइट्स के उपयोगकर्त्ताओं की इन माध्यमों के प्रति दीवानगी इस हद तक बढ़ी हुई है कि एक सर्वेक्षण अनुमान के अनुसार भारत में सोशल मीडिया के उपयोगकर्त्ता, प्रतिमाह औसतन फेसबुक पर 405 मिनट, पिंटररेस्ट पर 89 मिनट, टि्वटर पर 21 मिनट, लिंक्डइन पर 17 मिनट व गूगल प्लस पर 3 मिनट लगाते हैं।
एक अनौपचारिक सर्वेक्षण के मुताबिक, भारत में फेसबुक व गूगल प्लस, ब्राजील में गूगल प्लस, फ्रांस में ‘स्काईराक’, द. कोरिया में ‘साय वर्ल्ड’, चीन में ‘क्यू क्यू’ तो रूस में ‘वेकोनेटाकटे’ साइट्स लोकप्रिय हैं। सोशल मीडिया की लोकप्रियता से आकर्षित होकर अब भिन्न-भिन्न वर्ग के लोग भी अपने विचारों को साझा करने के लिए सोशल साइट्स इजाद करने लगे हैं। आज फेसबुक पर आम आदमी ही नहीं खास लोग भी सक्रिय हैं। राजनीति, फिल्म जगत, साहित्य, कला, अर्थ, मीडिया, कारपोरेट जगत से लेकर सरकारी सेवाओं में पदस्थ एवं सैन्य अधिकारी भी फेसबुक पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। ऐसे लोग जो अपने मन की बात कहने के लिये उचित मंच नहीं पाते, वे भी सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर खूब लिख-पढ़ रहे हैं, अपनी बात रख रहे हैं। सोशल नेटवर्किंग साइट्स में सबसे ज्यादा उपयोगकर्त्ता ‘फेसबुक’ के हैं।
COVID-19 महामारी एवं सोशल मीडिया
वर्तमान में हम कोरोना वायरस के कारण व्याप्त महामारी (Epidemic) जो किसी एक देश विशेष में सीमित न रहकर पूरे विश्व में व्याप गयी है, अब इसे वैश्विक/सर्वव्यापी महामारी (Pandemic) कहा जा रहा है, पूरा विश्व जगत आक्रांत है। दरअसल, कोरोना वायरस का चाल-चरित्र कुछ इस तरह का है कि आपसी संपर्क से इसके संक्रमण एवं प्रसार बहुत तेजी से हो जाता है। इसलिए सोशल डिस्टेंसिंग (Social distancing) एक अनैच्छिक अपरिहार्यता बन गयी है।
वस्तुतः हम मनुष्य सामाजिक प्राणी हैं, हमारी दिनचर्या का अधिकाँश हिस्सा लोगों से अपने विचारों के आदान-प्रदान एवं अपनी भावनाओं को साझा करने में व्यतीत होता है। लॉक डाउन (Lock Down) के कारण हमारी दिनचर्या का यह अहम् हिस्सा यकीनन प्रभावित हुआ है। यद्धपि टेलीविज़न आदि ऐसे कुछ माध्यम गिनाए जा सकते हैं, जो मनोरंजन की जरुरत को कुछ हद तक पूरा कर सकते हैं परन्तु सामाजिक मेलजोल और संपर्क की जरूरतों को संबोधित नहीं कर सकता है, ऐसा करने में यह माध्यम समर्थ भी नहीं है। इस कमी को पूरा करने के लिए ‘सोशल मीडिया’ का उपयोग इस अवधि में बढ़ा है और यह स्वाभाविक भी है।
चीन में दिसंबर 2019 में कोरोना वायरस का पहला मामला सामने आया। भारत में जनवरी 2020 में इस तरह का पहला मामला प्रकाश में आया। 11 मार्च 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने COVID-19 को वैश्विक महामारी घोषित किया। भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने 13 मार्च 202 को बताया कि ‘ भारत के लिए कोई आपातकालीन खतरा नहीं है।‘ 19 मार्च 2020 को हमारे प्रधानमंत्री ने सोशल डिस्टेंसिंग के बारे में देश की जनता को बताया और 22 मार्च 2020 को एक दिन के जनता कर्फ्यू का आवाहन किया। 24 मार्च 2020 को पहली बार 21 दिन के लॉक डाउन की घोषणा की गयी। अब इसे पुनः 2 मई 2020 तक बढ़ा दिया गया है।
दुनियां के किसी भी देश की तुलना में हम भारतवासी अपने दिनचर्या में अधिक सामाजिक हैं, अपनी जरूरतों के लिए ही नहीं वरन अपने सुख-दुःख, सफलता-असफलता, प्रसन्नता एवं विषाद को सामाजिक रूप से साझा करने में संतोष का अनुभव करते हैं। यह समावेशी समाज की दिशा में बहुत सकारात्मक बात भी है। यह हमारे सामाजिक ताने-बाने को मजबूत बनाता है। लॉक डाउन के कारण, जब आपसी मेल-जोल के अवसर सीमित हो गए हों तो सोशल मीडिया की भूमिका अहम् हो जाती है। यह एक अलग बहस का विषय हो सकता है कि क्या सोशल मीडिया की आभासी दुनियाँ में संपर्क से संतुष्टि का वह स्तर प्राप्त होता है जो प्रत्यक्ष संपर्क में मिलता है। इतना जरूर है कि सोशल मीडिया इस वैश्विक महामारी के दौर में अहम् भूमिका का निर्वहन कर सकता है। इस भूमिका को निम्नांकित बिन्दुओं में निरूपित किया जा सकता है-
- यह हमारी सामाजिक मेल-जोल की जरूरतों को कुछ हद तक पूरा तो कर ही सकता है। इधर लॉक डाउन की अवधि में सोशल मीडिया में मित्रों के संदेशों में एक-दूसरे की कुशलता की फ़िक्र देखी जा रही है। संदेशों में संवेदनशीलता नज़र आती है, एक दूसरे का हौसला देने वाले संदेश बहुतायत में नज़र आ रहे हैं।
- विभिन्न प्रोफेशन से जुड़े हुए लोग इस बात से फिक्रमंद नज़र आ रहे हैं कि अपने कार्य क्षेत्र के क्लाइंट के लिए ऑनलाइन क्या कुछ किया जा सकता है। उदाहरण के लिए शिक्षक, बच्चों के लिए ऑनलाइन क्लास/होमवर्क/असाइनमेंट की प्रक्रिया अपना रहे हैं, इसी प्रकार से अन्य पेशों के लोग भी सोशल मीडिया का बेहतर उपयोग कर रहे हैं । यह महामारी के दौरान सोशल मीडिया की अहम् भूमिका का महत्वपूर्ण पहलू कहा जा सकता है।
- कोरोना महामारी से बचने के लिए जागरूकता सन्देश, बचाव के उपायों का प्रचार-प्रसार में सोशल मीडिया का बेहतर इस्तेमाल दिखलायी देता है। इस अवधि में सोशल मीडिया का उपयोग करते हुए महामारी के दृष्टिगत बहुत से ऑनलाइन कोर्स संचालित हो रहे हैं। इसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा COVID-19 के सन्दर्भ में अल्पकालिक कोर्स सोशल मीडिया में बहुप्रचारित एवं लोकप्रिय हो रहे हैं। मैंने, स्वयं इस अवधि में इस तरह के कुछ अल्पकालिक कोर्स पूर्ण किये हैं और इनकी जानकारी मुझे सोशल मीडिया से ही मिली थी। इस तरह से सोशल मीडिया महामारी के दौरान जन-जागरूकता बढाने में अपनी अहम् भूमिका का निर्वहन कर सकता है और कुछ हद तक कर भी रहा है।
- सोशल मीडिया में राशन, खाद्ध्य सामग्री एवं अन्य जरूरी चीजों के जरुरतमंदों की सूचना एवं सन्देश प्रसारित हो रहे हैं। इसके परिणाम स्वरुप स्वैच्छिक संस्थाएं, सरकारी मशीनरी सक्रिय नजर आ रही हैं। इस तरह से सोशल मीडिया एक ‘प्रेशर ग्रुप’ के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में बहुत हद तक सफल हो पा रहा है। इसका एक दूसरा लाभ भी सामने आ रहा है। देखा-देखी भी बहुत सारे सहृदय व्यक्ति इस अभियान का हिस्सा बन रहे हैं, इस प्रकार से सोशल मीडिया अभिप्रेरित करने में कारगर साबित हो रहा है। विगत एक-दो वर्षों से उत्तराखंड में सोशल मीडिया में एक ऐसा ग्रुप सक्रिय है जो जरुरतमंदों को रक्त-दान के माध्यम से बहुत से मरीजों के जीवन बचाने में अपने योगदान दे रहा है। बस, इसमें यह ध्यान रखने की जरुरत है कि जरूरतमंद की मदद करने के क्रम में फोटोग्राफ्स आदि का इस तरह से इस्तेमाल न किया जाए कि यह उस जरूरतमंद की गरिमा एवं सम्मान को चोट पहुंचाए।
- महामारी और उस पर भी लॉकडाउन बहुत से लोगों में अवसाद की भावना पैदा कर सकता है। सोशल मीडिया में इस अवधि में व्यंग्य, चुटकुले, हास्य कथाएं, अपने हुनर को प्रदर्शित करते हुए विडियो आदि का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। यह उपक्रम सोशल मीडिया से जुड़े लोगों को मुस्कुराने की वजह दे रहा है और इससे कुछ हद तक अवसाद के क्षणों को दूर रखने में मदद भी मिल रही है। सोशल मीडिया रचनात्मक विचारों को प्रचारित एवं प्रसारित करने में अहम् भूमिका निभा सकता है। उदाहरण के लिए-लॉकडाउन अवधि में आलेख आमंत्रित करके डॉ0 राकेश चन्द्र रायल जी ने बहुत से लोगों को आलेख लिखने के लिए प्रेरित किया और लोगों को अपनी रचनाधर्मिता को जारी रखने का अवसर मिला। यह एक उदाहरण हैं, इसी तरह के बहुत सारे प्रयास सोशल मीडिया पर चल रहे हैं। वस्तुतः महामारी के दौरान स्वाभाविक रूप से सृजित अवसाद की निराशा को दूर करने के लिए रचनाशीलता एक सशक्त माध्यम हो सकती है और सोशल मीडिया इसके लिए एक उपयुक्त प्लेट-फार्म दे सकता है।
निष्कर्ष
सोशल मीडिया वस्तुतः एक तकनीकी साधन है। प्रत्येक तकनीकी साधन की तरह इसकी भी कुछ सीमायें हैं। यह एक अच्छा सेवक है परन्तु बहुत बुरा स्वामी भी है। यह उपयोगकर्त्ता पर निर्भर करता है कि वह इसका इस्तेमाल किस तरह से करता है। यह भी सोशल मीडिया में ही देखने में आया है कि किसी खास विचार/विचारधारा का प्रचार करने या विरोध करने के लिए इस साधन का किस प्रकार से दुरूपयोग किया जा रहा है, उन सभी का यहाँ पर विवरण देना उचित नहीं होगा। सूचनाओं/सामग्री को जांचे-परखे बिना स्वीकार कर लेना और अपना विचार बना लेना बहुत ही अनुचित है।
एक जिम्मेदार नागरिक के कर्तव्यों के दायरे में यह भी आता है कि समाज में भ्रम फैलाने वाले अवैज्ञानिक विचारों को रोकने में अपनी सामर्थ्य दिखाएँ। इतना ही नहीं यह भी सुनिश्चित करें कि समाज के समरसता के ताने-बाने को हानि पहुंचाने वाले विचार एवं सूचनाओं का प्रतिकार करें, इनको फैलने से रोकें । सोशल मीडिया का विवेकयुक्त उपयोग सामाजिक साक्षरता को बढ़ावा देने में, जनचेतना के प्रसार में, सामाजिक मुद्दों पर संवाद में, जनपक्ष को सरकार एवं सम्बंधित प्रशासकों के सामने में रखने में, संविधान विरुद्ध एवं विधि विरुद्ध कृत्यों को सामने लाने में, समाज में हो रही सकारात्मक गतिविधियों एवं पहलों को सामने लाने में, सामाजिक बुराईयों को सामने लाने में, महामारी एवं आपदाकाल में जरुरतमंदों को मदद पहुंचाने में बहुत मददगार हो सकता है।
वहीं दूसरी ओर इसका दुरूपयोग समाज में विद्वेष पैदा कर सकता है, सामाजिक विघटन का कारक हो सकता है। अतः सोशल मीडिया का विवेकशील उपयोग एक ‘औज़ार’ के रूप में कारगर हो सकता है। अपने संकीर्ण हितसाधन के लिए इसका उपयोग एक ‘हथियार’ के रूप में न किया जा सके, इसके लिए जागरूक एवं विवेकशील जनपक्ष को सजग एवं सतर्क रहने की आवश्यकता है।
इसमें कोई मत भिन्नता नहीं हो सकती है कि सोशल मीडिया के उपयोग एवं काम करने के तौर-तरीकों में बहुत बदलाव आए हैं। यह सूचनाओं, विचारों एवं भावनाओं के आदान-प्रदान करने का काम ही नहीं कर रहा वरन बहुत बार अफवाह फैलाने, चरित्र हनन, डराने-धमकाने, घृणा और विद्वेष फैलाने के के लिए तीव्र माध्यम के रूप में भी व्यवहृत किया जाने लगा है। विगत में सोशल मीडिया में इस तरह की बहुत बहुत सारी सामग्री प्रसारित एवं प्रचारित हुई है, उन सभी का यहाँ विवरण देना उपयुक्त नहीं होगा।
अभी हाल-हाल में सोशल मीडिया में एक नई प्रवृत्ति देखने में आ रही है, वह यह कि सोशल मीडिया में ‘ट्रोल’ किया जाना। यह सोशल मीडिया में किसी व्यक्ति द्वारा व्यक्त विचारों से असहमति के रूप में न होकर उस विचार के विरोध में एवं उसको खारिज करने के क्रम में किया जाता है। यह किसी व्यक्ति की ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ का हनन है। जहाँ तक सोशल मीडिया में व्यक्ति की अभिव्यक्ति की आज़ादी का प्रश्न है, हमारी दुनियाँ में एक तिहाई से अधिक लोग ऐसे देशों में रहते हैं जहाँ सोशल मीडिया में अपनी बात रखने और विचारों को अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता नहीं है। हालिया एक सर्वेक्षण के अनुसार मीडिया की आज़ादी के मामले में भारत की स्थिति बहुत संतोषजनक नहीं है लेकिन यह भी इतना ही सही है कि विश्व के बहुत सारे देशों की तुलना में भारत में मीडिया और सोशल मीडिया में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की स्थिति बेहतर ही कही जा सकती है और इस पर फिलहाल कोई ज्यादा गंभीर खतरा नहीं है।
( डॉ0 केवल आनन्द काण्डपाल वर्तमान में उत्तराखंड के बागेश्वर जनपद में रा0 उ0 मा0 वि0 पुड्कुनी (कपकोट) में प्रधानाचार्य के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। शिक्षा के क्षेत्र में अध्ययन, शोध व अध्यापन में सक्रियता से काम कर रहे हैं। इस लेख के बारे में आप अपनी राय टिप्पणी लिखकर या फिर Email: kandpal_kn@rediffmail.com के माध्यम से सीधे लेखक तक पहुंचा सकते हैं। इस पोस्ट को पढ़ने के बाद अपनी प्रतिक्रिया जरूर साझा करें।)
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