Trending

विश्लेषणः कोविड-19 के कारण शिक्षा पर क्या असर पड़ा?

कोविड-19 के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में स्कूल और कॉलेज पूरी तरह बंद हैं।

कोरोना ने पिछले एक साल से अधिक समय से लोगों की सिर्फ जान ही नही ली, हजारों दैनिक मजदूरी करने वाले परिवारों की नौकरी छीन ली। युवाओं से सपने देखने की अभिलाषा और बच्चों से उनका बचपन ले लिया. अपने गांव लौटकर गये कितने ही परिवारों के बच्चों ने पढाई छोड़ अपने माँ-बाप के साथ काम करना शुरू कर दिया और जो शहर में रह गये उन बच्चों ने जैसे-तैसे व्हाट्स-एप और अन्य माध्यम से पढाई करने की कोशिश तो की पर इन्टरनेट की सीमित पैक और पैसे की तंगी की वजह से पढाई का वो माहौल ही नही बन पाया जिसमें वो पले-बढे.

सरकार ने आरंभिक समय में विद्यालय को बंद तो रखा पर पढ़ाई पर हुए इस तालाबंदी ने शिक्षा पर जैसे ग्रहण लगा दिया. इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज भी बंद हो गये और ज़ूम और माइक्रोसॉफ्ट टीम के जरिये छात्र प्रयोगात्मक जैसे विषयों को भी प्रयोगशाला की जगह ऑनलाइन माध्यम से करने को मजबूर हैं. कोरोना काल में प्राइवेट स्कूलों ने अपने शिक्षकों की तनख्वाह भी कम कर दी और संगीत, खेल, योगा जैसे विषयों के शिक्षकों को यह कहकर निकाल दिया की कोरोना काल में उनकी जरूरत ही नही है. कई शिक्षक जो अनुबंध पर काम कर रहे थे उन्हें अपने घर चलाने के लिए फल-सब्जी बेचने तक की नौबत आ गयी.

ध्यान देने की बात ये है की शिक्षा व्यवस्था का गुरुकुल वातावरण या विद्यालयी परिवेश अब सिमटकर एक स्मार्ट फोन में कैद हो गया है. अब छात्र अपने घर से अपनी मर्जी से कैमरे बंद कर चलती हुई क्लास में बिना शिक्षक की अनुमति से इधर- उधर घूम सकता है और मनमाफिक तरीके से क्लास का आनंद ले सकता है. आइए कुछ पहलूओं पर विचार करें

छात्र की दृष्टि से

  1. स्वछंदता :- ऑनलाइन क्लास पारम्परिक गुरु-शिष्य शिक्षा के उलट एक छात्र को अपने मोबाइल या कंप्यूटर पर पढने की स्वतंत्रता देता है जहाँ ना तो शिक्षक के डांट का भय और ना ही क्लास में ध्यान से सुनने की बाध्यता. जब मन करे स्लो इन्टरनेट का बहाना बनाकर आप क्लास छोड़ सकते हैं. स्वछंद घूमना हो तो कैमरा बंद कीजिये और ऑनलाइन खेल का आनंद अलग से. पारम्परिक क्लास में जहाँ आप एक समय में या तो खेल सकते है या क्लास में रह सकते है पर कोरोना ने छात्रों को स्मार्ट फोन की तरह स्मार्ट बना दिया.
  2. कम पढाई और अधिक अंक :- ऑनलाइन माध्यम में मैंने कमजोर से कमजोर छात्रों को 80 से अधिक प्रतिशत अंक लाते देखा है. परीक्षा में प्रश्न आपके मोबाइल पर और हल के लिए गुगल हर समय उपलब्ध. अधिकांश प्रश्न वस्तुनिष्ठ होने की स्थिति में शत प्रतिशत उत्तर लिखकर अंक लाने की गारंटी.
  3. रिजल्ट की चिंता नहीं:- कोरोना में पिछले वर्ष कक्षा 9 और 11 के बच्चों को अधिकांश राज्य सरकारों ने बिना परीक्षा के कक्षा 10 और 12 में भेज दिया और अभी कोरोना की दुबारा वापसी पर छात्रों को ऐसे ही सरकार से अपेक्षा है. सीबीएसई ने भी पिछले साल कोरोना के बढ़ते मसले को देखते हुए कुछेक विषयों में परीक्षा के बिना ही पास कर दिया और हद तो तब हो गयी जब कुछ ऐसे छात्र भी पास हो गये जिन्हें परीक्षा होने की स्थिति में पास होना नामुमकिन था. 10वीं की परीक्षा रद्द होने के बाद 12वीं की परीक्षा रद्द करने की एक मुहीम चलाई जा रही है जिसका लक्ष्य परीक्षा दिए बिना अच्छे अंको से परीक्षा पास करना है।

छात्रों के लिए, ख़ासकर वो छात्र जिन्हें पढना और कुछ सीखने की चाह है ये एक संकट का काल है क्योंकि ऑनलाइन बेशक तुलनात्मक रूप से एक बेहतर व्यवस्था साबित हुई पर इसमें शिक्षण व्यवस्था का आदान-प्रदान अपेक्षा के अनुरूप नहीं हो रहा है. छात्रों की कोई शारीरिक गतिविधि नही होने की वजह से स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है और लगातार कंप्यूटर पर या मोबाइल पर बैठने की वजह से आँखों पर भी बुरा असर पड़ रहा है. मध्यम वर्गीय परिवार के छात्रों के लिए एक अलग परेशानी है क्योंकि वो हाई-स्पीड इन्टरनेट की व्यवस्था कर नहीं पाते ऐसे में यदि स्कूल में 4-5 घंटे की कक्षा हो रही है तो ऐसे छात्र 1 से 2 घंटा ही क्लास कर पा रहे हैं जो उनकी पढाई की दृष्टि से एक बाधा है.

शिक्षक की दृष्टि से

चूँकि मैं खुद एक शिक्षक हूँ तो मैं ये दर्द समझ पा रहा हूँ. आरंभिक समय में मुझे और मुझ जैसे हजारों शिक्षकों के लिए ऑनलाइन कक्षा लेना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य था. ब्लैकबोर्ड  की दुनिया से निकलकर डिजिटल बोर्ड पर आना इतना आसान नही था. दूसरी ओर आपकी कक्षा को जब छात्र और घर-परिवार के लोग भी देख व आकलन कर रहें हो तो शिक्षक की मेहनत काफी बढ़ जाती है और कुछ चीजों में बनाबटीपन होने की सम्भावना मौजूद रहती है. सरकारी स्कूल के छात्र अपने माता-पिता के फोन पर आश्रित होते हैं और इनके लिए मुझे सुबह 7 बजे या रात को 9 बजे के बाद कक्षा रखना पड़ता था क्योंकि जबतक फोन घर पर है तबतक ही ऑनलाइन पढाई संभव है.

मेरे जैसे कई शिक्षक इस बात को लेकर परेशान रहते हैं की ऑनलाइन में गणित और विज्ञान पढाना उतना सहज नही है जितना अन्य विषय. मेरे एक मित्र डॉ संजय तहिलयानी अक्सर इस बात को लेकर परेशान रहते हैं की ऑनलाइन में पढाना, बच्चों की कॉपी जांच सही समय पर बच्चों तक सही जानकारी दे पाना इतना आसान नही है जितना कक्षा में यह संभव हो पाता है. ऑनलाइन में बहुत सारे सॉफ्टवेयर की मदद से पढ़ा पाना सबके बस की बात नहीं क्योंकि सब शिक्षक तकनीक को लेकर इतने दक्ष और प्रशिक्षित नहीं है कि वे ऑनलाइन माध्यम से प्रभावी तरीके से पढ़ा पाए. कई पब्लिक स्कूल के प्रधानाचार्य भी परीक्षा में छात्रों के अंक और वास्तविक स्थिति में छात्रों के स्तर को लेकर काफी चिंतित रहते हैं. सनातन धर्म पब्लिक स्कूल की प्रधानाचार्या श्रीमति अनिता शर्मा और महाराजा अग्रसेन पब्लिक स्कूल की उप- प्रधानाचार्या श्रीमति सिम्मी भाटिया से मेरी मुलाकात में मैंने ऑनलाइन माध्यम में छात्रों के पढाई से दूर भागने की कई क़िस्से सुने.

सच ये है की ऑनलाइन कितना भी सशक्त क्यों ना हो पर इस माध्यम से प्राथमिक कक्षा खासकर प्री-प्राइमरी में छात्रों को ब्लैक-बोर्ड पर अ, आ—या a, b, — लिखकर यह मान लेना की बच्चों ने आपका अनुसरण करके अपनी कॉपी में ये काम कर लिया होगा एक कोरी कल्पना है. इसी तरह ऑनलाइन से बिना प्रयोगशाला गये प्रयोग को शिक्षक को करते देख यह मान लेना की छात्र को प्रयोग करना आ गया ऐसा ही है जैसे यू- tube पर कार चलाने की विडियो देख आपका कार चलाते वक्त दुर्घटना हो जाना. एक डॉक्टर जब रोगी के शरीर को छूकर उसके बारे में स्तेस्थोकोप लगाकर जो महसूस कर पाता है वो विडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये जानना जिस तरह संभव नही है उसी प्रकार एक सच्चे शिक्षक का बिना क्लासरुम में प्रवेश के यह जान पाना की अमुख छात्र द्वारा पाठ ग्रहण किया गया या नही जान पाना है.

छात्रों को कोरोना से बचाव बेहद जरूरी है और शिक्षक का सुरक्षित रहना भी उतना ही जरूरी है तो क्यों ना कोविड गाइडलाइन्स मानते हुए कक्षा को खोल दिया जाये जिससे छात्र के अंदर मानसिक और सामाजिक विकास के साथ उसकी बौद्धिक क्षमता का भी विकास हो. जब उद्योग खोले जा सकते हैं, शराब की दुकाने खोली जा सकती हैं, बसों और ट्रेनों में भर-भर कर आदमी एक जगह से दुसरे जगह जा सकता है, शादियाँ हो सकती है, लोग होटल जाकर , धार्मिक स्थलों और पर्यटन स्थलों में जा सकते है तो स्कूल और कॉलेज क्यों नहीं.

क्या कोविड के समय ऐसे छात्र जो परीक्षा दिए बिना पास कर दिए गये उनकी मानसिक योग्यता की जांच जब किसी जगह होगी तो उसमे वो छात्र खरे उतर पाएंगे. माना स्थिति भयावह है पर क्या पढ़ाई का कोई अन्य वैकल्पिक व्यवस्था है. मैंने छात्रों के अलावा कई शिक्षकों को भी विद्यालय के बंद का समर्थन करते देखा है पर इनमे से अधिकांशतः वो हैं जिन्हें छात्रों के भविष्य से ज्यादा खुद के आराम की फ़िक्र है. विद्यालयी शिक्षा का कोई विकल्प नहीं है और खासकर ऐसे छात्र जो 10- 12 की परीक्षा में बैठने वाले हैं उन्हें विद्यालय के साथ जोड़ने की जरूरत है अन्यथा हम एक ऐसे छात्रों को तैयार करेंगे जिनके पास डिग्री तो होगी पर उसका कोई मूल्य नही होगा. हमें इंजिनियरिंग और मेडिकल क्षेत्र में भी ऐसे ही लोग चाहिए जो प्रयोगशाला की भट्टी से तपकर निकलें हों.

क्या शिक्षा को वास्तविकता से जोड़ने का वक्त आ गया है ? कोरोना जैसे संकट काल में यह महसूस किया जा रहा है की अगर छात्रों को किताबी पढाई के अलावा प्राथमिक चिकित्सा, सामाजिक सुरक्षा जैसे ज्ञान को दिया जाय तो शायद इस संकटकाल में कई छात्र उन हजारों लोगों के लिए मददगार साबित हो सकते हैं जिन्हें समय पर समुचित प्राथमिक उपचार ना मिलने के कारण जान से हाथ धोना पड़ता है. आज जरूरत है  शिक्षा को वास्तविक जरूरतों के साथ जोड़ने की , प्रायोगिक शिक्षा की जिससे शिक्षा पाकर लोग अपने ज्ञान का उपयोग धन कमाने के लिए ही नहीं अपितु समाजिक उत्तरदायित्व निर्वहन के लिए कर सकें.

(लेखक परिचयः डॉ राजेश कुमार ठाकुर वर्तमान में राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय , रोहिणी , सेक्टर 16 दिल्ली -110089 में बतौर शिक्षक काम कर रहे हैं। 60 पुस्तकें , 500 गणितीय लेख, 400 से अधिक ब्लॉग व 10 रिसर्च पेपर प्रकाशित। 300 से अधिक विद्यालयों में शिक्षक-प्रशिक्षण का अनुभव। इस लेख के संदर्भ में आपके विचार और अनुभव क्या है, टिप्पणी लिखकर बताएं)

(शिक्षा से संबंधित लेख, विश्लेषण और समसामयिक चर्चा के लिए आप एजुकेशन मिरर को फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो कर सकते हैं। एजुकेशन मिरर के यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें। एजुकेशन मिरर अब टेलीग्राम पर भी उपलब्ध है। यहां क्लिक करके आप सब्सक्राइब कर सकते हैं। एजुकेशन मिरर के लिए अपनी स्टोरी/लेख भेजें Whatsapp: 9076578600 पर, Email: educationmirrors@gmail.com पर।)

6 Comments on विश्लेषणः कोविड-19 के कारण शिक्षा पर क्या असर पड़ा?

  1. Bhakti Akheniya // May 16, 2021 at 11:50 pm //

    Excellent article. Very well expressed from students point of view as well as teachers point of view. Thoughtfully written in a palatable language It is definitely worth pondering that children will have a degree but no knowledge and skill. . Hope the stakeholders understand and take the right decision well on time so that we don’t set the wrong values for our children.Its high time that we make our children understand that there is no substitute for hardwork and no shortcut to success.

  2. Sir jI,
    Aapka covid 19 , शिक्षा पर प्रभाव लेख, वास्तविकता दर्शक है, लेख सराहनीय है
    पर विद्यार्थियों को स्कूल में बुलाने से पहले उन्हें covid 19 से सुरक्षा संबंधी वैक्सीन मिल जाएं, ताकि भविष्य में इस महामारिका दुष्परिणाम प्राण खो के न हो, महाराष्ट्र में बहुत गंभीर स्थिति है, यहां स्कूल खोलने से पहले शिक्षक ओर विद्यार्थी दोनों का वैक्सिनेशन हो जाना अनिवार्य हो चुका है

  3. Kamal Kalam // May 1, 2021 at 1:26 am //

    जो कुछ देख, समझ और जी रहा हूँ आपने सब भाव समझ इस लेख में लिख दिया । माँ सरस्वती अपने बेटों पर कृपा करें । धन्यवाद सर । _/\_

  4. RAKESH KUMAR CHOBBER // April 30, 2021 at 11:10 pm //

    Sir u r absolutely written right sir, offline teaching is more effective than online..Students r not studying effectively in online mode. ..two ways process of teaching not possible effectively.

  5. A.k.pandey // April 30, 2021 at 11:06 pm //

    बेहतरीन लेख है,यथार्थ है।लेख में जिजीविषा है जो अमूल्य है।इसकी बदौलत एक दिन फिर सब कुछ पटरी पर होगा।

  6. Ajay Kumar Singh // April 30, 2021 at 10:31 pm //

    Aapne sahi likha hai ki online class itni effective nhi hai jitni offline class.2nd thing govt open every thing except school ye samajh se pare hai.i am also thinking about future of students as well as India what will happen to these students after covid.so in my opinion school must be open with covid guidelines.

इस लेख के बारे में अपनी टिप्पणी लिखें

%d bloggers like this: