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‘कलाम जैसा बनने के लिए तो बहुत ज्यादा पढ़ना होगा’

शिक्षा जीवन भर चलती रहती है।आज इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ने वाले सातवीं क्लास के एक बच्चे से बात हो रही थी। इस दौरान मैंने एक सवाल पूछा, “तुम अपनी अंग्रेजी भाषा की जानकारी का इस्तेमाल कहां-कहां कर सकते हो? इसका पहला जवाब था, परीक्षा में सवालों का जवाब लिखने के लिए ताकि अच्छे नंबर मिले। दूसरा जवाब किसी साक्षात्कार के दौरान अंग्रेजी में पूछे गये सवालों का जवाब दे सकता हूँ।

मगर हो सकता है साक्षात्कार लेने वाले व्यक्ति ने तुम्हारे अंग्रेजी के वे पाठ न पढ़ें हों जो तुमने पहली से लेकर ग्रेजुएशन तक पढ़े हैं, तब तो ऐसी पढ़ाई का कोई फायदा नहीं होगा। जो सिर्फ परीक्षा के नंबर लाने के लिए हो। इस बात की तरफ उसका ध्यान गया तो उसने कहा कि घूमने से तो बेहतर है कि स्कूल में पढ़ाई की जाये।

बच्चे ने बताया कि उसे देश के पूर्व राष्ट्रपति कलाम साहब बेहद पसंद हैं। का नाम सामने था। उन्होंने मिशाइल बनाई, सोशल सर्विस की और पूरे देश को 2020 का सपना दिया। फिर बात हुई कि मिशाइल बनाने के लिए उन्होंने पढाई भी की होगी। अच्छी पढ़ाई की होगी। शुरुआत से कॉलेज तक अच्छी पढ़ाई की होगी। क्या तुम्हारे साइंस की पढ़ाई भी ऐसी है जो उस दिशा में लेकर जाए। तो फिर जवाब मिला, “हाँ कुछ हद तक। मगर उतना आगे जाने के लिए तो बहुत ज्यादा पढ़ना पड़ेगा।”

परीक्षा ही सबकुछ है?

बच्चे ने बताया कि 40 बच्चों की क्लास में दस बच्चे टॉपर हैं। बाकी 30 बच्चों की स्थिति सामान्य या फिर इससे नीचे है। तो सवाल उठा कि शिक्षक पढ़ाते कैसे हैं कि दस बच्चे ही टॉपर हैं? और बाकी बच्चों की स्थिति उनसे खराब है। बच्चे ने जवाब दिया कि शिक्षक सभी बच्चों के ऊपर ध्यान देते हैं। मगर सारे बच्चों को जो पढ़ाया जाता है, पूरा समझ में आ जाता है यह कहना मुश्किल है। हो सकता है कि उनको नहीं भी समझ में आता हो।

उसने अपने स्कूल में अंग्रेजी पढ़ाने वाली शिक्षिका के बारे में बताया कि वे हमको 5-6 साल से पढ़ा रही हैं। क्लास में हम सबको केवल छोटे सवाल बताती हैं और बड़े सवाल वही बताती हैं जो परीक्षा में आने वाले होते हैं। बातचीत में सामने आया कि गणित विषय को छोड़कर सारे शिक्षक बच्चों को परीक्षा से पहले आने वाले सवालों की एक लिस्ट बता देते हैं जिनमें से सवाल आते हैं।

ऐसी स्थिति के बारे में सुनते हुए मुझे बीएचयू के डीएवी कॉलेज में पढ़ाने वाले एक बैनर्जी सर याद आए तो हमें इकॉनमिक्स पढ़ाते थे। उनका कहना था कि परीक्षा में कौन सा सवाल आएगा, ऐसे सवाल मुझसे मत पूछिए। आपको जो टॉपिक समझ में नहीं आया उसके बारे में पूछिए। ऐसे शिक्षकों का होना छात्रों को मजबूती देता है, जो क्लास लेने से पहले अपनी तैयारी पर पूरा ध्यान देते हैं।

बैसाखी न बन जाएं छोटे-छोटे सपोर्ट

बच्चों को मिलने वाला छोटे-छोटे सपोर्ट कहीं बैसाखियों में तब्दील न हो जाएं, यही डर लगता है जब शिक्षक बच्चों को परीक्षा में आने वाले सवाल पहले ही बता देते हैं। वहीं पढ़ाई के दौरान छोटे-छोटे सवाल करवाते हैं। ताकि उनको कक्षा में पढ़ाने के लिए अतिरिक्त मेहनत न करनी पड़े। ऐसी स्थिति लंबे समय में न शिक्षकों के हित में है और न बच्चों के। इससे दोनों का नुकसान होता है।

इस बात में हमारे लिए एक संदेश छिपा है कि बतौर शिक्षक अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए निरंतर काम करना चाहिए। अपने स्कूल के बच्चों को सीखने के लिए और खुद से सोचने के लिए प्रेरित करना चाहिए। अभी जिस तरह से बच्चों को ढाला जा रहा है उससे तो वे महज फॉलोवर बनकर रह जाएंगे। वे कोई काम क्यों कर रहे हैं, इस सवाल का उनके पास कोई जवाब नहीं है। अपनी पढ़ाई का वे जीवन में कहां-कहां इस्तेमाल करेंगे  ऐसे सवालों का जवाब खोजने वाली गतिविधि हर स्कूल में होनी चाहिए।

ताकि बच्चों के सामने पढ़ाई का वास्तविक उद्देश्य पता रहे और वे अपनी पढ़ाई को एक ऐसे ढर्रे के रूप में न देखें, जिस पर बस चलते चले जाना है। क्योंकि उस पर चलने के अलावा एक ही रास्ता है खाली घूमना और खाली घूमने का कोई उद्देश्य होता है क्या?  ऐसे सवालों का उनके पास अभी कोई जवाब नहीं है।

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