कम स्टाफ वाली स्थिति में पढ़ाने का मोटीवेशन कहां से आएगा?
एक सरकारी स्कूल में जब स्कूल में चार शिक्षक थे तो पांच शिक्षकों की डिमांड होती थी। स्कूल के प्रधानाध्यापक कहते थे कि हमें पांच शिक्षक दे दीजिए, हम अपने स्कूल को पूरे क्षेत्र का सर्वश्रेष्ठ स्कूल बना देंगे। आज उसी स्कूल में मात्र दो का स्टाफ काम कर रहा है। वहां काम करने वाले एक अन्य शिक्षक नवंबर में सेवानिवृत्त हो रहे हैं। इसके बाद 150 से ज्यादा बच्चों के नामांकन वाला यह प्राथमिक स्कूल सिंगल टीचर स्कूल बन जाएगा।
पढ़ाने का मोटीवेशन कहां से आएगा?
कुछ महीने पहले ही इस स्कूल को ब्लॉक की सर्वश्रेष्ठ स्कूल घोषित किया गया था। मगर बदले हुए संदर्भों में और बदली हुई व्यवस्था में यह स्कूल इलाके की सबसे बरबाद स्कूल बनने की राह पर है। वहां काम करने वाले इकलौते शिक्षक काफी प्रेरित होकर काम करते हैं, मगर ऐसी प्रेरणा को सिर्फ झूठी आशा के भरोसे कबतक बचाया जा सकता है?
15 अगस्त तो यह शिक्षक अपने स्कूल में समुदाय के साथ स्वतंत्रता दिवस मना रहे थे। समुदाय के कुछ लोगों का कहना है कि यहां के पहले वाले प्रधानाध्यापक बच्चों के बारे में ज्यादा नहीं सोचते थे। वे स्कूल में बाहरी चीज़ों के ऊपर ज्यादा ध्यान देते थे। जबकि यहां के प्रधानाध्यापक का कहना था कि गाँव के लोग चाहते थे कि मैं इसी स्कूल में ही रहूं। किसी अन्य स्कूल में मेरा स्थानांतरण न हो। वास्तविकता क्या है? थोड़ा-थोड़ा दोनों तरफ के लो जानते हैं।
‘शिक्षक सब जानते हैं’
बच्चों को पढ़ाने और उनकी प्रगति के बारे में सोचने वाले सबसे सकारात्मक शिक्षक जो अभी इस स्कूल को अपना नेतृत्व दे रहे हैं, कहते हैं, “बच्चों को पढ़ाने का काम तो काफी मुश्किल हो गया है। रोजाना कुछ न कुछ लगा रहता है। ऐसे में भला स्कूल में पढ़ाई-लिखाई का काम सुचारू रूप से कैसे संचालित होगा?” उनकी बात में सच्चाई है। मगर शिक्षा विभाग के अधिकारी उनकी बात से इत्तेफाक नहीं रखते।
वे कहते हैं, “शिक्षक सब जानते हैं। उनको इस बात की ट्रेनिंग दी जाती है कि कम शिक्षक होने पर स्कूल का संचालन अच्छे से कैसे किया जाए?” शायद अधिकारी भी इस बात को समझते हैं कि जब खुद उनके काम को सपोर्ट करने के लिए सिस्टम में मॉनिटरिंग को सपोर्ट करने वाला स्टाफ नहीं है तो फिर स्कूल में भला स्टाफ कहां से आएगा? इसलिए कोई सीधा जवाब देने से बेहतर जिम्मेदारी शिक्षकों के ऊपर ही डाल देना बेहतर समझते हैं।
क्या कहता है शिक्षा का अधिकार क़ानून?
शिक्षा का अधिकार कानून के अनुसार किसी भी स्कूल में बच्चों के अनुपात में शिक्षक होने चाहिए। मगर सरकारी स्कूलों की ज़मीनी स्थिति इसके विपरीत दिखाई देती है। छात्र-शिक्षक अनुपात 30:1 का है। मगर बहुत से स्कूल ऐसे हैं जो सिंगल टीचर स्कूल हैं। यानि पूरे स्कूल के लिए, सभी विषय पढ़ाने के लिए। स्कूल में खाना बनवाने के लिए और स्कूल से जुड़ी डाक भेजने के लिए। सत्र के आखिर में और बीच नें विभिन्न प्रशिक्षणों में हिस्सा लेने के लिए मात्र एक ही शिक्षक हैं।
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