स्कूल के ‘मदारी’
स्कूल में प्रशासन वाले मसलों को लेकर बात हो रही थी। एक शिक्षक ने कहा,”मेरे स्कूल का मदारी सही नहीं है।” मैंने कहा कि सर ‘मदारी’? उनका कहना था कि हाँ मदारी ही कहा है मैंने। स्कूल के प्रिंसिपल के लिए इससे अच्छा शब्द और क्या इस्तेमाल किया जाये।
एक शिक्षक के इस क्रिएटिव से जवाब ने चीज़ों को अलग नज़रिए से देखने का मौका दे दिया। यानि स्कूल कैसा है? उसका प्रशासन कैसा है? वहां बच्चों के पढ़ाई का स्तर कैसा है? शिक्षकों के बीच में तालमेल कैसा है? काफी कुछ इस पर निर्भर करता है कि स्कूल का ‘मदारी’ कैसा है?
गाँव के मदारी
बचपन के दिनों में गाँव में मदारी आते थे। अलग-अलग जानवरों के साथ। कोई डमरू बजा रहा होता। तो कोई किसी अन्य वाद्य यंत्र के साथ गाँव के बच्चों बड़ों और बूढ़ों को अपना खेल दिखाने के लिए आकर्षित करता था। समय के प्रबंधन और टाइमिंग का ख़ास ध्यान रखा जाता था। कौन सा आइटम पहले दिखाना है, कब खेल को थो़ड़ी देर रोककर बच्चों को घर से सीधा या राशन और पैसा लाने के लिए कहना है। कब खेल को सनसनी वाले मोड़ पर लाकर छोड़ देना है।
शिक्षक साथी की बातों से लगा कि शिक्षा पर पंचतंत्र की अगर कोई कहानी होती तो उसका शीर्षक होता, “स्कूल के मदारी।” फिर उस कहानी में इसी तरह की कई परिस्थितियों का जिक्र होता। जैसे एक दिन मदारी ने सभी जानवरों को इकट्ठा किया और कहा, “अगर सामने से कोई गधा जा रहा हो और मैं कहूँ कि घोड़ा जा रहा है। तो आपको यही कहना है कि घोड़ा जा रहा है। मेरे स्कूल में ऐसे ही चलता है।” स्कूली व्यवस्था में ऐसे विचारों से लैस लोगों से सामना होता है तो आप सोचते हैं कि कैसे-कैसे लोग शिक्षा तंत्र में मौजूद हैं जो शिक्षा को लोकतांत्रिक प्रक्रिया के रूप में देख ही नहीं पाते।
वे शिक्षकों के आत्मविश्वास पर चोट करते हैं। उन्हें कमज़ोर करते हैं। अंततः उस व्यवस्था की छवि को बट्टा लगाते हैं, जिसका वे नेतृत्व कर रहे हैं।
‘मदारी’ ही लीड करें, जरूरी तो नहीं
कोई जरूरी नहीं है कि प्रधानाध्यापक ही संस्था का नेतृत्व करें। कई बार ऐसे प्रभावशाली शिक्षक भी संस्था को बग़ैर किसी अथॉरिटी के नेतृत्व प्रदान करते हैं, जिसका स्कूल के माहौल पर सकारात्मक असर होता है। ऐसी परिस्थिति में लीडरशिप की वह थ्योरी चीज़ों को समझने में मदद नहीं करती जो यह मानती है कि केवल प्रधानाध्यापक ही संस्था का नेतृत्व करता है। ऐसे प्रभावशाली शिक्षकों की मौजूदगी हमारे समाज में है जिन्होंने अपनी कोशिशों से स्कूल में यथास्थिति को बदलने की कोशिश की है। मगर ऐसी बहुत सी कहानियां सुर्खियों से परे होती हैं।
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