दूसरा पक्षः ‘हम तो ड्रैस कोड के प्रबल समर्थक है’

उत्तराखंड में विभिन्न शिक्षक संगठन शिक्षकों पर ड्रेस कोड थोपने का विरोध कर रहे हैं।
एजुकेशन मिरर के नियमित पाठक और शिक्षक संजय वत्स लिखते हैं, “शिक्षको की ड्रेस कोड को लेकर हो-हल्ला करने वालों की चाहे जो भी मंशा हो, पर मैं विभाग में आने से पूर्व भी ड्रैस कोड का समर्थक था, आज भी हूँ और कल भी रहूंगा। पहली तारीख विभाग ने मुकर्रर की है ड्रेस पहनने की है।”
मैंने दो दिन पहले ही ड्रेस पहनना शुरु कर दिया है। मेरा इस विषय में ना तो किसी व्यक्ति विशेष या समूह पर कोई टिप्पणी करने का उददेश्य है ना ही किसी को यह आदेश स्वीकार करने को प्रेरित करना। मुझे जो अच्छा लगा मैंने करना शुरू कर दिया।
ड्रेस कोड को लेकर हंगामा क्यों है बरपा?
सभी प्रकार के दबाव समूह ड्रेस कोड के मुद्दे पर माननीय शिक्षा मंत्री, उत्तराखंड सरकार का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। कारण अनेको हो सकते हैं जैसे धुलाई भत्ता, वर्दी भत्ता, ग्रीष्मकालीन वर्दी, शीतकालीन वर्दी आदि आदि यह भी सत्य है कि शिक्षकों की अनेक मांगे वर्षों से लंबित हैं। कुछ पूरी हुई हैं कुछ अभी भी अधूरी हैं। संपूर्ण भारत वर्ष में विभिन्न शैक्षिक दबाव समूह शैक्षिक प्रगति और शिक्षा से जुडे अनेक सवालों को लेकर अनेको संगोष्ठीयां और सम्मेलन प्रति वर्ष आयोजित किये जाते हैं । इन सम्मेलनों-संगोष्ठियों में बनी सहमति और निष्कर्षों का कितना लाभ शिक्षा से जुड़े घटकों को प्राप्त होता है इस पर भी चिंतन किये जाने की गंभीर आवश्यकता है।
‘ठगा महूसस कर रहा है बच्चा’
अनंतिम लाभ प्राप्त करने वाला वो बच्चा आज भी ठगा सा महसूस कर रहा है। राष्ट्रीय प्रगति में सहयोग कर सकने वाला यह बड़ा वर्ग केवल अकुशल श्रमिक के रूप में ही नज़र आ रहा है। वर्तमान परिस्थितियों में बच्चों के भविष्य के साथ साथ राष्ट्र का भविष्य भी अंधकारमय ही नज़र आता है। यह ऐसा विषय है कि आधुनिक समाज में किसी स्तर पर भी शिक्षकों की पहचान को लेकर कोई ठोस , गंभीर और ईमानदारी संजीदगी भरा प्रयास कभी हुआ ही नही है। किसी भी सरकारी या प्राइवेट व्यवसाय की पहचान उसके ड्रेस कोड और लोगो चिह्न से है। चाहे डाक्टरी का व्यवसाय हो या रेलवे, वकालत, हाईडिल कोई भी व्यवसाय हो।
‘केवल ड्रेस कोड से पेशेवर रवैया नहीं आयेगा’

ड्रेस कोड का समर्थन करने वाले शिक्षकों को शिक्षक साथियों का भी विरोध झेलना पड़ रहा है।
परंतु यह तो दुर्भाग्य ही कहलायेगा कि बुद्धिजीवी वर्ग होने के बावजूद ऐसी कोई सर्वमान्य व्यवस्था नही बना पाया। इस दिशा में प्रयास अवश्य हुए होंगे परंतु दुनिया तो परिणाम को ही समझती है। आलोचनाएं तो कितनी भी और किसी भी स्तर तक हो सकती हैं परन्तु वर्तमान में जब एक राज्य का कैबिनट मंत्री अरविंद पांडेय जी शिक्षकों की पहचान से जुडे बड़े मुद्दे पर स्वयं गंभीर है तो बजाय समर्थन के विरोध करना समझ से परे है। ऐसा नही है कि मात्र एक निर्धारित ड्रेस कोड अपनाकर किसी में व्यवसायिक कुशलता आ जाती है उसके लिए तो कड़ी मेहनत कर स्वयं को सिद्ध करना ही पड़ता है। ड्रेस कोड से कार्य के प्रति समर्पण भाव अवश्य उत्पन्न होता है।
ड्रेस कोड के विरोध के पीछे की सोच शायद यह लग रही है कि इस मुद्दे की आड में वर्षों से लंबित मांगो का हल निकल जाये। विरोध के अनेक रास्ते हो सकते हैं, ऐसे ही समस्याओं के निदान के भी अनेक रास्ते हो सकते हैं। शिक्षकों की जायज मांगो को सरकार जितना जल्दी स्वीकार कर ले उतना ही अच्छा रहेगा। शिक्षकों को आगे बढकर ड्रेस कोड के साथ साथ सर्वमान्य लोगो का भी चयन कर लेना चाहिये। ड्रेस कोड के विरोध पर समाज के विभिन्न व्यक्तियों द्वारा सवाल उठाया जा रहा है कि आख़िर विरोध क्यों ? कुछ का मानना है कि ड्रेस कोड को लेकर शिक्षकों मे यह तनाव व्याप्त है कि वह कहीं पर भी तुरंत पहचान लिया जायेगा,अन्य कि कौन विध्यालय देर से पहुंच रहा और कौन विध्यालय समय में अपने निजी कार्यों को अंजाम दे रहा है।
संकीर्ण मानसिकता को छोड़ शिक्षक हित में निर्णय लें। ड्रेस कोड को लेकर जहां मंत्रीजी को संगठनों द्वारा धन्यवाद ज्ञापित करना चाहिए था वहां हो रहा है इसके विपरीत। अच्छी बात यह है कि काफ़ी संख्या में शिक्षक ड्रेस कोड के पक्ष में हैं । परंतु दबाव के चलते शिक्षक न तो कोई झंझट चाहते हैं और न ही कुछ बोलना। अंत में यह तो शिक्षकों को ही तय करना है कि उन्हें किस ओर जाना है क्योंकि समाज के इस प्रबुद्ध वर्ग पर कुछ भी थोपा नही जा सकता है।
एजुकेशन मिरर की रायः इस मुद्दे पर एजुकेशन मिरर की राय है कि ऐसे किसी भी फ़ैसले में निष्कर्ष तक पहुंचने के पहले संबंधित पक्ष की भी राय लेनी चाहिए। इसके लाभ-नुकसान पर विचार-विमर्श करने के बाद ही कुछ तय करना चाहिए। ताकि विभिन्न पक्षों को कोई आपत्ति न हो। प्रतीकों से ज्यादा अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान देना ज्यादा जरूरी है। सत्र की शुरूआत सकारात्मक बदलाव से होनी चाहिए, जिसपर सभी की आम सहमति हो।
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