चर्चाः रवांडा में सरकारी स्कूल बने लोगों की पहली पसंद

भारत में दिल्ली सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले बदलाव को एक उदाहरण के तौर पर देखा जा रहा है। यहां भी निजी स्कूलों के सामने सरकारी स्कूल एक बड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं।
रवांडा मध्य अफ्रीका में स्थिति एक देश हैं। यहां के सरकारी स्कूलों में होने वाली अच्छी पढ़ाई ने अभिभावकों को भरोसा जीत लिया है। उन्होंने अपने बच्चों का नाम निजी स्कूलों से कटाकर सरकारी स्कूलों में भेजना शुरू कर दिया है। इसके कारण बहुत से निजी स्कूल बंद होने की कगार पर पहुंच गये हैं। इस आशय की रिपोर्ट डेली नेशन में प्रकाशित हुई है। इस ख़बर को भारत में फ़ेसबुक और ह्वाट्सऐप पर शेयर किया जा रहा है। लोग सवाल भी पूछ रहे हैं कि अगर अगर रवांडा जैसे अफ्रीकी देश में ऐसा हो सकता है तो भारत में क्यों नहीं हो सकता है।
‘जो रवांडा में हो रहा है, भारत में भी हो सकता है’
मनोज कुमार जी लिखते हैं, ” रवांडा में अभिभावकों ने प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को भेजना बंद कर दिया है क्योंकि सरकारी स्कूलों में काफी बेहतर शिक्षा मिलने लगी है। प्राइवेट स्कूल वहाँ बंद हो रहे हैं। हाँ, ये सचमुच हो रहा है। भारत में भी हो सकता है। भारत का प्रति व्यक्ति जीडीपी दिसंबर 2016 में $ 6092.60 था और रवांडा का $1773.80 । अब अगर आपको लगता है कि भारत में यह नहीं हो सकता हैं तो कम से कम इसका कारण देश की माली हालत तो नहीं है। खोजिए दूसरे कौन से कारण हैं।” आप पिछले दस वर्षों से स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय हैं और शिक्षा के समाजशास्त्र, भाषा-शिक्षण, बाल-साहित्य जैसे विषयों के अध्ययन-अध्यापन से जुड़े हैं।
12 साल की बेसिक शिक्षा नीति की सफलता की कहानी
रवांडा के सरकारी स्कूलों के चर्चे का गार्डियन से लेकर बहुत से नामचीन पोर्टल और ऑनलाइन पत्रिकाओं में हो रहे हैं। गार्डियन की एक रिपोर्ट कहती हैं, “एक देश जो 1994 में दुनिया के सबसे बुरे नरसंहार के लिए कुख्यात है। यहां की मजबूत और पारदर्शी सरकार का नेतृत्व काबिल-ए-तारीफ है, जिसको दुनिया भ्रष्टाचार के खिलाफ ज़ीरो टालरेंस वाली निति के कारण पहचान रहा है। यहाँ की एक ग़ौर करने वाली कहानी है कि यहां के निजी स्कूल सरकारी संरक्षण के अभाव में बंद होने की कगार पर हैं। जिन संस्थाओं के निजी स्कूल बंद हो रहे हैं, अब वे सरकार से सरकारी फीस पर बच्चों को पढ़ाने के लिए सहयोग करने की माँग कर रहे हैं। लेकिन सरकार ने इस विचार को सिरे से नकार दिया है।”
रिपोर्ट के मुताबिक निजी स्कूलों के लिए परेशानी खड़ी होने की शुरूआत तब हुई जब रवांडा की सरकार ने 12 साल की बेसिक शिक्षा नीति ( the government’s twelve-year basic education policy) पर अमल करना शुरू किया, इस नीति ने सरकारी स्कूलों को लोगों की पहुंच में ला दिया और यह लोगों की पहली पसंद बन गये। इसका सुखद परिणाम हमारे सामने है। 30 से ज्यादा निजी स्कूल अनिश्चितकाल के लिए बंद हो गये हैं, जबकि अन्य निजी स्कूल जिनके बच्चों ने सरकारी स्कूल में प्रवेश ले लिया है अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यहां के सरकारी स्कूल गुणवत्तापूर्ण कौशलों का विकास बच्चों में कर रहे हैं।”
इस पोस्ट के बारे में अपनी राय साझा करने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया।
बहुत ही अच्छा लगा जानकर की शिक्षा के लिए किसी देश में निजी करण ख़तम होता नजर आ रहा है… मैं उम्मीद करती हूं कि जल्द ही ऐसा भारत में हो पाए।