नेशनल लाइब्रेरियन डेः भारत में लाइब्रेरी साइंस के जनक थे डॉ. एस आर रंगनाथन
डॉ. एस. आर. रंगनाथ को एक गणितज्ञ और भारत में भारतीय पुस्तकालय विज्ञान (लाइब्रेरी साइंस) के जनक के रूप में याद किया जाता है। डॉ. रंगनाथन का जन्म 12 अगस्त 1892 को बेंगलुरु में हुआ था। इनके जन्मदिन 12 अगस्त को पूरे भारत में राष्ट्रीय पुस्तकालयाध्यक्ष दिवस (National Librarian Day) के रूप में मनाया जाता है।
पुस्तकालय को संचालित करने वाले लाइब्रेरियन या लाइब्रेरी एजुकेटर की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। यह भूमिका मात्र किताबों के लेन-देन करने तक सीमित नहीं है। कई बार पुस्तकालय के संग्रह में मौजूद किताबों के बारे में सटीक जानकारी उपलब्ध कराने और विभिन्न शोध के लिए उपयोगी सामग्री उपलब्ध कराने में भी लाइब्रेरियन की एक बेहद अहम भूमिका होती है। डॉ. रंगनाथन का एक विशेष योगदान है कि आपने भारत में पुस्तकालय के अध्ययन को सैद्धान्तिक आधार प्रदान किया। इसी संदर्भ में अपने अनुभवों, विचारों व सिद्धांतों को एक किताब का स्वरूप प्रदान किया। डॉ. रंगनाथन की लिखी पुस्तक का नाम है, “न्यु एजुकेशन एंड स्कूल लाइब्रेरी’।
‘विद्यालयी पुस्तकालय’ की आवश्यकता
इस किताब में डॉ. रंगनाथन ने स्कूल लाइब्रेरी की जरूरत क्यों? ऐसे सवाल का जवाब अलग-अलग नजरिये से देने की कोशिश की है। इसमें सत्ता, परंपरा और अनुकरण के नजरिए से इस सवाल का जवाब देने की कोशिश की गई है। स्कूल की पाठ्यक्रम के नजरिये से भी स्कूल लाइब्रेरी को देखने की जरूरत को उनकी किताब में रेखांकित किया गया है। इसमें टेक्नोलॉजी ऑफ एजुकेशन, बदलाव के लिए शिक्षा, विचारों की दुनिया में शीघ्रता के साथ बदलाव के लिए शिक्षा, पाठ्यक्रम का बोझ बढ़ाने वाले कारकों, मौखिक संचार से किताबों की संस्कृति व समाजीकरण को भी समझने की कोशिश उनकी पुस्तक में दिखाई देती है।
उन्होंने स्कूल लाइब्रेरी की शुरुआत की संकल्पना को अपनी पुस्तक में शामिल करते हुए लिखा, “जब हम पुस्तकालय शब्द के बेहद शुरुआती इस्तेमाल को समझने के लिए इतिहास की तरफ नज़र दौड़ाते हैं तो हमारा सामना सबसे पहले एक ऐसे अर्थ से होता है जहां किताबें लिखी जाती हैं। लाइब्रेरी की यह अवधारणा स्कूलों में लागू होने के संदर्भ में कोई आधार प्रदान नहीं करती है। इसके बाद लाइब्रेरी को ऐसे स्थान के रूप में देखने की बात आती है जो किताबों के संग्रह से जुड़ा है। लाइब्रेरी की ऐसी अवधारणा जो केवल संग्रह को महत्व देती है, इसमें इसके उपयोगकर्ता यानि पाठक को अनिवार्य हिस्से के रूप में नहीं देखा जाता है।”
साल 1901 में प्रकाशित न्यु इंग्लिश डिक्शनरी के संस्करण में पहली बार उपयोगकर्ता का अप्रत्यक्ष रूप से जिक्र एक परिभाषा में मिलता है। इस परिभाषा के अनुसार, “लाइब्रेरी या पुस्तकालय एक सार्वजनिक संस्था है जिसके ऊपर किताबों के संग्रह की देखभाल की जिम्मेदारी होती है और इसका उपयोग करने वालों तक किताबों की पहुंच सुनिश्चित करना उनका प्रमुख उत्तरदायित्व होता है।“
डॉ. रंगनाथन का योगदान
भारत में डॉ. एस.आर. रंगनाथन को एक शिक्षक और पुस्तकालय विज्ञान के जनक के रूप में याद किया जाता है। मद्रास विश्वविद्यालय में आपने पहले लाइब्रेरियन के रूप में काम किया। लाइब्रेरियन की भूमिका को समझने और इस दिशा में आगे योगदान करने के विज़न के साथ उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में अध्ययन भी किया। वर्ष 1945 से 1947 तक उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में लाइब्रेरियन और पुस्तकालय विज्ञान के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। इसके बाद उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय समेत विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्यापन कार्य किया। वर्ष 1965 में आपको भारत सरकार द्वारा ‘नेशनल रिसर्च प्रोफेसर इन लाइब्रेरी’ की उपाधि से सम्मानित किया गया।
ब्रिटैनिका विश्वकोष पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, “पुस्तकालय विज्ञान में डॉ. रंगनाथन का प्रमुख तकनीकी योगदान ‘वर्गीकरण और अनुक्रमण सिद्धांत’ (classification and indexing theory) था। उनके कोलन वर्गीकरण (1933) ने एक ऐसी प्रणाली पेश की जो दुनिया भर के अनुसंधान पुस्तकालयों में व्यापक रूप से उपयोग की जाती है और जिसने डेवी के दशमलव वर्गीकरण जैसी पुरानी प्रणालियों के विकास को प्रभावित किया है। बाद में उन्होंने विषय-सूचकांक प्रविष्टियों को प्राप्त करने के लिए “चेन इंडेक्सिंग” की तकनीक तैयार की। उनके अन्य कार्यों में वर्गीकृत कैटलॉग कोड (1934), प्रोलेगोमेना टू लाइब्रेरी क्लासिफिकेशन (1937), लाइब्रेरी कैटलॉग का सिद्धांत (1938), लाइब्रेरी वर्गीकरण के तत्व (1945), वर्गीकरण और अंतर्राष्ट्रीय प्रलेखन (1948) और वर्गीकरण और संचार (1951) शामिल थे। उन्होंने एक राष्ट्रीय और कई राज्य स्तरीय पुस्तकालय प्रणाली विकसित करने की योजनाओं का मसौदा भी तैयार किया, कई पत्रिकाओं की स्थापना और संपादन में सक्रिय सहयोग प्रदान किया।”
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बहुत अच्छी जानकारी सांझा करने के लिए धन्यवाद ।
पढ़ने की ललक को विकसित करने के लिए लायब्रेरी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है । लायब्रेरी के जनक को प्रणाम ।