पढ़िए राजेश जोशी की कविता ‘चाँद की वर्तनी’
हर कविता की रचना प्रक्रिया अलग-अलग होती है। एक अच्छी कविता अवलोकन की गहराई और बारीकी से आकार लेती है, तो कभी-कभी कोई शब्द भी एक कविता का आधार बनता है। जैसे मेरी एक कविता का शीर्षक है ‘इत्यादि’।
वरिष्ठ कवि राजेश जोशी ने कहा, “जब आप किसी कठिन दौर से गुजरते हुए कोई अनुभव हासिल करते हैं तो वो आपके दिमाग़ में ज्यादा देर तक बना रहता है। इस प्रक्रिया में एक घटना पहले सामन्यीकृत अनुभव में बदलती है। लेकिन कविता मात्र अनुभव का तथ्यात्मक वर्णन भर नहीं है। यह आगे बढ़ती है और एक विचार या अवधारणा के रूप में आकार लेती है। कविता का उद्देश्य समाज में रौशनी की निमृति का माध्यम बनना भी है। पढ़िए उनकी कविता ‘चाँद की वर्तनी’।
‘चाँद की वर्तनी’
चाँद लिखने के लिए चा पर चन्द्र बिंदु लगाता हूँ
चाँद के ऊपर चाँद धरकर इस तरह
चाँद को दो बार लिखता हूँ
चाँद की एवज सिर्फ़ चन्द्र बिन्दु रख दूँ
तो काम नहीं चलता भाषा का
आधा शब्द में और आधा चित्र में
लिखना पड़ता है उसे हर बार
शब्द में लिखकर जिसे अमूर्त करता हूँ
चन्द्र बिंदु बनाकर उसी का चित्र बनाता हूँ
आसमान के सफे पर लिखा चाँद
प्रतिपदा से पूर्णिमा तक
हर दिन अपनी वर्तनी बदल लेता है
चन्द्र बिन्दु बनाकर पूरे पखवाड़े के यात्रा वृत्तांत का
सार संक्षेप बनाता हूँ
जहाँ लिखा होता है चाँद
उसे हमेशा दो बार पढ़ता हूँ
चाँद
चाँद!
उपरोक्त कविता राजेश जोशी ने दिसंबर महीने की 12 तारीख को वर्ष 2004 में लिखा। राजेश जोशी का जन्म 18 जुलाई 1946 को मध्य प्रदेश के नरसिंहगढ़ जिले में हुआ था। उनके प्रमुख कविता संग्रह हैं
- एक दिन बोलेंगे पेड़
- मिट्टी का चेहरा
- नेपथ्य में हँसी
- दो पंक्तियों के बीच
राजेश जोशी जी की यह सुंदर कविता साझा करने के लिए बहुत धन्यवाद। वास्तव में जब हम ऐसा साहित्य पढ़ते हैं जिसमे कई परते, कई अर्थ हो, तो हमारे सोंचने समझने की क्षमता बढ़ती है।
वास्तव में कविता और साहित्य की यही ताकत है कि हमे एक ही वस्तु को कई नजरियों से देख पाते हैं और एक साधारण सी बात में कितने महत्वपूर्ण और अप्रकट तथ्य छुपे होते हैं, उन्हें खोजते चलते हैं।