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कविताः ‘जितनी जरूरत है, उतने में संतोष करो’

कोहराम मचा था गांव में, हो रहा था अजब‌ बवाल,
शेखचिल्ली बेचारा समझ ना पाया हाल।
घुसा बीच में जानने अपने मन के सवाल,
अरे! फिर से पिट गया, हो गया बुरा हाल।

बावला बेचारा समझ ना पाया,
काहे हुआ उसका ऐसा सफाया।
चलता गया, बड़बड़ाते हुए राह पर चलता गया,
मौक़े पर, असमंजस का जवाब देने मिले सरपंच भैया।

पूछ पड़ा नासमझ, क्या गलती थी मेरी,
मंज़र को समझते हुए, सरपंच ने सांस ली गहरी।
हातिमताई बने सरपंच फट से बोले,
अरे बेटा तुम तो हो जरूरत से ज्यादा भोले।

तुम्हारे खांसने के कारण, गया तुम्हें धोया,
कोरोना का मजाक बना, कोरोना फिर से रोया।
अंधेर नगरी, राजा सयाना, चौपट भई जनता,
निकल पड़ा सरपंच, करने वो काम, जो काम उससे बनता।

एक से एक मिले लोग, करते अपनी चिंता,
लाला का मुंह हुआ लाल, ठप्प हुआ धंधा।
कहने लगा नुकसान ना सह पाऊंगा,
कोरोना से नहीं तो हार्ट अटैक से मर जाऊंगा।

सरपंच ने समझाया, मुनाफाखोर ना बनो,
जितनी जरूरत है, उतने में संतोष करो।
जान रही तो, और कमाओगे,
कम से कम कोरोना के कारण घरवालों के साथ समय तो बिताओगे।

बख़ूबी निभाया सरपंच ने अपना कर्तव्य,
मास्क, सैनिटाइजर भी बांटे, किया सबको महामारी से अवगत।
काम उसका न्यूज़ चैनल ने भी बढाया,
सही गलत में फ़र्क करना सीखो, सरपंच ने बतलाया।

कुछ उपाय भी सरपंच ने बताए,
पर्याप्त दूरी बनाए रखना अपनाए।
समय समय पर हाथ भी धोए,
और अपने बच्चो को भी सिखलाए।

बच्चों से भी कुछ नया करने की सिफारिश की,
टेक्नोलॉजी का सही इस्तेमाल करे, यह बात कही।
छुट्टी से ऊबे बच्चों ने दिमाग के घोड़े दौड़ाए,
घर में बैठे बैठे मज़ा ए समझ बढ़ाने के उपाए अपनाए।

अंधेरनगरी में तो कुछ जागरूकता आई,
लोगो को समझाने में सफल हुए सरपंच भाई।
आसान नहीं था यह इतना, कहे सरपंच,
पर आखिर में शेखचिल्ली को भी बात समझ आयी।

प्रकृति से खिलवाड़ का नतीजा यह कोरोना,
सोच में विकास का नया तरीका यह कोरोना।
सरपंच को समझ आए, प्रकृति के नियम,
मुस्कुराया देख के नासमझ इंसान का बरताव ये बेरहम।

# कृति अटवाल
नानकमत्ता पब्लिक स्कूल

(कृति उत्तराखंड के नानकमत्ता पब्लिक स्कूल मे अध्ययनरत हैं। अपनी स्कूल की दीवार पत्रिका के सम्पादक मंडल से भी जुड़ी हैं। अपने विद्यालय के अन्य विद्यार्थियों के साथ मिलकर एक मासिक अखबार भी निकालती हैं। जश्न-ए-बचपन की कोशिश है बच्चों की सृजनात्मकता को अभिव्यक्ति होने का अवसर मिले।)

1 Comment on कविताः ‘जितनी जरूरत है, उतने में संतोष करो’

  1. Gajendra Raut // April 13, 2020 at 8:31 am //

    बहुत अच्छा लिखा है. उभरते हुये लेखक को शुभकामना.

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