कविताः कवि – भवानी प्रसाद मिश्र
कवि और लेखक भवानी प्रसाद मिश्र ने नन्दकिशोर आचार्य से होने वाले एक संवाद में कहा था, “कविता किसी विचारधारा की अभिव्यक्ति का उपकरण नहीं है- बल्कि यह अभिव्यक्ति का माध्यम तभी तक है जबतक हम उसके माध्यम से किसी पूर्व निर्धारित सत्य को कहना चाहते हैं। एक कवि के रूप में मेरे पास कुछ भी पूर्वनिर्धारित नहीं है। कविता मेरे तईं अभिव्यक्ति नहीं, अनुभव का माध्यम है।”
इस बात का जिक्र भवानी प्रसाद मिश्र की कविताओं के संग्रह ‘मन एक मैली कमीज़ है’ से लिया गया है। इसका प्रकाशन बीकानेर के वाग्देवी प्रकाशन ने किया है। इस संग्रह से पढ़िए एक कविता ‘कवि’।
कलम अपनी साध
और मन की बात बिल्कुल ठीक कह एकाध।
यह कि तेरी-भर न हो तो कह
और बहते बने सादे ढंग से तो बह।
जिस तरह हम बोलते हैं, उस तरह तू लिख,
और इसके बाद भी मुझसे बड़ा तू दिख।
चीज़ ऐसी दे कि जिसका स्वाद सिर चढ़ जाए
बीज ऐसा बो कि जिसकी बेल बन बढ़ जाए।
फल लगें ऐसे कि सुख-रस, सार और समर्थ
प्राण संचारी कि शोभा भर न जिनका अर्थ।
टेढ़ मत पैदा करे गति तीर की अपना,
पाप को कर लक्ष्य कर दे झूठ को सपना।
विंध्य, रेवा, फूल, फल, बरसात या गरमी
प्यार प्रिय का, कष्ट कारा, क्रोध या नरमी,
देश या कि विदेश, मेरा हो कि तेरा हो
हो विशद विस्तार, चाहे एक घेरा हो
तू जिसे छू दे दिशा कल्याण हो उसकी,
तू जिसे गा दे सदा वरदान हो उसकी।
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धन्यवाद सर ‘मिश्र जी’ की कविता से रूबरू करवाने के लिए ।
बहुत ही प्रेरणा दायक कविता ..
कवि अपनी अभिव्यक्ति अपनी कविताओं में रचनाओं में प्रखर रूप से करते है । अनुभवों को शब्दों की मालाओं में गूँथ कर अपनी सशक्त अभिव्यक्ति देना और मुर्दों में भी जान फूंक देना कवि कर्म है ।