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आरव की डायरीः शिमला का सफ़र

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अप्रैल 2018 में लिखे अपने डायरी के पन्नों को जून 2020 में आरव ने दोबारा पढ़ा और उसे टाइप करके एजुकेशन मिरर के लिए भेजा है। यह लेख इस मायने में भी ख़ास है कि आज 25 जुलाई 2020 को आरव 10 वर्ष पूरा कर रहे हैं। अब वे पाँचवीं कक्षा के छात्र हैं और यह उनकी आठवीं डायरी है। पढ़िए आरव की लिखी यह डायरी और एजुकेशन मिरर के सबसे नन्हे लेखक को जन्मदिन की शुभकामनाएं भी दीजिए। आरव की रचनात्मकता का सिलसिला सतत सघन होता चले और उनको खूब यश और उपलब्धि इस क्षेत्र में मिले एजुकेशन मिरर की टीम की तरफ से ऐसी शुभकामनाएं प्रेषित हैं।

मैं वृहस्पतिवार को शिमला जाने वाला था, जब वह दिन आ गया तो मैंने स्कुल से कुछ दिनों की छुट्टी ले ली। मुझे पता था की हम लोग शाम को जाने वाले हैं। दोपहर हुई, तब बारह बजे थे और हम घर से अनामिका दीदी के घर जा रहे थे। हम अनामिका दीदी के घर गए और वहाँ पर थोड़ी देर रुके और जल्दी से तैयार होकर ज्वालाहेडी मार्केट के ओर निकल गए। ज्वालाहेडी मार्केट अनामिका दीदी के घर के पास ही था। हमने ज्वालाहेडी मार्केट से बहुत कुछ सामान ख़रीदा। उसके बाद मैंने चुपाचुप्स के खट्टे बाइटस खाए, उसमें मुझे रबरबैंड मिला, वह बहुत मोटा था मैंने सोचा की वह एक नहीं बल्कि दो होंगे और मेरा शक सही भी रहा क्योकि जब मैंने उसके बीच में एक लाइन देखी तब मैंने उसे अलग कर दिया। फिर हम अनामिका दीदी के घर वापस गए और वहाँ से बैग लेके मैं अनामिका दीदी और मेरी मम्मी रिक्शा में बैठकर मेरे घर आ गए। घर पर हमने थोडा खाना खाया। उसी वक्त मै रबरबैंड को धनुष बनाकर पेन के साथ खेल रहा था। फिर ओला कैब आ गई।

ट्रेन का सफ़र, तेज़ भूख और खाने का इंतज़ार

हम सब कैब से नई दिल्ली स्टेशन पर पहुंचे। हम लोग स्टेशन पर तब तक रुके जब तक मेरे पापा और वैभव काका नहीं आए क्योंकि वो दोनों ऑफिस से सीधे स्टेशन पर आनेवाले थे। बाद में वैभव काका स्टेशन पर आए और हम प्लेटफार्म १ पर गए। बीच में हमें एक इंसान दिखा जिसके बाजु में स्कैनिंग मशीन थी, लगता है वह इंसान सेक्योरिटी गार्ड होगा। पता है मशीन कैसी चलती है जब मैंने मशीन में बैग डाली तब वहां के गार्ड को स्कैनिंग मशीन के स्क्रीन पर उस बैग के अंदर की सारी चीजें दिखती है। वहाँ के गार्ड जाँच करते है की किसी के पास बन्दुक या चाकू तो नहीं?

हर स्टेशन और बस स्टैंड पर बहुत ज्यादा गंदगी होती है, इसलिये हमने प्लेटफार्म १ पर बहुत से पेपर बिछाये और उसपर सब बैठ गए। एयर पोर्ट और मेट्रो स्टेशन पर तो सब कुछ बिलकुल साफ सुथरा होता है अगर कोई वहा पर थूंकता भी है तो पुलिस वाले उन्हें पकड़ लेते है। मुझे उस पेपर पर बैठने के लिए जगह ही नहीं मिली इसीलिए मैं बैग पर ही बैठ गया।

उसके बाद मैं और मेरी मम्मी कुछ चिप्स, क्रैक्स, कुरकुरे खरीदने गए, हम स्टेशन के लेफ्ट साइड पे थे इसीलिए हमने स्टेशन के लेफ्ट साइड पे ही देखा की वहा कुरकुरे है या नहीं, पता लगा पर वहा पर कुछ नहीं था, लेकिन राइट साइड पर सब कुछ था जो हमें चाहिए। राइट साइड में मैंने मम्मी को डेरी मिल्क चॉकलेट मांगी। अब मेरे पापा भी आ गए थे। फिर मेरी मम्मी ने पापा को जो भी चॉकलेट बची थी वह चॉकलेट दे दी।

थोड़ी देर बाद प्लेटफार्म पर “नई दिल्ली – चंडीगढ़ शताब्दी ट्रेन” आई। पहले मुझे वह ट्रेन साधारण ट्रेन जैसी ही लगी लेकिन अंदर जाके पता चला की वह चेअर कार है। उस ट्रेन की खिड़कियां दो सीटों के बराबर थी मतलब आगे आधी खिड़की और पीछे आधी खिड़की। पता है हमारा, वैभव काका और अनामिका दीदी का सीट का नंबर क्या है ? हम सबका नंबर २५, २६, २७, २८, २९ था, यह बड़ी इत्तेफ़ाक की बात है। ट्रेन शुरू हो गई पर धीरे धीरे चल रही थी। हमारे डिब्बे में कोच अटेंडेंट बिसलेरी लेके आया। मुझे बहुत भूख लग रही थी इसलिए मुझे खाने का बहुत इंतजार था। इतना इंतजार कि मैं उठ-उठ कर उसकी राह देख रहा था।

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आखिरकार खाना आ ही गया। पहले एक प्लेट आयी जिसमें एक मसाला था, काली मिर्च और एक चीज थी जो आपको पहचाननी पड़ेगी वह मसाले के जैसी ही है और खट्टी है उसका नाम न से शुरू होता है और क से ख़तम होता है। यह बहुत बड़ी हिंट है यह सुनकर तो कोई भी पहचान लेगा की वह चीज क्या है। उन दोनों के अलावा प्लेट में कुछ दूसरा भी आया था एक छोटा भीम का बटर और दो शिवा वाले ब्रेडस्टिक्स। थोड़ी देर के बाद सूप भी आ गया मुझे यह तो पता है की उस सुप को पीना है पर यह नहीं पता की उस सुप को कैसे पीना है। यह बात मेरे पापा और वैभव काका को पता थी। फिर मेरे पापा ने बताया की इस सूप में छोटा भीम वाला बटर डाल दो उसके बाद काली मिर्च का पूरा पैकेट डाल दो और शिवा की ब्रेडस्टिक सूप में घुमाओ और गीला करके उसे भी खा लो। अगर जरा सा खट्टा स्वाद चाहिए तो आधा पैकेट चीज़ डाल दो। फिर मैंने पूरा खाना सफाचट कर दिया।

हमारा अगला पड़ाव बना चंडीगढ़

उसके बाद मैं बाहर देखने लगा, देखते ही देखते रात के करीब करीब ११ बजे हम चंडीगड़ स्टेशन पहुंच गए। बाहर आकर मेरे पापा ने ओला कैब बुक की। स्टेशन के पास मैंने बहुत सारे स्टैचू देखे जो एक कैप्टन और कुछ सोल्जर के थे । थोड़ी देर के बाद वहा पर कैब भी आ गयी हम कैब में बैठ भी गए। फिर हम चण्डीगढ मिलिट्री कैंटोनमेंट के शक्ति द्वार पर पहुँच गए। गेट के बाहर हमने कार चेंज कर ली, पता है हमने कार क्यों चेंज कर ली क्योंकि कोई आतंकवादी गाड़ी को बॉम्ब लगाके भी आ सकते है। हम सब लोग आर्मी की कार में बैठे गए। यह व्यवस्था मेजर अक्षय काका ने की थी। अंदर पहुंचने में बहुत देर लगी क्योंकि गेस्ट हाउस कैंटोनमेंट के आखिर में था। वहा पर हमें बहुत ही शानदार दो रूम्स मिले। दो रूम्स के बिच में एक रास्ता था, जिसके आखिर में बकरे का निशान था जिसपर लिखा था “Perfom or Perish”.

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पता है आपको सुबह हम किस गाड़ी से शिमला जाने वाले है? जिस कार से हम मिलिट्री कैंटोनमेंट आए थे उसी कार से हम शिमला भी जाने वाले है। उस गाड़ी के ड्राइवर का नाम मनदीप जी था वह सिख थे और उनकी बड़ी बड़ी मूंछे भी थी और वह सिख लोगों की टोपी पहनते थे और उनकी टोपी पर सिख लोगों का चिन्ह भी था। बाद में हम सुकून से सो गए, हमारी आँख लगी ही थी की हमें फोन आया, पता है वह किसका फ़ोन था? वह फ़ोन मनदीप जी का था। उन्होंने कहा की मै कल नहीं आ पाउँगा क्योंकि मुझे कल किसी और को छोड़ना है। अब हमें बाहर आना पड़ेगा क्योंकि दूसरे ड्राइवर को जो बुलाना है। फिर हमने दूसरी ओला कैब सुबह ५ बजे के लिए बुक की। उस ड्राइवर का नाम अंग्रेज सींग था, मुझे लगता है की वह अंग्रेज हैं पर वह पंजाबी थे। फिर मैं चैन से सो गया।

पापा और मै सुबह ५ बजे उठे तब तक गाड़ी भी नहीं आयी थी इसीलिए हम उस जगह पर गए जहाँ पर सोल्जर्स ट्रेनिंग करते है। मैंने वहा पे मंकी क्लाइंबिंग, रस्सी पे चढ़ाई और बहुत ऊँची ऊँची जम्पिंग की। वहाँ पर मैंने दो दंडियों पर चलकर भी दिखाया। तब तक मेरी मम्मी भी उठ गई, और वैभव काका, अनामिका दीदी भी उठ गए थे। फिर कार भी आ गई, सभी रुम से बाहर आ चुके थे। शिमला ही तो जाना था, फिर हम गाड़ी में बैठ गए और शिमला की ओर निकल पड़े।

रास्ते में ही एक टोलनाका आया, वहाँ पर हम रुक गए क्योंकि हमें टोल चार्ज देना था फिर हमने टोल चार्ज दिया और हमने टोल पार कर लिया। उसी वक्त मेरी मम्मी और दीदी को वाशरूम जाना था, गाड़ी के ड्राइवर ने कहा की यहाँ पास में ही एक वाशरूम है वहाँ पर आप जा सकते हो। उसके बाद हम टोल के आगे चले गए। फिर मेरी मम्मी और अनामिका दीदी भी आ गयी। और हमारा सफर जारी रहा। फिर थोड़ी थोड़ी धूप आने लगी थी, करीब करीब सात बजे होंगे । रास्ते में ही एक छोटा सा होटल आया , हम वह पर थोड़ी देर रुके। वहाँ पर सबने मारी गोल्ड के बिस्किट खाये तब मुझे उल्टी आने जैसे लगा पर मैंने हिम्मत नहीं हारी , मैंने पुरे रास्ते में उल्टी नहीं की और हम शिमला में प्रवेश कर गए।

शिमला के पहाड़ों को देखकर हुई हैरानी

जहाँ पर हम ठहरने वाले थे, वह घर बहुत दूर था पर मेरे पापा बोलते रहे कि घर सिर्फ दो मीटर की ही दुरी पर है इसलिए मै खिड़की पर बार बार देख रहा था और बोल रहा था की वो हमारा घर है, ये हमारा घर है, पर हमारा घर आया ही नहीं। मुझे लगता है की मेरे पापा झूठ बोल रहे है। मैंने खिड़की से बाहर देखा कि वहाँ एक कैक्टस है और मैंने सोचा की यह तो ठंडी जगह है और कैक्टस तो गर्म जगह पे उगते है, फिर यहाँ पे कैक्टस कैसे आया ? तभी हम ने एक पहाड़ी चढ़ी और हमारा घर आ गया।

मुझे पता नहीं था की शिमला के पहाड़ इतने बड़े होंगे और वहा पर बहुत सारे बन्दर थे। हम घर के अंदर गए वह घर बहुत बड़ा था। मैंने ऐसा घर पहली बार देखा की जहाँ पर बास्केट बॉल का कोर्ट बिलकुल घर के सामने ही हो। वहां पर दो बास्केट बॉल थे पर वो भी फुस, पर खेलने लायक थे , मैं उसके साथ खेलने लगा , अब मै थक चूका था इसलिए मैं थोड़ी देर बाद घर के अंदर आ गया। मैं घर की चीजे देख ही रहा था कि तभी मुझे एक खिलौना दिखा जिसमे साबुन का पानी डालकर फूंक मारने से बुलबुले निकलते है तब मैं उसी से खेलने लगा और घर के अंदर बुलबुले फ़ैलाने लगा। खेलते-खेलते मै बाहर गया और तभी मेरे हाथ से खिलौना गिर गया। फिर मैंने उसे मेरे जूते से फैला दिया ताकि किसी को इसकी भनक ना लगे। फिर मेरा मन उस खिलोने से भर गया और मैंने बास्केट बॉल खेलना शुरू कर दिया।

पहली बार ड्रिबल करने में, बास्केट में डालने के लिए बहुत परेशानी हो रही थी क्योंकि मैं बास्केट बॉल बहुत दिनों के बाद खेल रहा था, लेकिन थोड़ी देर बाद मुझे कोई परेशानी नहीं आई। आपको पता है हम किसके घर गए थे, हम मेजर अक्षय काका के घर गए थे, उनके प्रोमोशन के कारण वे अभी लेप्टनेन्ट कर्नल हैं। हम सबके आने से पहले सोहेल खान सर और सबा मैडम वहाँ आ गए थे और मुझे इसकी भनक भी नहीं लगी। सोहेल खान सर ने मुझे बास्केट बॉल खेलते हुए टोका, उन्होंने बोला की आरव मेरे साथ बाहर चलोगे? तो मैंने हाँ बोला। उसके बाद मैं नहा धोकर तैयार हो गया और बाहर निकल गया। हम कहा जा रहे है ये तो मुझे नहीं पता था।

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हम गेट से थोड़ा दूर आ गए थे और रास्ता भी थोड़ा बहुत टेड़ा था तो सोहेल खान सर ने मुझे बताया की वहाँ जो तिरंगा झंडा दिख रहा है “ना ” हम वहाँ पर जा रहे है पर मुझे वह झंडा नहीं दिख रहा था पर थोड़ा आगे जाने के बाद मुझे वह तिरंगा साफ साफ दिखने लगा। पता है टेढ़े मेढ़े रास्ते पर चलने में कितना मजा आता है, आप कभी पहाड़ो वाली जगह पर गए हो ? फिर वहां पर एक और पहाड़ वाला रास्ता आ गया वह रास्ता इतना टेढ़ा मेढ़ा था की मैं बता भी नहीं सकता।

इस खतरनाक टेढ़े-मेढ़े रास्ते को पार करने के बाद सीधा रास्ता आया। फिर वापिस एक टेढ़ा-मेढ़ा रास्ता आ गया उस रास्ते से चलना बहुत मुश्किल था। उसके बाद हमने वो भी रास्ता पार कर लिया। तभी वहाँ दुकाने नजर आने लगी। फिर मैंने बोला की मुझे एक टका टक चाहिए तो उन्होंने मुझे दे दिए। मैंने टका टक खाना शुरू कर दिया। मैंने वहा पर रबर बैंड भी लाया था क्यों की मुझे उसके साथ खेलने के लिए एक अच्छी सी लकड़ी चाहिए थी सीधी और बिना काटे वाली। तभी मुझे एक सीधी लकड़ी मिली थी उसका नोक थोड़ा नुकीला था और उसके बिच में लुल्लु लुल्लु काँटे थे वह मेरे लिए बिल्कुल परफेक्ट लकड़ी थी।

सोहेल खान सर को पेपर पढ़ने के लिए चाहिए था इसलिए हमने एक न्यूज़ पेपर लिया। तब मै रबर बैंड के साथ खेल रहा था और मैंने निशाना सेट भी कर लिया था। बस अभी निशाना देखना था मै घूम रहा था ,निशाना देख रहा था, घूम रहा था ,निशाना देख रहा था, देखते-देखते सोहेल खान सर बिच में आ गए तभी मेरे हात से लकड़ी निकल गयी और उनको लग गयी। अच्छा हुआ उन्हें कुछ भी नहीं हुआ नहीं तो मुझे बहुत ज्यादा डांटते। फिर हम लोग घर की तरफ निकले। रास्ते में मैंने क्रैक्स खरीदने को कहा। जब मुझे लगा की वह वही क्रैक्स होंगे जो मै दिल्ली में खाता था पर मैंने देखा की वह क्रैक्स अलग थे।

मुझे वह क्रैक्स वहीं पर खाने थे लेकिन सर ने बोला घर जाके खाना। हम घर पहुंच गए। मैंने पैकेट खोल लिया और क्रैक्स खाने लगा। उस पैकेट में मुझे गुब्बारा मिला। फिर मैंने सबको थोड़ा थोड़ा करके क्रैक्स दे दिए, फिर मैं गुब्बारे के साथ खेलने लगा। फिर रात हो गई और मै सुशील काका के ब्लैंकेट में सोया लेकिन मुझे नींद नहीं आई और मैं मम्मी के पास सो गया।

सुबह होते ही मैं गरम-गरम पानी से नहाया और तैयार हो गया क्योकि हमें जाकूजी टेम्पल जो जाना था। सब तैयार हो के उस झंडे के पास गए और उधर से जाकूजी की ओर निकल गए। वहाँ पर रास्ता बहुत ऊपर था इसलिए हम गाड़ी में बैठ कर गए। हमने वहा पर हनुमान जी की बहुत बड़ी मूर्ति देखी और रोपवे में बैठकर नीचे आ गए। नीचे आते ही मैं और मेरी मम्मी वहाँ पे जो घोड़े होते है उसपर बैठे, तब बहुत शाम हो चुकी थी इसलिए हम घर वापस आ गए।

रात को सुशील काका और अक्षय काका ने लज़ीज खाना बनाया, जिसे सबने जल्दी ही सफाचट कर दिया। हम थके हुए थे इसलिए हम जल्दी ही सो गए।

‘मुझे तो धनुष बाण चाहिए’

दूसरे दिन मेरा रबरबैंड खो गया। फिर हम गेटी थिएटर में गए उधर बहुत पुरानी-पुरानी चीज़ें थीं और बहुत पुराने फोटो थे। उसमे अंग्रेज लोग नाटक और मनोरंजन के लिए आते थे। फिर हम सब उसमें से बाहर निकले और मार्केट में बहुत देर तक घूमते रहे और तभी मुझे याद आया की मेरा रबर बैंड खो गया था तो मै इसी जिद पे अड़ा रहा की मुझे धनुष बाण चाहिए तभी मुझे धनुष बाण की एक दुकान दिखी फिर हमने धनुष बाण ख़रीदा।

हमें बहुत देर हो गई थी और हम घर चले आए अब शिमला में देखने के लिए कुछ नहीं था इसीलिए अगली सुबह हमने सब कुछ पैक करके टैक्सी बुला के कालका स्टेशन की तरफ निकल पड़े। बीच रास्ते में मुझे उल्टी आई, और मैंने बोला जल्दी से दरवाजा खोलो, मुझे उल्टी करनी है, दरवाजा खोलने के बाद मैंने बाहर आकर उल्टी कर दी। फिर हम कालका स्टेशन पर पहुंच गए मैंने वहाँ पर पहली बार टॉय ट्रेन देखी।

हमारी ट्रेन आते ही हम उसमें बैठकर दिल्ली पहुंच गए। मैने घर आते ही धनुष बाण से खेलना शुरू कर दिया मुझे ये सफर बहुत अच्छा लगा। उस दिन से एक महीने तक मैं इस सफर के बारे में लिखता रहा जो आप आज पढ़ रहे हैं।

(डायरी के यह पन्ने इस मायने में बेहद ख़ास हैं क्योंकि इसे अमरावती, महाराष्ट्र के सरस्वती स्कूल में पाँचवीं कक्षा में पढ़ने वाले आरव गजेंद्र राउत ने लिखा है। वे एजुकेशन मिरर के सबसे नन्हे लेखक हैं। उनकी दो डायरी जब प्रकाशित हुई थीं, तब वे दूसरी कक्षा में ही पढ़ रहे थे। आरव हिन्दी के साथ-साथ मराठी भाषा में भी लिखते हैं। आरव को किताबें पढ़ने और नये-नये विचारों पर काम करने में काफी आनंद आता है।)

(शिक्षा से संबंधित लेख, विश्लेषण और समसामयिक चर्चा के लिए आप एजुकेशन मिरर को फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो कर सकते हैं। एजुकेशन मिरर के लिए अपनी स्टोरी/लेख भेजें Whatsapp: 9076578600 पर, Email: educationmirrors@gmail.com पर।)

20 Comments on आरव की डायरीः शिमला का सफ़र

  1. Gajendra Raut // July 28, 2020 at 9:30 pm //

    Good to read your diary. Keep it up.

  2. Anil Raut // July 28, 2020 at 8:55 pm //

    Fantastic read.

  3. Dipeeka prakashrao tupat // July 27, 2020 at 6:31 pm //

    At First ur memory is very strong…. U wrote such a big diary… Nice writing n good thoughts.. keep it up…aarav

  4. Santosh Satinge // July 26, 2020 at 9:49 am //

    You did an excellent work of explaining your ideas on this story clearly and accurately and adorable. I look forward to your next story. Keep it up Aarav 👍👍

  5. Anil Raut // July 25, 2020 at 8:20 pm //

    Happy birthday Aarav 🎂🎂🎂khupch Chan lihila keep it up god bless you

  6. Chhaya Mhatre // July 25, 2020 at 7:55 pm //

    वाढदिवसाच्या हार्दिक शुभेच्छा आरव💐💐🎂🎂
    खूप सुंदर लेखन करतोस. तुझ्या लेखनातून प्रत्येक गोष्ट, घटनेचे बारीक निरीक्षण जाणवतं. या वयात तुला लेखनासाठी योग्य दिशा मिळाली आहे.
    Best wishes.

  7. Rajesh Karale // July 25, 2020 at 6:37 pm //

    Good to read your experience

  8. shruti Marotrao Tupat // July 25, 2020 at 6:25 pm //

    Happy birthday Aarav🎂🎂 khup chan lihili aarav dairy…

  9. Sarvprathm tula vadhdivsachy aabhalbhr shubhechy Aarav…! As vatatay mi pn Aarav sobt Shimla firun ali…khup chan lihal Aarav.. janu ekhady anubhvi vykti sarkh. keep it up little boy…!

  10. Good to read your diary Aarav. Keep it up

  11. Anonymous // July 25, 2020 at 12:36 pm //

    Happy Birthday beta! God bless you a lot! Keep on writing like this 👍

  12. Vandana sao // July 25, 2020 at 12:19 pm //

    Wish you many many happy returns of the day happy birthday my little sweet bro 😘😍aani tuza chandigd ani shimla cha anubhv chan lihila asach lihit ja best of luck and god bless you pillu

  13. Jogaram s Suthar // July 25, 2020 at 11:57 am //

    आरव को जन्म दिन की शुभकमनाएं, आप लोगों के मार्ग दर्शक बनो

  14. संदिप कुरळकर // July 25, 2020 at 11:39 am //

    आरव सर्व प्रथम वाढदिवसाच्या हार्दिक हार्दिक शुभेच्छा.तु लिहित असलेली डायरी तुला खुप उंचावर घेवून जाईल.त्या करीता संदिपकाका कडून अनेक शुभाषिश आणि शुभेच्छा.

  15. Archana Patil // July 25, 2020 at 11:32 am //

    आराव तुला वाढदिवसाच्या खूप खूप शुभेच्छा💐💐🎂 . तुझे शिमला ट्रिप अनुभव वाचता- वाचता मी सुद्धा तुझ्या सोबत फिरण्याचा अनुभव मिळाला, खूप छान लिहिलं आहेस. तुझ्या पुढील वाटचालीसाठी खूप साऱ्या शुभेच्छा.

  16. Anonymous // July 25, 2020 at 11:25 am //

    wishing you happy birthday Aarav
    आणि नागपंचमीच्या हार्दिक शुभेच्छा
    मी नेहमीच तुझे सर्व प्रकाशित झालेलं साहित्य वाचत असतो. खूपच छान आहे. असेच लिखाण नेहमी सुरु ठेव
    Satish Pawar (Shirala)

  17. Very well written Aarav. Keep writing about your exciting experiences. – Vaibhav kaka

  18. Amol Rode // July 25, 2020 at 11:05 am //

    Aarav sabase pahale to aapko janmdinki dhero shubhkamnaye…apki kalam se humne Shimla dekh liya aur hume behad khushi huii…Aap aisehi pragati karo yehi ishwar se prarthna 🙏🏼🙏🏼

  19. रमेश वासुदेवराव साव // July 25, 2020 at 11:03 am //

    वाढदिवसाच्या मंगलमय शुभेच्छा छान लिहीले असेच प्रयत्न चालू असू दे भविष्यात येणाऱ्या वाटचाली करिता मनापासून तयारी असू दे अभिनंदन (साव परिवार)

  20. Durga thakre // July 25, 2020 at 10:43 am //

    जन्मदिन की बहुत -बहुत शुभकामनाएं और बधाई आरव । 💐💐💐💐
    आप ऐसे ही उन्नति पाए ,सफलता आपके कदम चूमे ।

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