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समझकर पढ़ने और मौखिक अभिव्यक्ति कौशल को बेहतर बनाता ‘पठन अभियान’

हालिया राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने विद्यालयी पाठ्यचर्या के औपचारिक विषयों में बच्चों के कमजोर प्रदर्शन का गहन संज्ञान लेते हुए बच्चों के पठन कौशल में सुधार की जरूरत को रेखांकित किया है। इस संदर्भ में निपुण भारत मिशन के तहत पठन अभियान की शुरुआत एक समसामयिक कदम है। भारत सरकार ने सभी राज्यों से इस दिशा में काम करने की अपेक्षा भी की है। इस अभियान के अंतर्गत पढ़ने का आशय समझकर पढ़ना है।

अधिक स्पष्ट शब्दों में बच्चा जो कुछ भी पढ़ रहा है, उससे अपने लिए अर्थ निर्मित कर पा रहा है और जरूरत पढ़ने पर अपने शब्दों में मौखिक या लिखित रूप में अभिव्यक्त भी कर पा रहा है। इस तरह से लिखने का कौशल इसमें समाहित नज़र आता है। इयका मंतव्य यह है कि यदि बच्चा इन  कौशलों को प्राप्त कर लेता है तो बाद में विद्यालयी पाठ्यचर्या के औपचारिक विषयों को पढ़ने/समझने, विषयों गहन अवधारणाओं को समझने और अभिव्यक्त करने में सुगमता रहेगी। इससे यह बात लगभग साफ होती नज़र आती है कि औपचारिक विषयों को पढ़ने-समझने का मूल पठन और लेखन कौशल में निहित है।

अपनी बात को आगे बढ़ाने से पहले एक महत्वपूर्ण अवलोकन आप से साझा करना चाहता हूँ। पिछले दिनों विद्यालय में बच्चों को शिक्षा विभाग द्वारा निःशुल्क पाठ्यपुस्तकें उपलब्द्ध कराई गईं। विद्यालय में कक्षा-अध्यापकों/शिक्षकों द्वारा इन्हीं पाठ्यपुस्तकों का वितरण किया जा रहा था। इस दौरान मुझे इसका अवलोकन करने का अवसर मिला।

मुझे स्पष्ट नज़र आ रहा था कि पुस्तकों को प्राप्त करने के बाद बच्चों कि आँखों में एक अलग चमक नज़र आ रही थी, प्राप्त पुस्तक को बच्चे बहुत प्रेम से उलट-पुलट रहे थे, अपना नाम लिख रहे थे। अगले दिनों में इन पुस्तकों में करीने से जिल्द लगी थी, नेम स्लिप में अपने नाम, कक्षा, अनुक्रमांक और पुस्तक का नाम लिखा नज़र आने लगा।

समझ के साथ पढ़ने की जरूरत क्यों?

यह उपक्रम बच्चों का पुस्तक के प्रति प्रेम की परिणति मानी जानी चाहिए परंतु साल के बीतते-बीतते ऐसा क्या घटित होता है कि इन्हीं पुस्तकों से बच्चे एक तरह से नफरत करने लगते हैं। उनकी यह नफरत बाद के दिनों में पुस्तक को बस्ते से निकालने, इसके पुस्तकों के पृष्ठों को पलटने के अंदाज में महसूस की जा सकती है। मेरा अनुमान है कि पाठ्य पुस्तक की विषयवस्तु को पढ़ने के बाद भी उससे अर्थ ग्रहण करने में असफल रहे हों। यदि ऐसा हुआ है तो उसे अपने शब्दों में अभिव्यक्त करने में उनको निश्चित रूप से कठिनाई आएगी। ऐसे में बच्चों के पास विषय वस्तु को रटने के सिवाय और क्या उपाय रह जाता है?

और दूसरा परीक्षा प्रणाली भी पाठ्य पुस्तक आधारित होने के कारण बच्चों को ‘रटने’ के कष्टकर अभ्यास में धकेलती नज़र आती है। यहाँ पर परीक्षा प्रणाली पर चर्चा को छोड़कर, हम इस बात पर अपनी बात केन्द्रित करते हैं कि कक्षा-कक्ष में पाठ्य पुस्तक को किस तरह से बरता जाये कि बच्चे अपने लिए अर्थ निर्माण करते हुए पढ़ें, अपने लिए निर्मित अर्थ को अपने शब्दों में मौखिक/लिखित रूप से अभिव्यक्त कर सकें। ज्ञान निर्माण/रचना का यह एक विश्वसनीय तरीका भी है और इसकी पृष्ठभूमि की निर्मिति पठन अभियान में संभव नज़र आती है।

पठन कौशल विकास के चरण

पठन कौशल के विकास के तीन चरण रेखांकित किए जा सकते है-

1.अभिरुचि विकसित करना (Curiosity): बच्चा किसी किताब को क्यों पढे? पढ़ना बच्चे के मौजूदा अनुभवों और संदर्भ से किस प्रकार जुड़ पा रहा है? बच्चों को स्वतंत्र पठन के अवसरों के लिए विद्यालय की दैनिक चर्या में समय और स्थान मिल पा रहा है कि नहीं, पढ़ने के लिए विविधतापूर्ण सामग्री की उपलब्धता और बच्चों की इस सामग्री तक पहुँच आदि बातें पठन अभिरुचि को विकसित करने के महत्वपूर्ण उपादान हो सकते हैं। इसके साथ ही प्राथमिक कक्षाओं के शुरुआती वर्षों में अध्यापक को बच्चों के लिए पढ़ने का उपक्रम करने की जरूरत हो सकती है। बाद के वर्षों में यह जरूरत क्रमश: कम होती जायेगी और यह भी संभव है कि कुछ बच्चों के लिए ऐसा अधिक समय के लिए भी करना पड़े।

2. पढ़ने की जरूरत (Need): एक बार जब बच्चे को अपनी अभिरुचि की पठन सामग्री मिलने लगती है और उसे पढ़ने में आनन्द आने लगता है तो पढ़ना उसकी जरूरत बन जाती है। पुस्तकों के माध्यम से बच्चा अपने आस-पास के संसार और उससे भी बाहर की दुनियाँ को जानने-समझने के लिए पढ़ना जरूरी समझने लगता है। इसी क्रम में अपनी पठन चुनौतियों को भी दूर करने के लिए प्रयास करने लगता है, ऐसा इसलिए होता है कि पढ़ना अब उसकी जरूरत बनती जाती है। एक अध्यापक के रूप में यह हमारी नैतिक जवाबदेही है बच्चों को पठन के इस स्तर तक पहुँचने में उसकी मदद करें, उसके साथ रहें। इसी स्तर पर बच्चे लिखने की जरूरत को भी महसूस करने लगते है। अपनी समझ को अभिव्यक्त करने के लिए मौखिक के साथ-साथ लिखित में व्यक्त करने के लिए लिखना पसंद करते हैं। संभव है यह व्याकरण और शुद्धता के लिहाज से अपरिपक्व प्रतीत हो (दरअसल ऐसा होना नहीं चाहिए), परंतु बच्चे अपनी बात को दूसरों तक पहुंचाने के लिए लिखते जरूर हैं।

पढ़ने की आदत (Habit): पठन कौशल का यह तीसरा चरण बहुत महत्वपूर्ण है। पढ़ना बच्चे की आदत में शुमार होने लगता है। अपनी पठन अभिरूचि की सामग्री को बच्चा तेजी से न केवल पढ़ने लगता है वरन इस सामग्री की खोजबीन करने लगता है। हमें अपने बचपन के दिन बखूबी याद हैं, जब हम किराए पर लेकर कॉमिक्स किस तेजी से पढ़ लेते थे। पुस्तकालय में भी इसी सामग्री की खोज में रहते थे। बच्चों में पढ़ने की आदत को मजबूत करने के लिए हम वयस्कों (विद्यालय में शिक्षकों और घर पर अभिभावकों) की ज़िम्मेदारी है कि बच्चों कि अभिरुचि के अनुरूप विविधतापूर्ण पठन सामग्री जुटाएँ, खोजने में बच्चों कि मदद करें, उनकी वाचनालय/पुस्तकालय तक अबाध पहुँच सुनिश्चित करें। दरअसल एक बार बच्चों को पढ़ने का चस्का लग जाये तो एक दिन यह उसकी आदत बन जाएगी और उसको आजीवन पाठक बनाए रखने में उसकी मदद करेगी। परिपक्व पठन आदतें निश्चित रूप से बच्चों के लेखन कौशल को सशक्त बनाने में मदद कर सकती है।

स्वतंत्र पठन के अवसर से पढ़ने को मिलेगा प्रोत्साहन

अंत में यह कहना समीचीन है कि पढ़ना और पढ़ाई में सारभूत अंतर है। पढ़ना समझने के लिए होता है, अपने लिए अर्थ निर्माण के लिए होता है, सो आनंददायक होता है। इसके विपरीत पढ़ने के बाद भी समझ में न आए, फिर भी उसे याद करना जरूरी हो, जिससे इम्तिहान में इसे लिखकर सफल हुआ जा सके, यह न तो आनंददायक है, न हमारी अभिरुचि का है, न हमें आजीवन पाठक बनने में मदद करने वाला है। पढ़ना और पढ़ाई का यही अंतर बच्चों में अपनी पाठ्यपुस्तकों के प्रति नफरत पैदा कर देता है, जिसका उल्लेख इस आलेख के शुरुआती हिस्से में किया गया है।

स्वतंत्र पठन और बाध्य पढ़ाई के इस अंतर दोष को समाप्त करने में पठन अभियान एक अहम भूमिका निर्वहन कर सकता है। स्वतंत्र पठन के लिए बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिए पढ़ना और पढ़ाई के अंतर-दोष को दूर करने के लिए हमारी परीक्षा और मूल्यांकन प्रणाली पर भी चिंतन करने की जरूरत है। इसकी चर्चा अलग आलेख में करने की कोशिश रहेगी।

( डॉ0 केवल आनन्द काण्डपाल वर्तमान में उत्तराखंड के बागेश्वर जनपद में रा0 उ0 मा0 वि0 पुड्कुनी (कपकोट) में प्रधानाचार्य के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। शिक्षा के क्षेत्र में अध्ययन, शोध व अध्यापन में सक्रियता  से काम कर रहे हैं। इस लेख के बारे में आप अपनी राय टिप्पणी लिखकर या फिर Email: kandpal_kn@rediffmail.com के माध्यम से सीधे लेखक तक पहुंचा सकते हैं। इस पोस्ट को पढ़ने के बाद अपनी प्रतिक्रिया जरूर साझा करें।)

1 Comment on समझकर पढ़ने और मौखिक अभिव्यक्ति कौशल को बेहतर बनाता ‘पठन अभियान’

  1. Nandini Rathore // May 26, 2022 at 11:43 pm //

    उम्मीद करती हूं कि ये चमक स्थायी हो, क्षणिक ना हो, दिखावटी ना हो, किसी भी प्रदर्शन से परे हो 🥰

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