भाषा शिक्षण सिरीज़ः भाषा शिक्षण को जीवंत बनाने में कैसे करें कहानियों का इस्तेमाल?
उत्तराखण्ड के देहरादून जिले से शिक्षिका ताहिरा ख़ान ने एजुकेशन मिरर के लिए यह लेख लिखा है। बतौर शिक्षक आपका बच्चों के प्रति लगाव और शिक्षण के लिए प्रतिबद्धता अन्य शिक्षक साथियों के लिए प्रेरित करने वाला है। आपका स्कूल जंगलों के किनारे प्रकृति के बेहद करीब है और लेकिन आपने अपने प्रयासों से ऐसे माहौल में आने वाले बच्चों को आगे बढ़ने के लिए हर संभव प्रयास किया है। तो विस्तार से पढ़िए ताहिरा जी का लिखा यह लेख और लिखिए अपनी टिप्पणी भी कि यह लेख आपको कैसा लगा।
भाषा शिक्षण की बुनियाद तैयार करने और बच्चों में भाषा के प्रति एक लगाव पैदा करने की दृष्टि से कहानी एक महत्वपूर्ण विधा है। हमेशा से कहानियां दुनियाभर के इतिहास, परम्पराओं, संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाने का सशक्त और रुचिकर माध्यम रही हैं। गाथाएं, लोककथाएँ, किस्से आदि कहानी के ही रूप हैं।
यहाँ तक की काव्यरूप खंडकाव्य और महाकाव्य (एपिक) भी कहानी कहने के ही तरीके हैं उदाहरण के लिए संस्कृत में रामायण, महाभारत, ग्रीक में होमर द्वारा इलियेड और ओडेसी, अंग्रेजी में मिल्टन द्वारा रचित पैरडाइज लॉस्ट आदि। कहानियां न केवल इतिहास, प्रकृति और मानव के परस्पर सहअस्तित्व, मानवीय भावनाओं, समाज के ताने-बाने, आदि को समझने का रुचिकर माध्यम हैं बल्कि यह भाषा के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
कहानियों का खुशी से रिश्ता है
शिक्षकीय अनुभवों के संदर्भ में कहानियों की बात करते ही बच्चों के चेहरे पर आने वाली सहज ख़ुशी की लहर का ध्यान आ जाता है। जब हम विभिन्न कक्षाओं के साथ कहानियों की किताबों का इस्तेमाल करते हैं तो कक्षा में ख़ुशी और रोचकता का वातावरण और अपनत्व बनाने में मदद मिलती है। बच्चों ने कहानियां दादा-दादी से सुनी हो, किसी किताब से पढ़ी हों या किसी ने सुनाई हों। वो उन्हें हमेशा ही हर्ष और उल्लास से भर देती हैं क्योंकि वो बचपन का अभिन्न अंग होती हैं और कहानियों से होने वाले वो अनुभव उन्हें रोमांचित करते रहते हैं। आज भी जब हम अपने बचपन को याद करते हैं, तो घर पर या विद्यालय में सुनी या पढ़ी गयी कहानियों की स्मृति हमारे चेहरे पर मुस्कान ले आती है।
कहानियों को सुनते, पढ़ते या सुनाते समय बच्चे केवल उनका आनंद ही नहीं ले रहे होते बल्कि कई कौशलों को भी सीख रहे होते हैं। कक्षा में कहानियों ,कविताओं, खेल गीतों से भरा वातावरण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बच्चों को सीखने के पर्याप्त अवसर देती है। एक तीन साल के बच्चे से ऐसे किसी भी विषय पर बात की जा सकती है जो उसके संज्ञानात्मक दायरे में आती है और यदि उसे सीखने के मौके मिलते रहते हैं तो वो धीरे-धीरे अपने परिवेश ,समाज, विद्यालय, जीवन अनुभवों आदि से इस ज्ञान को विस्तार देता जाता है। विद्यालय में यदि बच्चों की रूचि की पुस्तकें उपलब्ध हों तो उन्हें पढने में भी आनंद आएगा, अगर बचपन से ही उनका परिचय विभिन्न प्रकार की किताबों से हो जाये तो वे आनंद के साथ विभिन्न प्रकार की दक्षताओं को भी सीख रहे होंगे।
इन कहानी की पुस्तकों को अनुपूरक किताबों के रूप में प्रयोग करके विषय को और रोचक बनाया जा सकता है। कई विद्यालयों में पुस्तकालय की व्यवस्था होती है कहीं पर स्वयं सेवी संस्थाओं या विद्यालय के द्वारा भी कई प्रकार की सहायक पुस्तके बच्चों को उपलब्ध होती हैं। अपने स्तर से भी कहनियों और लोक कथाओं की व्यवस्था की जा सकती है। बच्चों के माता-पिता को विद्यालय में बुलाकर कुछ लोककथाओं को सुनाने का कार्यक्रम माह में एक बार किया जा सकता है जैसी सिफ़ारिश एनसीएफ-2005 में भी की गई है।
कक्षा में लोककथाओं का उपयोग
लोककथाओं का कक्षा में प्रयोग बच्चे को बहुत आत्मीयता देता है क्योंकि लोक साहित्य लोक मानस से जुड़ा होता है। क्योंकि इनमें मानव की रोजमर्रा की ज़िंदगी, आवश्यकताओं, संघर्ष, प्रकृति से सम्बन्ध, जिज्ञासा और भय की अभिव्यक्ति होती है। लोक साहित्य का शैक्षिक महत्त्व इस वजह से और भी बढ़ जाता है की इसमें परिवेश के शब्द होते हैं जिससे बच्चों को समझने में आसानी होती है और पढ़ने-लिखने की गतिविधियाँ ज्यादा अर्थपूर्ण बन जाती हैं।
इसमें परिवेश से सम्बंधित पात्र और घटनाएं होती हैं जिन्हें वो अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में देखते हैं,या कम से कम उनसे परिचित होते हैं। इस कारण से वे कहानी से सहज जुडाव महसूस करते हैं। स्थानीय त्योहारों ,संस्कृति, मान्यताओं और समस्याओं पर कहानियां होने से बच्चे उस काल के प्रचलित भोजन, जीवन शैली और रीति-रिवाजों पर बात कर सकते हैं और आज के समय से उसकी तुलना भी कर सकते हैं। लोककथाओं के लोक में प्रचिलित होने के कारण कई बच्चे इनसे परिचित भी होते हैं ।
जब बच्चे लोककथाओं को लिखित रूप में अपने सामने पाते हैं तो बहुत रुचि लेकर पढ़ते हैं। लेकिन लोक साहित्य को बच्चों के साथ बरतने में थोड़ी सावधानी भी बरती जानी चाहिए क्योंकि क्योंकि लोक कथाएं प्रचलित मान्यताओं से प्रभावित होती है, इसलिए संभव है की उसमे कुछ बातें ऐसी हों जिनको अब हम नकार चुके हों और समय के साथ उनमें बदलाव आ गया हो। लोककथाओं में ये जांचना चाहिए की इनमे उन सामाजिक मूल्यों को न परोसा गया हो जो किसी भी बच्चे के एक अच्छे नागरिक बनने में अवरोध पैदा करें।
मैं अपनी कक्षा में नियमित रूप से कहानियाँ सुनाती हूँ, बच्चों ने खुद से भी लाइब्रेरी से लेकर बहुत सारी कहानियां पढ़ी हैं। लेकिन जब मैंने उनके साथ लोक साहित्य पर बात शुरू की तो उन्हें बहुत आनंद आया। उनसे कई कहानियों पर बातचीत हुई। कहानियों पर उनकी प्रतिक्रिया और मेरे अवलोकनों से मुझे शुरूआती कक्षाओं में लोकसाहित्य का महत्व समझ आया। उदाहरण के लिए एक कहानी पर हुयी चर्चा के कुछ अंश प्रस्तुत हैं।
एक लोककथा :- भिकुंणी ने अपने अंडे कैसे बचाए
यह भिकुंणी (चिड़िया) और पोइन (भैंसा) नाम के पात्रों की कहानी है जिसमें भिकुंणी चिड़िया द्वारा अपने अंडे बचाने के लिए किया गया संघर्ष है। इसके अन्य पात्रों में घास, इन्द्रदेव, ग्वाला, मेंढक हैं। इसमें एक वाक्य का बार बार दोहराव है और हर बार वाक्य में कुछ जुड़ता जाता है “घास-घास तुम हरी क्यूँ नहीं उगी, तुम हरी उगी नहीं तो ग्वाले ने पोइन को खाने को कुछ नहीं दिया, ग्वाले ने कुछ नहीं दिया तो वह जंगल में घास चरने आया, मेरे अण्डों पर उसका पैर पड़ा तो वे टूट गए”। इस कहानी के कारण बच्चों में पढ़ने के लिए एक ललक पैदा हुई।
जो बच्चे पढ़ना-लिखना सीख रहे हैं उनके लिए ऐसी कहानियां चुनी जानी चाहिए जिनमें शब्दों और वाक्यांशों का दोहराव हो ताकि बच्चे शब्द/ वर्ण की ध्वनि और आकृति के अंतर्संबंध को पहचान सकें इस कहानी में एक तरह से प्रकृति के सह संबंधों पर प्रकाश डाला गया है जो बच्चों को न सिर्फ रुचिकर लगा बल्कि उन्हें ठीक से समझ भी आया, हालाँकि यह ज्ञान वैज्ञानिक नहीं है लेकिन फिर भी वह उपयोगी है और कम से कम प्रकृति की घटनाओं को समझने की एक कोशिश तो है ही।
इस कहानी का एक निश्चित घटनाक्रम है जिसके पीछे कहानी का आंतरिक तर्क काम करता है, मसलन अगर बारिश होती तो घास उगती, अगर घास होती तो ग्वाला पोइन को खाना खिला पाता, अगर पोइन का पेट भरा होता तो वह जंगल नहीं जाता। इस घटनाक्रम में कोई भी छेड़छाड़ इस कहानी के तर्क को बिगाड़ सकती है इसलिए बच्चों को यह क्रम खुद से ही याद हो जाता है। कहानी यह मौके भी देती है की बच्चे अपनी कल्पना शक्ति का इस्तेमाल करके घटनाक्रम को बदलें लेकिन कहानी के तर्क और प्रवाह के अनुकूल।
कक्षा 4 के बच्चों के विचार:-
निकिता- कहानी बहुत मजेदार थी, सुनने में बहुत मज़ा आया क्योंकि चिड़िया इंसान की तरह घास, ग्वाले, मेंढक, इन्द्रदेव से बातें करती है। काश हम भी ऐसा कर पाते।
सचिन- कहानी के नाम भिकुंणी पर हमें हँसी आई और पोइन नाम अंग्रेजों का सा लगा।
विशाल- मुझे पक्षियों और जानवरों की कहानी बहुत अच्छी लगती है।
निकिता- मुझे बड़ी ख़ुशी हुयी की चिड़िया भगवान के पास भी पहुँच सकती है, ये सब भिकुंणी की हिम्मत से हुआ, वह डरी नहीं। उसने भगवान से बारिश भी करवाई।
प्रिया- उनकी बातें बहुत अच्छी थीं, आप हमसे संवाद लिखवाते हो तो इस कहानी में पात्रों की बातों से हमें संवाद बनाने का अलग तरीका मिला, वे अलग तरीके से बात कर रहे थे।
अंकित- बारिश होना क्यों जरुरी है यह समझ आया।
शुभम- घटनाएं मजेदार थीं। कुछ घटनाएं हंसाने वाली थीं तो बहुत मज़ा आया, जब मेंढक टर्र-टर्र करने लगे।
सचिन- भिकुंणी का अपने बच्चों के लिए प्यार समझ आया, वो अण्डों को बचाने के लिए बुद्धि का प्रयोग करती है।
दिनेश, रवीना, प्रिया सहगल- कहानी का शीर्षक ‘भिकुंणी के अंडे’, ‘भिकुंणी की आत्मकथा’, ‘भिकुंणी की होशियारी’, ‘भिकुंणी का प्यार’ भी हो सकते हैं |
इस बात पर भी बहुत बहस हुई कि कहानी में लिखा है की अगर मेंढ़कों की पीठ गीली होगी तो वो टर्र टर्र करेंगे और फिर बारिश होगी। लेकिन पीठ तो बारिश के कारण गीली होगी न, बिना बारिश के पीठ कैसे गीली होगी।
अगर किसी पाठ्यवस्तु को परखने की कसौटी पर देखें तो इस कहानी में परिवेश की वस्तु, परिचित शब्द, आसपास के पात्र थे। बच्चे का परिवेश से जुड़ाव होने के कारण वे पात्रों के अनुभवों को बेहतर समझ पा रहे थे। वे न सिर्फ तर्क कर पा रहे थे बल्कि कहानी के तर्क में विसंगति भी देख पा रहे थे। बच्चे भिकुंणी के प्यार, उसके संघर्ष, उसकी हिम्मत को महसूस कर पा रहे थे और उसकी सराहना कर पा रहे थे।
वे कहानी के शीर्षक भी बदलना चाहते थे जिसका अर्थ है की उन्होंने कहानी के मर्म या मुख्य विचार को ठीक से समझ लिया है और वे अपने अपने तार्किक और भावनात्मक आधारों पर कहानी से अपने लिए खुद सीख ले पा रहे हैं, उन्हें अलग से कोई सीख देने की जरुरत नहीं है। इस कहानी से बच्चों ने निष्कर्ष भी निकाला की कोई छोटा या बड़ा नहीं होता बल्कि उनकी हिम्मत और मेहनत उन्हें बड़ा बनती है जैसे इस कहानी में एक चिड़िया भगवान से भी मिल आई और उनसे बारिश भी करवा दी।
लोककथाओं से जिन क्षमताओं का विकास होता है उनमें से कुछ जो मैंने भाषा शिक्षण के दौरान जानी वह हैं-
1. सुनने की क्षमता का विकास
जब बच्चे कहानी सुन रहे होते हैं उनके भीतर कई तरह की उधेड़बुन चल रही होती है। एक तरफ वो सुने या पढ़े हुए का अर्थ समझ रहे होते हैं और दूसरी तरफ उस कहानी को अपने परिवेश से भी जोड़ रहे होते हैं। वे कहानी पर कई तरह की कल्पनाएं करते हैं। बच्चा जब कहानी सुनने की प्रक्रिया में हो तो ज़रूरी हो जाता है की उसका ध्यान न टूटे और वो अंत तक कहानी से जुड़ा रहे। इसके लिए कहानी सुनाना और कहानी की रोचकता, उसके ध्यान से सुनने ,ध्यान केन्द्रित करने के लिए बहुत मायने रखती है और ये गुण यदि बच्चे में आ जाता है तो वो भविष्य में एक अच्छा श्रोता बनने में उसकी मदद भी होती है ।
2. अनुमान लगाने की क्षमता का विकास
जब बच्चे किसी कहानी को सुनते हैं या पढ़ते हैं तो कई बार वे अनुमान लगाने लगते हैं कि कहानी में आगे क्या होगा। छोटी कक्षाओं के बच्चे कहानी के चित्रों पर बात करते हुए भी अनुमान लगा रहे होते हैं की कहानी में क्या हो रहा है। वे बड़े ही आत्मविश्वास से अपने जीवन के अनुभवों को भी इन चित्रों से जोड़ कर देख रहे होते हैं और यदि उनका अनुमान सही होता है तो उनका खुद पर भरोसा भी बढ़ जाता है। अनुमान लगाना उनके मन में चलने वाली अर्थ निर्माण की प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। अनुमान लगाने की क्षमता बच्चे को उसके भावी जीवन में आने वाली कई संभावनाओं की समझ बनाने में भी काम आती हैं ।
3. संवेदनशीलता का विकास
कहानी सुनने व पढने से बच्चों में संवेदनशीलता का विकास होता है। कहानी पढ़ते हुए कई बार वो उन घटनाओ से खुद को जोड़ लेते हैं जिनको वो रोज़ तो देख रहे थे पर ध्यान नहीं दे रहे थे। लेकिन जब वो कहानी को ध्यान से सुनते हैं तो वो उस स्थिति को महसूस करने लगते हैं या पात्र बनकर बच्चे जब कहानी सुनाते हैं तो वो उस पात्र को जी रहे होते हैं। ऐसे में बच्चे पूरी तरह से कहानी के किरदार से जुड़ जाते हैं।
जैसे ईदगाह कहानी में हामिद का चिमटा लेना और दादी की प्रतिक्रिया। मेरी कक्षा के बच्चों ने कक्षा पांच रिमझिम की कहानी, जहाँ चाह वहां राह में इला के किरदार से उसकी पीड़ा को ज्यादा बेहतर तरीके से समझा और कहा की पहले हम इस तरह के लोगों पर हँसते थे मगर हमें अब अपने उस व्यवहार पर शर्म आती है।
4. तुलना करने की क्षमता का विकास
जब बच्चे कहानियां सुनते है या पढ़ते हैं तो वो तुलना भी करते चलते हैं। वे तुलना करते हैं ये कहानी अच्छी या वो कहानी , ये पात्र अच्छा या वो पात्र अच्छा, ये काम अच्छा, वो ज्यादा अच्छा। कई तरह के अंतर की समझ बच्चों में बन रही होती है। कहानियों की तुलना से वे अपने निर्णय तक पहुंचने की कला से भी वाकिफ हो रहे होते हैं । यही निर्णय लेने की क्षमता उनको भावी जीवन में सही गलत का फैसला करने और श्रेष्ठ मूल्यों और विचारों को अपनाने में मदद करती है।
5. तर्क करने की क्षमता का विकास
कहानियों से बच्चों में तर्क करने की शक्ति या क्षमता का विकास होता है। कहानी पढ़ते हुए जब वो कहनी के अच्छे बुरे पक्षों के लिए अपने मत दे रहे होते हैं तो वो उनको सही या गलत साबित करने के लिए लिए तर्क भी करते हैं ,अपनी कही हुई बातों के पक्ष और विपक्ष पर वो चर्चा करते हैं। वो उस स्थिति को सिर्फ एक दृष्टिकोण से न देखते हुए कई तरह से देखते हैं और कई बार असहमति भी दर्ज कराते हैं।
जैसे एक बार कक्षा में मैंने शेर और खरगोश की कहानी सुनाई और बच्चों से चर्चा करने को कहा ।बच्चों ने कहानी के पक्ष और विपक्ष में अपने विचार रखे। मैंने उनसे कहा कि कहानी में आपको शेर बुरा और खरगोश अच्छा लगा ।तो अब कहानी में हमे शेर को अच्छा बताना है उसके लिया क्या तर्क हो सकता सोच कर बताएं ।कुछ देर वो आपस में बात करते रहे फिर उन्होंने बताया की ,शेर तो घास नहीं खा सकता लेकिन और जानवर घास खा सकते हैं । शेर द्वारा मांस खाना उसकी अपनी पसंद नहीं है तो वो अब क्या खायेगा ।ये शेर की अपनी मजबूरी है ।तो इस बात से निष्कर्ष निकला की सिर्फ अपने सन्दर्भ से अच्छा या बुरा देखने की बजाय दूसरे के दृष्टिकोण से भी देखने का प्रयास करना चाहिए ।
6. समीक्षा करने की क्षमता का विकास
कहानियां पढ़ते हुए बच्चे ऐसी स्थिति में भी पहुच जाते हैं कि वो कहानियों की, पाठों की, समीक्षा करने लगते हैं वे बता पाते हैं की कहानी में कौन-कौन से पात्र थे, कहानी का प्रमुख मोड़ कौन सा था, कहानियों में कौन सा बिंदु अच्छा था और किस पर बदलाव की ज़रूरत है। उनमें व्याख्या करना, विश्लेषण करने जैसी दक्षताएं आ जाती हैं जो उनको भावी जीवन में खुद के लिए बेहतर निर्णय लेने में मददगार होंगी। अगर बच्चे प्राथमिक स्तर से ही इन कौशलों को प्राप्त करते है तो वो उनके समालोचनापूर्ण विचार करने के लिए पहला पायदान साबित हो सकता है ।
7. शब्द भण्डार में वृद्धि
कहानियां सुनते या पढ़ते हुए बच्चे कई नए शब्दों से रुबरु होते हैं जो उनके लिए नए होते हैं उस शब्दों के संदर्भो से परिचित होते हुए वो उसके अर्थ का अनुमान लगाते हैं। नए शब्दों का प्रयोग अपनी बोली भाषा में करते हैं और कहानियां बनाते समय भी इन शब्दों का प्रयोग कर सकते हैं। इससे बच्चों का शब्द भण्डार विकसित होता है। इसके साथ ही साथ बच्चे अलग-अलग कहानियों से कहानी के संवाद को देखते और पढ़ते हैं जिससे उनमे संवाद करने की कला का विकास होता है।
8. सहयोग की भावना का विकास
कहानी और लोककथाओं को बच्चे जब पढ़ रहे होते हैं तो वो सब साथ मिलकर आनंद ले रहे होते हैं, किसी कहानी पर जब समूह चर्चा होती है तो वो एक दूसरे के विचारों से भी अवगत हो रहे होते हैं, कभी ऐसा भी होता है की वो एक दूसरे को सही-गलत भी बता रहे होते हैं। या कोई लेखन का काम, कहानियों पर चित्र बनाना ये आपस में मिलकर करते हैं जो उन्हें एक दूसरे के करीब ले आता है और कक्षा में एक सहयोग का माहौल बन जाता है।
भाषा की कक्षा में कहानियों और लोककथाओं का प्रयोग हम बाल सभा में पूरे स्कूल को कहानी/गीत सुनाना, प्रार्थना सभा में बच्चों द्वारा कहानियां सुनाना, कहानियों की पुस्तकों के संग्रह से खास कहानी या पात्र को ढूँढना, कहानी पर चित्र बनाना आदि में कर सकते हैं। पाठ्यपुस्तक से सम्बंधित विषयवस्तु से मिलती जुलती कहानी कक्षा में सुनाई जा सकती है।
बच्चे खुद से चुनते हैं अपनी पसंद की किताब
स्कूल की दिनचर्या में अलग से पढ़ने का समय निर्धारित किया जा सकता है जिसमें बच्चे अपनी इच्छा से कोई कहानी की किताब पढ़ सकते हों। कहानी से पढ़ने-लिखने और विमर्श करना सिखाने के लिए यह बहुत आवश्यक है कि जब बच्चों ने कहानी पढ़ ली हो तो उनसे उस कहानी पर बातचीत, चर्चा और उपयुक्त गतिविधियाँ की जायें ताकि बच्चे कहानी से उत्पन्न उथल-पुथल और भावों को ज्ञान के किसी ढ़ांचे में ढाल कर अपनी समझ को पुख्ता कर सकें।
(लेखक परिचयः शिक्षिका श्रीमति ताहिरा खान उत्तराखण्ड के देहरादून जिले के विकासनगर ब्लॉक में राजकीय प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करते हुए आपने अपने अनुभवों पर चिंतन और लेखन का सिलसिला जारी रखा है। आपके लेख विभिन्न पत्रिकाओं और वेबसाइट्स पर प्रकाशित हुए हैं। इस विद्यालय में होने वाले प्रयासों को विविध संस्थाओं द्वारा अध्ययन के लिए चुना गया है।)
(शिक्षा से संबंधित लेख, विश्लेषण और समसामयिक चर्चा के लिए आप एजुकेशन मिरर को फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो कर सकते हैं। एजुकेशन मिरर के यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें। अपनी स्टोरी/लेख भेजें Whatsapp: 9076578600 पर, Email: educationmirrors@gmail.com पर।)
Very well written. It is useful for all of us. Heartiest congratulations Tahira Mam.
Bahut acha lekh. Main bhi lokkathaon ko adhar bana kar shikshan karti hoon. Is lekh se mujhe bahut naye ideas mile. Thank you
Bhaut hi sunder lekh hai.kaksha me kahaniyon ka istemaal bachon ke liye kitna labhkari hai ye iss lekh se pata chala.wakai bahut prernadayak lekh hai.
Shama kazmi (teacher)
Government model middle school kargil ladakh.
baut hi sundar lekh hai.kaksha me kahaniyon ka istemaal bachhon ke liye kitna labhkari hai ye iss lekh se pata chala .wakai bahut prernadayak lekh hai.
From:Shama kazmi (teacher)
School:government model middle school
बहुत अच्छा लेख, इसमे एक शिक्षक के रूप में सीधा बच्चों के साथ कैसे कहानी शिक्षण किया जाए , इस पर बहुत सटीक बात की है। निश्चिंत ही लीक से हटकर कुछ प्रयास किये जायें तो उनका लाभ मिलता है।
Congratulations Di really proud of you
Excellent article, which helps to get a different perspective about how teaching methodology needs to be evolved through participation and involvement. I am positive that such efforts will bring about a change and help our next generation achieve so much more, even if they don’t come from the affluent background. Please continue the good work.
Bhut accha article likhaa hai madam , aap esse he aage taraki krte rahe humare shubhkamnaye aapke saat hai.
Many many congratulations dear sister. You are really doing very well for the sake of students. Your innovative ideas about teaching and learning is very appreciable. Keep it up and have a great future ahead.
ताहीरा खान जिन्हे देहरादून के शिक्षक/शिक्षिका साथियों ने पिछले कई वर्षों से अपनी शैक्षिक समझ के साथ उभरते हुए देखा है| एक संवेदनशील, व्यावहारिक शिक्षक के रूप में ताहीरा खान की approach शिक्षा के मूलभूत सिद्धांतों को अपने बच्चों के साथ प्रयोग करना, उसे बच्चों के अधिगम के साथ तोलना और कैसे उन उद्देश्यों तक पहुंचे उस पर निरंतर काम करना रहा है |उक्त लेख पाठकों को दो स्तरों में समझने में मदद करता हुआ दिखता है पहला एक शिक्षक को उसके द्वारा भाषा शिक्षण में की जाने वाली क्रियाओं के उद्देश्यों की स्पष्टता हो दूसरा बच्चे जो सीख रहे हैं वह किस दिशा में जा रहा है और उसमें क्या और जोड़ना है स्पष्ट हो| भाषा की एक विधा कहानी का इस तरह का विश्लेषण, उसको बच्चों के उन उत्तरों से जोड़ना जो सामान्यतः कोई भी शिक्षक/शिक्षिका नहीं देख पाते इसलिए बच्चों के साथ चर्चा को इन गहराइयों तक नहीं कर पाते हैं| इस लेख में एक लोक कथा को इतनी सारी अधिगम क्षमताओं जैसे सुनने की क्षमता, अनुमान लगाने की क्षमता, संवेदनशीलता, तुलना, तर्क, समीक्षा, शब्द वृद्धि, सहयोग भाव पेक्षित pedagogy की आदर्श स्थिति को सामने रखता है| निश्चित रूप से ताहीरा जैसी शिक्षिका जब किसी भी पाठ/ कहानी/ कविता पर बच्चों के साथ काम कर रही होगी तो अपनी योजना में इन्ही क्षमताओं को उकेरने या इन क्षमताओं के लिए नए ज्ञान के निर्माण में कार्य कर रही होंगी| मैंने उनके बच्चों को जाकर देखा और सुना है| दावे के साथ कह सकता हूँ कि ताहीरा जी द्वारा पढाये गए इस सरकारी स्कूल के ये बच्चे विषयगत क्षमताओं में किसी से कम नहीं होंगे|
निस्संदेह बहुत ही उपयोगी लेख एक शिक्षिका होने के नाते अपने शिक्षण कार्य करते हुए लेखिका की यह बात निश्चित रूप से मेरे शिक्षण कार्य को और बेहतर बनाएगी आभार ताहिरा मैम
मधु पटवाल
Wonderful article. It gives a balance of theory and practice. In this article, I see a very practical approach to various literary and learning theories. It provides a pretty well picture of story as a tool for effective langaula teaching. It also deal with various perspective issues in a very pragmatic way. Good work, keep writing.
कहानी काव्यरूप भी हो सकती है इस बात को बहुत सुंदर ढंग से कहने के लिए धन्यवाद
निश्चित ही बहुत अच्छा लेख है, इससे भाषा शिक्षण पर चर्चा करने और कक्षा कक्ष शिक्षण करने में बहुत मदद मिलेगी. आपका आभार!
V nice …..Tahira bahut achha lekh likha hai ….mai tumhare vicharo se sahmat hoo.class ko rochak banane mai or adhik seekhne mai kahaniyo ka mahtwpurn role hai.
Good job mam
इस लेख के माध्यम से आपके द्वारा बुनियादी शिक्षा के सरलता ,रोचकता, मंनोरंजन से परिपूर्ण सहजता के साकरात्मक पक्ष को नई दिशा देकर उपयोगी एवं अनुकरणीय बना दिया। शिक्षा जगत को अमूल्य योगदान हेतु एक शिक्षक आपका आभार व्यक्त करता है।
Badar Is Zama Urdu Teacher GUPS TIMLI VIKASNAGAR DEHRADUN 248152
@नीलिमा जोशी, धन्यवाद मैम
हम सब एक दूसरे से सीखते और सिखाते हैं ,यही तो शिक्षा है,इसलिये हम शिक्षक हैं।
@सुमन सेमवाल, मेम उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।निश्चित ही आप जैसे साथियों से प्रोत्साहन मिलता रहेगा तो मैं और बेहतर कार्य करने और अनुभवों को साँझा करने का प्रयास करती रहूंगी।
@kavita Pant,Thank you dear kavita for the encouragement.Yes the stories have indeed immense power to influence our personalities.,not on the emotional aspect of self but also on the cognitive side.It is one of the most important tool of teaching.
Its wonderful write up ,my dear friend .actually the stories give wings to the childs imagination and the child can relate it with himself .thus the topic becomes more interesting and easier for him .somehow the child becomes very much close to the characters and can understand it more .its a good procedure for a interactive class ..well observed lines by you ..proud of u …
@ गजेंद्र जी ,आलेख के लिए धन्यवाद। आपने सही कहा कि शिक्षण का मूल आधार शिक्षा के उद्देश्य,बालमैत्री पूर्ण उपयुक्त शिक्षण प्रक्रियाएं और बच्चों को स्वयं ज्ञान के निर्माण के अवसर देना ही है।अगर शिक्षक को स्पष्टता है तो शिक्षण अपने आप प्रभावी हो जाएगा और सभी बच्चे सीख रहे होंगे।
शानदार, ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायक लेख, अपने काम में समर्पण का अनूठा उदाहरण पेश किया है आपने मेम,
प्राथमिक शिक्षा , शिक्षा रूपी भवन की नींव होती है यदि हम
इस मनोभाव से अपना शिक्षण करें तो निश्चित रूप से लक्ष्य की प्राप्ति होगी। भविष्य में भी हम आपके ज्ञान , अनुभव और शैली से लाभान्वित होंगे,इसी आशा के साथ।
मैम आपका लेख पढ़ा। बहुत कुछ इससे सीखने को मिला।मै भी अपने शिक्षण कार्ययोजना में इसे शामिल करने का प्रयास करूंगी। धन्यवाद
Excellent work👍👍……. students are lucky to have a teacher like u….really proud of u dear
बहुत खूब मैंम
हार्दिक बधाई .!!
गद्य पद्य की सीमा को तोड़ आपने एक नई परिभाषा से अवगत कराया । जो भाषा शिक्षण में और बच्चों को विद्यालय ,घर ,परिवार ,समाज से कहानियां सुन नवीन विचारों का आदान प्रदान कर सकेंगे । भावों की अभिव्यक्ति करना सरल होगा । रोचकता का विकास होगा । पुस्तकों से बच्चों को लगाव होगा ।
Mind-blowing and imitative
इस लेख में आपने बहुत ही सुंदर तरीके से काव्य और गद्य के बीच कि दीवार गिराई है। यह सचमुच सोचने की बात है कि इनके बीच कोई मौलिक भेद है भी या यह सिर्फ सतही तौर से देखने पर ही नजर आता है
Bahut hi prayog dharmi kriya kalap hai in navonmeshi vicharo me….Nischay hi vidhyarthiyo ki ruchi v tark ka sthar isse badhega.
Mai aur mere sabhi saathi apke is lekh ke anusar apne students Ko jaror padayenge..taaki is Karan wo bi is innovative idea ka Labh le sake..
Lekh bada hi rochak hai mam aap ko dher sari badhai
बहुत ही बेहतरीन लेख है. आपने वें सभी बाते लीखि जो कक्षा कक्ष मे भाषा के पिरियड मे होती है. आपकी क्लास मे आपने जो चर्चा की वह लाजवाब है. Your class is highly interactive. Children learn effectively in such environment. You provided lot of opportunities to children to respond creatively. Your classroom processes are highly consistent with aims of education and aims of language learning. I like children responses on title of the story.. very creatively they suggested few titles. You fantastically explained what folk tale can do, how it contributes in cognitive and social development of children with real life examples. This can be said for any story telling activity if done by your way. You wrote about repetition of sentences in the story, this form works highly in engaging each and every mind in the classroom. Such stories are also written by Gijubhai Badheka and translated by Abid surati. ( Gijubhai ka Guldasta). We look forward such engaging article in coming days as well.