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परीक्षाः ‘अरे! तुमको इतने नंबर कैसे मिल गए?’

हर बार परीक्षा में वही सवाल घूमकर वापस आ जाते हैं। बहुत से छात्र पिछले साल के प्रश्नपत्रों को मिलाते हैं। उसके बाद अनुमान लगाते हैं। प्रबल संभावना वाले सवालों की लिस्ट बनाते हैं। जोर-शोर से रटते हैं और परीक्षा हाल में पूरी सक्रियता के साथ उसे प्रश्नपत्र पर बिखरा हुआ छोड़ आते हैं।

इसके बाद जब परिणाम आते हैं तो सभी लोगों के अंको का मिलान होता है। कोई आगे होता है। कोई पीछे होता है। इसी में से किसी को किसी विषय में ज़्यादा अंक मिल जाते हैं, तो लोगों को यकीन नहीं होता है कि अरे उसको इतना ज़्यादा नंबर कैसे मिल गया?

सहपाठियों की भांति कभी-कभी शिक्षकों को भी हैरानी होती है कि अरे! तुमको इतने ज्यादा नंबर कैसे मिल गए? तुम तो क्लास में रोजाना नहीं आते।

ऐसे तमाम सवालों और संदेहों के बीच सत्र निकल जाता है। परीक्षा के सवाल हल हो जाते हैं। लेकिन ज़िंदगी के सवाल ज़्यों के त्यों बने रहते हैं। मसलन नौकरी और रोजगार से जुड़े सवाल।  रिश्ते से जुड़े सवाल। नज़रिए से जुड़े सवाल।

फ़िल्म उड़ान का एक दृश्य जिसमें नायक कविताएं लिखता है।

पाठ्यक्रम ख़त्म होने के साथ किताबी सवालों की प्रासंगिकता समाप्त हो जाती है, लेकिन जीवन के जटिल प्रश्नों से जुड़े सवाल ज़्यादा कठिन रूप में हमारे सामने आते हैं। पढ़ाई, परीक्षाएं और असाइमेंट कभी-कभी तो एक अच्छा बहाना हो जाते हैं…जीवन के बहुत सारे प्रश्नों को स्थगित करने का। उनके बारे में सिलसिलेवार ढंग से सोचने का मौका लेकर आते हैं।

मगर परीक्षाओं के बहाने होने वाली सारी पढ़ाई परीक्षा में ही काम आ जाए जरूरी नहीं है। परीक्षा के दौरान पढ़े हुए के व्यावहारिक उपयोग की संभावनाएं आगे भी बनी रहती हैं। इसलिए परीक्षा के दौरान पढ़ाई को भी उसी निरंतरता में देखना चाहिए। इस दौरान बहुत सारी अवधारणाएं स्पष्ट होती हैं। बहुत सारे नए सवाल हमारे सामने आते हैं।

चीज़ों को समझने की स्पष्टता भी हमारे सामने आती है। सबसे ख़ास बात है कि कक्षा में होने वाली पढ़ाई को लेकर जो प्रतिक्रियाएं छात्रों की होती हैं वे काबिल-ए-ग़ौर होती हैं। मसलन अध्यापकों ने एक ही चीज़ को बार-बार दोहराया। उन्होंने पाठ्यक्रम को ढंग से समझाकर नहीं पढ़ाया। फलां शिक्षक ने बहुत ही करीने से सारी चीज़ें पढ़ाईं। पाठ्यक्रम बहुत स्पष्ट होना चाहिए। उसमें मिलने वाले प्रोजेक्ट में अगर यह बदलाव हो जाए तो काफ़ी अच्छा होगा।

वहीं छात्रों की तरफ़ से बहुत सारे रोचक सुझाव भी आते हैं कि हम आने वाले बैच के लिए कुछ ऐसा करेंगा ताकि उनको अगले साल उन समस्याओं का सामना न करना पड़े, जिसका सामना हम कर रहे हैं। लेकिन समस्याओं की बाधाएं हटाने से उनको कितनी मदद मिल पाएगी, इसके बारे में भी पहले से कुछ कहना मुश्किल है।

संसाधनों (लायब्रेरी) की उपलब्धता किसी विषय को समझने, उसकी गहराई में जानने और अवधारणाओं को स्पष्ट तरीके से जानने में मदद करती है। परीक्षा से लाभ तो है कि छात्रों को पढ़ाई का एक बहाना मिल जाता है। लेकिन जिस डर और दबाव के माहौल में परीक्षा होती है,,,उसका सामना करना सभी छात्रों के लिए एक जैस अनुभव नहीं होता है। मूल्यांकन के इस डर का शिक्षा व्यवस्था से समाप्त होना जरूरी है ताकि जिंदगी के सवाल और परीक्षा के सवालों के समाधान में एक सामंजस्य आ सके। दोनों को हल करने के रास्ते इतने जुद न हों।

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