पहली से दूसरी कक्षा में पहुंचने की खुशी कैसी होती है?
ज़िंदगी में बहुत सारी चीज़ें सिर्फ़ एक बार होती हैं। जैसे पहली बार स्कूल में दाखिला लेना। पहली बार पढ़ना सीखना। पहली क्लास में पढ़ना।
अब तो पहली से आठवीं तक किसी क्लास में दोबारा पढ़ने का मौका भी नहीं मिलता क्योंकि शिक्षा का अधिकार क़ानून के तहत किसी बच्चे को किसी कक्षा में रोककर रखने का प्रावधान नहीं है। बच्चों को कक्षा के अनुसार दक्षता हासिल करने के लिए सपोर्ट करना है, मगर उनको उसी क्लास में रोककर नहीं रखना है। बच्चों के नज़रिये से यह बात काफी अच्छी है।
‘हर बच्चा टॉपर है’
मगर इस नियम को अलग रूप में देखा या प्रचारित किया गया है कि किसी बच्चे को फेल नहीं करना है। यानी फेल नहीं करना है तो परीक्षा कैसी? अगर परीक्षा नहीं तो फिर पढ़ाई कैसी? बच्चे भी पढ़ाई को परीक्षा और नंबर वाले चश्मे से ही देखते हैं। एक दिन नौवीं एक बच्चे ने ऑटो में होने वाली बातचीत के दौरान कहा, “परीक्षाओं के बाद नंबर ही मिलने चाहिए। ग्रेडिंग से कुछ पता नहीं चलता।”
अगर मैं अपनी व्यक्तिगत राय की बात करूं तो मेरे लिए क्लास का हर बच्चा टॉपर है। ऐसे में हर बच्चे को पास होना चाहिए। किसी भी बच्चे को फेल करना, उसके आत्मविश्वास पर चोट करने जैसा होगा। शुरुआती दिनों का डर बच्चे के भीतर बहुत गहरे बैठ जाता है। ऐसे में हमें बेहद सतर्कता के साथ काम करना चाहिए कि हमारी किसी बात से बच्चों के भीतर डर न बैठे। बल्कि हमारा तरीका हर बच्चे को प्रोत्साहित करने वाला। उनकी हर कोशिश की दाद देने वाला होना चाहिए।
‘पियर लर्निंग’ की मिशाल
पहली क्लास के हर बच्चे ने अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश की है। हमारी तरफ से ही कोई कमी रह गई हो तो कह नहीं सकते। क्योंकि बच्चे तो सीखना चाहते हैं। हर हाल में सीखना चाहते हैं। उनकी सबसे ख़ास बात है कि वे अकेले नहीं बाकी बच्चों को साथ लेकर आगे बढ़ना चाहते हैं।
आदिवासी अंचल के छात्रों में दिखने वाली सामूहिकता की यह भावना एक बड़ी विशिष्ट बात है। इसको सामान्य अनुभव कहकर टाला नहीं जा सकता।एक दिन एक पहली क्लास की एक लड़की दूसरी छोटी बच्ची को लिखना सिखा रही थी। इस तरह की छोटी-छोटी बातें किसी क्लासरूम को बेहद जीवंत बना देती हैं। जहां सीखने-सिखाने की प्रक्रिया सतत चलती रहती है। उसमें शिक्षक की हर समय मौजूदगी जरूरी नहीं होती।
दूसरी क्लास में पहुंचने की ख़ुशी
पहली क्लास में पढ़ते हुए इन बच्चों ने एक-दूसरे को पढ़ने में सपोर्ट किया है। एक-दूसरे से सीखा है। क्लासरूम में बने सकारात्मक माहौल का लाभ आखिरी बच्चे तक पहुंचा है। जिस बच्चे से उम्मीद नहीं थी कि वह बच्चा बोलेगा, उसने भी कुछ अक्षर, मात्राओं और शब्दों को पढ़ना सीखा है। यह एक उपलब्धि है। जिसका श्रेय मेहनत और लगन के साथ काम करने वाले भाषा शिक्षक को। उनको प्रोत्साहित करने वाली स्कूल के शिक्षकों की टीम को जाता है।
आज पहली क्लास के बच्चे बहुत ख़ुश हैं क्योंकि उनको बताया गया कि वे अब दूसरी क्लास में आ गये हैं। पहली क्लास में नये बच्चों को प्रवेश मिल रहा है। ये बच्चे पहली क्लास के साथ ही बैठ रहे हैं। स्कूल के माहौल को समझने की कोशिश कर रहे हैं। क्योंकि पहली क्लास में नवीन प्रवेश लेने वाले बच्चों की संख्या अभी बहुत कम है।
पहली क्लास में पढ़ने वाले दो बच्चे गाँव के तालाब पर तैर रहे थे। उनको स्कूल से दो बच्चे बुलाने के लिए गाँव में गये। जब वे बच्चे स्कूल वापस आये तो उनसे पूछा गया कि आप किस क्लास में पढ़ते हैं? उनका जवाब था, “पहली क्लास में।” फिर उनको बताया गया कि वे अब आप दूसरी क्लास में पहुंच गये हैं। पहली क्लास में पढ़ने के लिए नये बच्चों का एडमीशन हो रहा है।
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