नई शिक्षा नीति-2016 के मसौदे में क्या है?

नई शिक्षा नीतिः तारीफ और आलोचना
हाल के महीनों में शिक्षा नीति-2016 की तारीफ और आलोचना में काफी कुछ लिखा जा रहा है। तारीफ करने वालों का कहना है कि इस नीति के बनने की प्रक्रिया में ब्लॉक और जिला स्तर से विचारों को आमंत्रित किया गया। वहीं इसके आलोचकों का कहना है कि केवल आम लोगों की राय के आधार पर किसी देश की शिक्षा नीति का निर्धारण नहीं किया जा सकता है, इसके लिए विशेषज्ञों की राय को भी महत्व देना चाहिए। काफी लंबे समय तक नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट जारी न होने के कारण भी असमंजस वाली स्थिति भी कायम थी। इसके कारण अख़बारों में ड्राफ्ट के मुख्य बिंदुओं के सार्वजनिक होने की खबरें छपीं।
अख़बारों में प्रकाशित रिपोर्ट्स के मुताबिक़ नई शिक्षा नीति में सकल घरेलू उत्पाद का 6 फीसदी शिक्षा पर खर्च करने, पांचवीं के बाद बच्चों को फेल करने, विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में प्रवेश को बढ़ावा देने और प्राथमिक स्तर पर शिक्षण के माध्यम की भाषा के रूप में मातृभाषा (या क्षेत्रीय व स्थानीय भाषा) को महत्व देने जैसे क़दम उठाए जा रहे हैं।
नई शिक्षा नीति में उच्च शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए एक आयोग बनाने की भी बात कही गई है, जिसका काम मानव संसाधन विकास मंत्रालय की मदद करना होगा। नई शिक्षा नीति के निर्माण के लिए विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाली ग़ैर-सरकारी संस्थाओं के अलावा भी जन-सामान्य से सुझाव व विचार मांगे गए। मगर क्या इसे सबकी भागीदारी का नाम दिया जा सकता है? यह सवाल बेहद अहम है।
अन्य प्रमुख मुद्देः
भारत में पिछले 5-6 सालों में सकल नामांकन में बढ़ोत्तरी हुई है। इसके श्रेय सर्व शिक्षा अभियान, शिक्षा का अधिकार और राष्ट्रीय साक्षरता मिशन जैसी योजनाओं को दिया जाता है। मगर शिक्षा की गुणवत्ता का सवाल ज्यों का त्यों कायम है। यह बात विभिन्न सर्वेक्षणों में निकलकर सामने आती है। सरकार और ग़ैर-सरकारी संस्थाओं के अलावा अन्य पक्षों के सर्वेक्षणों में शिक्षा के गिरते स्तर का सवाल फिर से सतह पर आ जाता है।
इस स्थिति में सुधार के लिए ज़मीनी वास्तविकताओं का अध्ययन करने और उसके अनुसार नीतियों के निर्माण और मॉनिटरिंग वाले सिस्टम को मजबूत बनाने की जरूरत है। इसमें जैसे-तैसे होने वाले प्रशिक्षणों की गुणवत्ता को बेहतर बनाने पर ध्यान देनी की जरूरत है। इसके साथ ही शिक्षकों व शिक्षक प्रशिक्षकों के बीच बेहतर संवाद की जरूरत है ताकि शैक्षिक जगत की वर्तमान चुनौतियों का समाधान करने के लिए साथ-साथ आ सकें।
नये दौर के अनुसार शिक्षकों को शिक्षा में तकनीक के इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित करने के साथ-साथ सतत आकलन करने के लिए भी प्रेरित करने की जरूरत है ताकि बच्चों को अधिगम में कहाँ चुनौती आ रही है, इस बात को समझा जा सके। साथ ही साथ उसका समाधान भी तलाशा जा सके।
इस लेख के बारे में अपनी टिप्पणी लिखें